जैसे मौसम के हिसाब से गिरगिट रंग बदलता रहता है वैसे ही संघ भी अपना रूप रंग बदलता रहता है | उसके बदले हुए स्वरूप को देखकर अक्सर कुछ सज्जन पुरुष औपचारिकतावश कुछ शब्द प्रशंसा के भी बोल देते हैं | संघ उन सज्जन पुरुषों के ऐसे चंद सदभावनात्मक वाक्यों को अपने प्रोपेगेंडा के लिए इस्तेमाल करता रहता है| वह प्रमाण देता है कि देखो महात्मा गांधी ने संघ की प्रशंसा में ये कहा था| देखो नेहरू ने संघ को गणतंत्र दिवस की परेड में बुलाया था | देखो लालबहादुर शास्त्री ने संघ को दिल्ली की सुरक्षा का भार सौंपा था | देखो जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि अगर संघ सांप्रदायिक है तो मैं भी सांप्रदायिक हूँ |
ये सब संघ इसलिए करता रहता है ताकि वह अपने सांप्रदायिक एजेंडें पर सर्वानुमति बना सके | एक बार भी ये नहीं कह सकते कि किसी भी महापुरुष ने इनकी सांप्रदायिक सोच की कभी प्रशंसा की है | ये कहेंगे संघ के अनुशासन,राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव की प्रशंसा की है | हम पूछते हैं कि अगर वाकई महात्मा गांधी ने संघ के अनुशासन ,राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव की प्रशंसा की थी तो आपके स्वयंसेवक नाथूराम गोडसे ने राष्ट्र पिता की हत्या क्यों की थी ? नेहरू ने अगर संघ के अनुशासन,राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव को देखकर उसे गणतंत्र दिवस की परेड में बुलाया था तो आप नेहरू के बुलाये पर गए क्यों थे ? जबकि नेहरू आपकी नजर में कश्मीर समस्या के लिए जिम्मेदार थे,भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार थे | आप कहते हैं कि जयप्रकाश नारायण संघ के अनुशासन,राष्ट्रभक्ति और सेवा भाव से बहुत प्रभावित थे | अगर जयप्रकाश नारायण आपसे प्रभावित थे तो आपने उनका क्या मान रखा ? आपने उनके संघर्ष से जन्मी जनता पार्टी को क्यों तोड़ दिया ? आपने क्यों नहीं अपने सदस्यों से कहा कि संघ तो त्याग ,तपस्या और सेवा भाव सिखाता है, आप उसी भावना का परिचय देते हुए संघ की सदस्यता त्याग दें और पूरी निष्ठां से जनता की सेवा के लिए जनता पार्टी में स्वयं को विलीन कर दें | आप अगर ऐसा कहते तो जनता की नज़रों में संघ की विश्वसनीयता बढ़ती और देश को बेहतर राजनीतिक विकल्प मिलता जो आज तक नहीं मिला है |
आपको अपने अनुशासन ,राष्ट्रभक्ति, सेवा भाव , त्याग और तप पर बहुत गर्व है | आप कोई अवसर नहीं चूकते हैं जब ये न बताते हों कि संघ के स्वयंसेवक बाढ़ और भूकंप में बढ चढ़कर पीड़ित लोगों की मदद करते हैं | आप यह भी कहते हैं कि वनवासियों,आदिवासियों,पिछड़ी और अनुसूचित जाति की झुग्गियों बस्तियों में जाकर संघ के स्वयंसेवक रात दिन सेवा कार्य कर रहे हैं | आप ये भी कहते हैं कि संघ अनाथ और गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए आवासीय विद्यालय चला रहा है |
निश्चय ही ये अच्छे काम हैं, अगर ये अच्छी नीयत से किये जा रहे हों | पर सबसे पहले तो आपकी विचारधारा ही अवैज्ञानिक और भेदभाव पूर्ण है जिससे आपके सारे क्रिया कलाप दूषित होते रहते हैं | आपकी शिक्षा ,आपकी सेवा सब दूषित है | लेकिन आप ये मानेंगे नहीं क्यूँकि आपकी सोच से तो यही राष्ट्रसेवा है, यही वैज्ञानिक सोच है | चलो मान लेते हैं कि आप जैसे भी हो आपके कुछ करने से जनता में कुछ तो जागरूकता आती है | लेकिन जब यही काम ईसाई मिशनरी करती है , यही काम मदरसे करते हैं ,यही काम प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता ,मानवाधिकारवादी ,पर्यावरणवादी करते हैं तो आप उन्हें क्या क्या नहीं कहते हैं ? आप किसी को आई एस एस का एजेंट कहते हो किसी को अर्बन नक्सली, किसी को आतंकवादी किसी को चर्च का एजेंट | क्या ये लोग सेवा नहीं करते हैं ? क्या देश के पिछड़े, आदिवासी, वनवासी आपके मोहताज बने रहने के लिए अभिशप्त हैं ? क्या किसी को उन्हें अपनी तरह से सभ्य नागरिक बनाने का हक नहीं है ? आखिर क्यों मान लिया जाए कि आपकी सोच ही बेहतर है और बाकी सबको इस सोच को चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए ?
