शनिवार, 22 जून 2019

गजल -हम हैं निरे कहाँ कभी कुसंग में रहे ?

हम हैं निरे कहाँ कभी कुसंग में रहे ? ये और बात है कि हम भी संघ में रहे |

चाहे चली हो बात कोई भी सहज में हो सन्दर्भ में रहे सदा, प्रसंग में रहे |

हम बेअदब हैं वो थे अदब चाहने वाले फिर भी हम उनसे ज्यादा कहीं ढंग में रहे |

हमसे हिसाब रोटियों का पूछ रहे वो जो खुद हमेशा भंग की तरंग में रहे |

गौ मूत्र है खुराक में, गोबर दिमाक में हम योग करके स्वास्थ्य की उमंग में रहे |

नेजा न कोई पास था तरकश न तीर था दुश्मन भी था जबर मगर हम जंग में रहे |

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें