शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

बल्ली सिंह चीमा

नई  ग़ज़ल  का  एक  मुखड़ा और  चार  शे र

हाथ में  तीर-कमान हैं उनके  हम समझे अदिवासी  हैं ।
पुलिस  बताती  है  हमको  ये जंगली  नक्सलवादी   हैं ।

जिनके पास कलम औ सच हो बात न्याय की करते हों ,
सत्ता  कहती  ऐसे  लोग  ही   असली  नक्सलवादी  हैं ।

एक  वकील है एक  कवि  कुछ  सामाजिक  कारिन्दे हैं,
पर   सरकार   बताती   है   ये   शहरी  नक्सलवादी  हैं ।

कविता लिखना छोड़ भी दोगे, फिर भी बच ना पाओगे ,
लाख कहो  कमिनिस्ट  नहीं हैं, हम केवल जनवादी हैं ।

धमका कर या प्यार से पूछो,"बल्ली" देगा  यही  जवाब,
गर   वो   फासीवादी   हैं   तो   हम   परिवर्तनवादी  हैं ।

                           ----------- बल्ली सिंह चीमा 

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