समाचार प्लस चैनल पर भाजपा प्रवक्ता आई पी सिंह फरमा रहे हैं कि 'उनकी कालौनी में नब्बे प्रतिशत सफाई कर्मी रोहिन्गया और बंन्गलादेशी हैं। ' लो सुन लो इनकी बात ये गन्दगी फैलायें तो कोई बात नहीं लेकिन जो सफाई करें वो घुसपैठिये हैं? राष्ट्रिय नागरिकता रजिस्टर बनाये जाने के औचित्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक रोहिंग्या लड़के ने सवाल किया कि हमारी तो कोई राष्ट्रियता ही नहीं है हमें कहाँ भेजा जायेगा ? मेरा सवाल है कि संघवादी तो वृहत्तर भारत की बात करते हैं जिसमें भारत की ऐतिहासिक सीमाओं से बाहर के वो देश भी शामिल हैं जो आज किसी भी तरह भारत से सम्बद्ध नहीं हैं लेकिन अखण्ड भारत के लोग क्यों परेशान हों वे तो भारत के हर भाग में रहने का हक रखते हैं। क्या अखण्ड भारत के बासिन्दों में भेदभाव कर अखण्ड भारत की कल्पना की जा सकती है? ऐसे लोग जो भारत के खण्ड खण्ड होने से असुरक्षा के भाव में जी रहे हैं ये भारत की एकता के भरोसेमन्द सिपाही साबित होंगे क्यूँकि अखण्ड भारत में ही बिना भय के रह सकते हैं लेकिन आज उन्हें ही अविश्वाश की नजर से देखा जाता है और उन्हें भारत के लिये खतरा बताया जा रहा है।जिन्दा रहने की जद्दो जहद में जुटे राष्ट्रियताहीन मनुष्य कैसे किसी देश के लिये खतरा हैं ये बात समझ से बाहर है। सच तो ये है कि अन्धराष्ट्रवाद से ग्रसित जन समूह और देश मनुष्यता के लिये खतरा हैं। धरती पर देश की अवधारणा प्राकृतिक नहीं है । देश कुछ आदमियों की ताकत के बल पर किसी भूभाग में जनसमूह को नियन्त्रित रखने की व्यवस्था का नाम है ।इस व्यवस्था में निरन्तर उदारता के व्यवहार की ओर बढते रहने की आवश्यकता है। ये उदारता इस सीमा तक बढनी चाहिये कि यह वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श को प्राप्त हो जाये किन्तु वर्तमान काल में ऐसा करने की बजाये पीछे कबीलाई युग में ले जाने की कौशिश हो रही है। राष्ट्रवाद कबीलाई मानसिकता का परिष्क्रृत रूप मात्र है इसे लेकर गर्वित होना या बात बे बात हुँकार लगाना क्या कबिलाई व्यवहार को प्रदर्शित करता है। अगर सममान से जीने के नैसर्गिक अधिकार की रक्षा करनी है तो इस मानसिकता का त्याग करना होगा। आज सरकारें मनुष्य के सम्मान से जीने के अधिकार का सम्मान नहीं कर रहीं हैं। वे तरह.तरह के बहाने बनाकर नागरिकों में भेद कर रहीं हैं इसकी ताजा कौशिश राष्ट्रिय नागरिकता रजिस्टर के रूप में है जिसे देशभक्ति से अनावश्यक रूप से जोड़ा जा रहा है और स्वयं को देशद्रोही घोषित कर दिये जाने के खतरे को देखते हुए सभी दल इसका समर्थन करने को बाध्य हो रहें हैं लेकिन इन्सानियत का तकाजा है किसी भी इन्सान को राष्ट्रियता के नाम पर परेशान ना किया जाये और जो जहाँ रहना चाहता है उसे वहाँ रहने दिया जाये।
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