"मंचों को सर्वस्व मानने वालों को तकलीफ तो होगी,
मेहनत उनकी है और कारोबार कोई करता है,
लेकिन ये तकलीफ ना होती है अमीर खुसरों को,
जिसका लिखा बिना जाने दादी नानी गाती हैं।
कुछ तो ऐसा लिखें जिसे अपनाकर लोग खुशी हों,
रोने को तो दुनिया में वैसे ही गम काफी हैं।"
सरकार तुमने पुल बनाये थे जो, सारे ढह गये
आँसुओं की बाढ़ थी, वो बाढ़ में ही बह गये।
शिकायतें बहुत थी पर कह नहीं सके कभी,
चाहते थे सब तुम्हें, बस चाहते ही रह गये ।
हर बार सोचता हूँ कि ये अब नहीं होगा,
वो पास में हो तो भला ये कब नहीं होगा ?
इन हादसों के हम ना सिर्फ जिम्मेदार हैं,
क्या हादसों का जिम्मेदार रब नहीं होगा ?
जुबां पे पाबन्दियाँ घनी हैं गज़ल कहूँ तो कहूँ मैं कैसे ?
भरा है दिल में दरद लबालब ये दर्दे दिल मैं सहूँ तो कैसे?
तुम्हारे मिलने की आस लेकर मैं मुस्कराते चला ही जाता
मगर अब ह़ँसते हैं लोग मुझ पर,मैं ओर तन्हा रहूँ तो कैसे ?
न जाने तीर ही क्यूँ आँख में सबकी लगा जाकर ,
बहादुर लोग थे कोई तो भाले से मरा होता।
जो चीज काम की थी उसे चोर ले गये,
बेकाम की जुब़ान इसे खुद चलाईये .
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