आप कहते हैं कि चर्च और मदरसे धर्म परिवर्तन करते हैं | श्रीमान आप भी सबका हिन्दूकरण कर रहे हैं |आदिवासी ,वनवासी ,गिरिजन सब के सब हिन्दू नहीं हैं | उनके अपने आस्था और विश्वाश हैं जिनसे आपका कुछ मेल नहीं है | जहाँ तक नक्सलियों और आतंकवादियों की बात है तो आप जो अर्ध सैन्य प्रशिक्षण दे रहे हैं, घातक हथियारों का खुले आम प्रदर्शन कर रहे हैं, घात लगाकर गौ रक्षकों के वेश में लूट और हमला कर रहे हैं वो किस आतंकवाद से कम है ? आप की राष्ट्रभक्ति पर तो यही सबसे बड़ा सवालिया निशान है कि आप भारतीय संविधान को मानते हुए शांति से न तो रहते हैं और न ही रहने दे रहे हैं | बुद्धिजीवी, लेखक, कवि, पत्रकार, छात्र. दलित, मजदूर, किसान, आदिवासी,अल्पसंख्यक सब तो आप के निशाने पर हैं, सभी तो आपसे पीड़ित हैं | मौज में हैं तो आपके साथी चंद धन्नासेठ जो राष्ट्र के लुटेरे हैं , चोर हैं, डाकू हैं| वे आपको हर तरह से मदद करते हैं | आप बताईये आपको कौन चंदा देता है? क्या आपका कोई सदस्यता शुल्क है ? क्या आपके संगठन के नाम या आपके पूर्णकालिक कार्यकर्ता के नाम कोई संपत्ति है ? आखिर ये संगठन जिसे आप विश्व का सबसे बड़ा संगठन कहते हैंआखिर चलता कैसे है ? जिसके नाम न कोई सम्पति है न जिसका कोई संविधान है जिसकी न कोई सदस्यता है | ऐसा तो सिर्फ गुप्त और गैरकानूनी संगठन में ही होता है| किसी विधि सम्मत संगठन को कुछ छुपाने की जरुरत नहीं होती है | वहाँ पूरी पारदर्शिता होती है | वहाँ लोकतान्त्रिक कार्य पद्धति होती है| आपके यहाँ तो लोकतंत्र नाम की कोई चिड़िया भी नहीं हैं | कहीं कोई चुनाव नहीं कोई सदस्यता नहीं |पता नहीं सब कैसे गुपचुप चलता है |
बेहतर होगा आप स्वयं को पारदर्शी ,लोकतांत्रिक और सहिष्णु बनायें तब आप को कुछ दिखावा करने की जरूरत न पड़ेगी | आप भी देश में लोकतांत्रिक ढंग से काम करें और बाकी सबको भी लोकतांत्रिक ढंग से काम करने दें | आपसे सहमत होने वाले लोग भी इस देश में रहेंगे और असहमत लोग भी कहीं जाने वाले नहीं हैं | आप ये जान लो कि ये देश हम सबका है, केवल आपकी बपौती नहीं है |
आपको अपने अनुशासन ,राष्ट्रभक्ति, सेवा भाव , त्याग और तप पर बहुत गर्व है | आप कोई अवसर नहीं चूकते हैं जब ये न बताते हों कि संघ के स्वयंसेवक बाढ़ और भूकंप में बढ चढ़कर पीड़ित लोगों की मदद करते हैं | आप यह भी कहते हैं कि वनवासियों,आदिवासियों,पिछड़ी और अनुसूचित जाति की झुग्गियों बस्तियों में जाकर संघ के स्वयंसेवक रात दिन सेवा कार्य कर रहे हैं | आप ये भी कहते हैं कि संघ अनाथ और गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए आवासीय विद्यालय चला रहा है |
