रविवार, 16 जून 2019

'सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी '

यूँ तो बहुत सरल था शर्तों पर जीना मरना तय कर दिया गया जो पथ उस पथ पर ही चलना | पर जो राह नहीं थी सीधी हमने वही चुनी , एक बार भी समझदार लोगों की नहीं सुनी | सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी | सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी || हमको था मालूम की इस पथ में हैं शूल बड़े बीहड़,कंकर,पत्थर अनघड़ छोटे और बड़े | रोकेंगे सब राह हमारी दुश्वारी पैदा कर और न कुछ हम कर पायेगें तकते खड़े खड़े | पर पत्थर हमवार बनाने के थे हमीं गुनी | सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी || नेह नहीं था धूँप बहुत थी स्वेद चिप चिपाता था और हमें बढ़ते जाने के सिवा न कुछ भाता था | जीवन की मरूभूमि में मृग तृष्णा रही लुभाती मीठे जल का स्रोत परन्तु पास नहीं आता था | विधना ने भी छाया करती चादर नहीं बुनी | सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी || हँसता है जग चले बहुत हम पहुँचे कहीं नहीं किन्तु हमारे सपनों में है कोई कमी नहीं | रात रही गहराती छतरी तान अंधेरें की और दिलासायें जुगनू सी दिखती कहीं कहीं | हम जुगनू से ज्वाला सुलगाने के रहे धुनी | सहज सरल जो राह नहीं थी हमने वही चुनी ||

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