मंगलवार, 25 सितंबर 2018

बरसात का मौसम

बरसात का मौसम ख़त्म होते होते भी जोर मार रहा है | लोगों का कहना है कि ऐसी बरसात पच्चीस तीस साल बाद हो रही है | कुछ लोगों का कहना है कि ये सब पर्यावरण असंतुलन  का असर है | मतलब अगर बारिस कम हो तो भी पर्यावरण असंतुलन जिम्मेदार है और अगर बारिस ज्यादा हो रही है तो भी पर्यावरण असंतुलन जिम्मेदार है | खैर जो भी हो लेकिन औसत से ज्यादा बारिस होने के बावजूद भी बहुत सी नदियाँ और तालाब ऐसे हैं जो पर्याप्त पानी की बाट जोह रहे हैं | एक तरफ नदियाँ उफन रही हैं, बाढ़ तबाही ला रही है दूसरी ओर तालाब सूखे हैं नदियाँ सिमट रही हैं| ये स्थिति शोचनीय है |
    पहाड़ों और तटीय मैदानों में बाढ़ ने काफी तबाही मचाई है | कुछ दिन तक बाढ़ राहत का काम करने का हो हल्ला सुनाई दिया,मंत्रियों, संतरियों और स्वयंसेवियों की बाढ़ दर्शन की तस्वीरें टी वी और अखबारों में दिखाई दीं लेकिन अब सब शांत है |ऐसा लगता है जैसे सबने प्रकृति के सामने सिर झुका दिया है या राहत और बचाव कार्य से ज्यादा जरुरी काम चुनाव आदि हो गए हैं जिसके कारण किसी को मुसीबतग्रस्त लोगों की सुध लेने की अब फुर्सत नहीं हैं |
अगर ध्यान से देखा जाए तो भारी बरसात समस्या नहीं है, वरदान है| बादलों से बरसने वाला पानी अमृत है | इससे शुद्ध जल तो कोई हो ही नहीं सकता है लेकिन हम इस शुद्ध जल का सही भण्डारण नहीं कर पाते हैं और ये बहकर समुद्र में यूँ ही समां जाता है | यद्यपि  समुन्दर में भी शुद्ध जल का जाना आवश्यक है| इससे समंदर को नया जीवन मिलता है लेकिन अगर हम इस पानी का समुचित भण्डारण कर सकें तो यह हमारे लिए वर्ष भर काम आ सकता है | बहुत सी नदियां जो सूख गयी हैं या मृतप्राय हैं या प्रदूषण और कचरे से अटी  पड़ी हैं वो अगर बाढ़ से उफनती नदियों से जुड़ जाएँ तो वो भी पानी से लबालब हो सकती हैं | उनका भी भू जल क्षेत्र रिचार्ज हो सकता है | लेकिन इस क्षेत्र में बहुत कम काम किया गया है | लोगों को मारने  के लिए हथियारों पर अरबों डालर खर्च करने वाली सरकारें लोगों को जिन्दा रखने  के लिए  खर्च करने के लिए पैसे के अभाव का रोना रोती रहती हैं | ये किसी एक सरकार की बात नहीं है| ये दुनिया की ज्यादातर सरकारों की प्रवृत्ति है | मनुष्य द्वारा एक स्वयं  निर्मित भय से सुरक्षा के लिए वह एक  बड़ा डर पैदा करता है और फिर उस डर से बचने के लिए प्रतिपक्ष को उससे भी ज्यादा बड़ा भय उत्पन्न करने के लिए मजबूर करता है | भय का ये सिलसिला बढ़ता रहता है और इंसानियत कराहती रहती है| इंसान को पीने को पानी नहीं ,खाने को रोटी नहीं, बीमार हो जाये तो दवा नहीं ,शुद्ध हवा नहीं ,रहने को मकान नहीं ,खेलने को मैदान नहीं, मर जाये तो कब्रिस्तान श्मशान नहीं लेकिन हिफाजत के लिए हथियार अचूक चाहियें | मैं कहता हूँ इंसान जिन्दा रहेगा तभी तो उसे हथियारों की जरुरत पड़ेगी और जिन्दा वह तभी रह सकता है जब उससे जिन्दा रहने की सहूलियतें मिलेगी | बाढ़ को कोई बंदूक और तोप नहीं रोक सकती है| बाढ़ को बाँध ही रोक सकता है, पेड़ ही रोक सकते हैं | तो फिर पेड़ लगाये जाने चाहियें, बाँध बनाये जाने चाहियें ये तोपें क्यों खरीदी जा रही हैं ? क्या दुश्मन के यहाँ बारिश नहीं होती है, बाढ़ नहीं आती है | हम उससे तोप और बंदूक लेकर ही क्यों मिलना चाहते हैं हम उससे बाढ़ और पानी पर भी बात कर सकते हैं |
प्रकृति बारूद नहीं पानी बरसा रही है पानी जो हमारे लिए अमृत हैं| हम बारूद बिछाने का काम बंद करें और पानी सहेजने के काम में जुट जाएँ |मानवता के लिए यही श्रेयस्कर होगा |

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