निश्चय ही ये अच्छे काम हैं, अगर ये अच्छी नीयत से किये जा रहे हों | पर सबसे पहले तो आपकी विचारधारा ही अवैज्ञानिक और भेदभाव पूर्ण है जिससे आपके सारे क्रिया कलाप दूषित होते रहते हैं | आपकी शिक्षा ,आपकी सेवा सब दूषित है | लेकिन आप ये मानेंगे नहीं क्यूँकि आपकी सोच से तो यही राष्ट्रसेवा है, यही वैज्ञानिक सोच है | चलो मान लेते हैं कि आप जैसे भी हो आपके कुछ करने से जनता में कुछ तो जागरूकता आती है | लेकिन जब यही काम ईसाई मिशनरी करती है , यही काम मदरसे करते हैं ,यही काम प्रतिबद्ध सामाजिक कार्यकर्ता ,मानवाधिकारवादी ,पर्यावरणवादी करते हैं तो आप उन्हें क्या क्या नहीं कहते हैं ? आप किसी को आई एस एस का एजेंट कहते हो किसी को अर्बन नक्सली, किसी को आतंकवादी किसी को चर्च का एजेंट | क्या ये लोग सेवा नहीं करते हैं ? क्या देश के पिछड़े, आदिवासी, वनवासी आपके मोहताज बने रहने के लिए अभिशप्त हैं ? क्या किसी को उन्हें अपनी तरह से सभ्य नागरिक बनाने का हक नहीं है ? आखिर क्यों मान लिया जाए कि आपकी सोच ही बेहतर है और बाकी सबको इस सोच को चुपचाप स्वीकार कर लेना चाहिए ?
आप कहते हैं कि चर्च और मदरसे धर्म परिवर्तन करते हैं | श्रीमान आप भी सबका हिन्दूकरण कर रहे हैं |आदिवासी ,वनवासी ,गिरिजन सब के सब हिन्दू नहीं हैं | उनके अपने आस्था और विश्वाश हैं जिनसे आपका कुछ मेल नहीं है | जहाँ तक नक्सलियों और आतंकवादियों की बात है तो आप जो अर्ध सैन्य प्रशिक्षण दे रहे हैं, घातक हथियारों का खुले आम प्रदर्शन कर रहे हैं, घात लगाकर गौ रक्षकों के वेश में लूट और हमला कर रहे हैं वो किस आतंकवाद से कम है ? आप की राष्ट्रभक्ति पर तो यही सबसे बड़ा सवालिया निशान है कि आप भारतीय संविधान को मानते हुए शांति से न तो रहते हैं और न ही रहने दे रहे हैं | बुद्धिजीवी, लेखक, कवि, पत्रकार, छात्र. दलित, मजदूर, किसान, आदिवासी,अल्पसंख्यक सब तो आप के निशाने पर हैं, सभी तो आपसे पीड़ित हैं | मौज में हैं तो आपके साथी चंद धन्नासेठ जो राष्ट्र के लुटेरे हैं , चोर हैं, डाकू हैं| वे आपको हर तरह से मदद करते हैं | आप बताईये आपको कौन चंदा देता है? क्या आपका कोई सदस्यता शुल्क है ? क्या आपके संगठन के नाम या आपके पूर्णकालिक कार्यकर्ता के नाम कोई संपत्ति है ? आखिर ये संगठन जिसे आप विश्व का सबसे बड़ा संगठन कहते हैंआखिर चलता कैसे है ? जिसके नाम न कोई सम्पति है न जिसका कोई संविधान है जिसकी न कोई सदस्यता है | ऐसा तो सिर्फ गुप्त और गैरकानूनी संगठन में ही होता है| किसी विधि सम्मत संगठन को कुछ छुपाने की जरुरत नहीं होती है | वहाँ पूरी पारदर्शिता होती है | वहाँ लोकतान्त्रिक कार्य पद्धति होती है| आपके यहाँ तो लोकतंत्र नाम की कोई चिड़िया भी नहीं हैं | कहीं कोई चुनाव नहीं कोई सदस्यता नहीं |पता नहीं सब कैसे गुपचुप चलता है |
बेहतर होगा आप स्वयं को पारदर्शी ,लोकतांत्रिक और सहिष्णु बनायें तब आप को कुछ दिखावा करने की जरूरत न पड़ेगी | आप भी देश में लोकतांत्रिक ढंग से काम करें और बाकी सबको भी लोकतांत्रिक ढंग से काम करने दें | आपसे सहमत होने वाले लोग भी इस देश में रहेंगे और असहमत लोग भी कहीं जाने वाले नहीं हैं | आप ये जान लो कि ये देश हम सबका है, केवल आपकी बपौती नहीं है |
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