शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

समलैन्गिकता अधिकार की मान्यता और नैतिकता के लठैत

टी वी में न्यूज चैनल पर सुप्रीम कोर्ट के समलैंंगिकता पर दिये गये फैसले पर चल रही बहस को देखिये। गजब की साम्प्रदायिक एकता दिखाई दे रही है। बकरमुँहा मौलाना, हिन्दू धर्म और संस्कृति के बकैत काले पीले और भगवा चौले में मुर्गे और मौर की तरह सज धजकर बैठे हैं और एक स्वर में समलैंंगिकों को असामाजिक और मनोरोगी बताकर उन्हें समाज के लिये खतरा बता रहे हैं। उनके लिये ये फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज नासमझ हैं और उन्हें भारत की संस्कृति की कुछ समझ ही नहीं है।
  कहने को तो हमारे देश में कानून का राज है। एक संविधान है। एक सर्वोच्च न्यायालय है जो नागरिकों की आजादी और सुरक्षा का संरक्षण करता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हाल के कुछ जनहितकारी फैसले ऐसे रहे हैं जिनका वोट के सौदागरों ने सम्मान नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोघ से पीड़ित को सुरक्षा देने के लिये आरोपों की जाँच के उपरान्त ही समुचित कार्यवाही करने हेतु कुछ निर्देश दिये थे जिससे सवर्ण समाज ने राहत महसूस की थी लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं ने कोर्ट के फैसले को तो रद्द कर ही दिया साथ ही इस एक्ट में ऐसे अमानवीय प्राविधान शामिल कर दिये जो दुनिया के किसी कानून में न होंगे। सवर्ण समाज के लोग निश्चित थे कि कोर्ट का फैसला कायम रहेगा। क्यूँकि वो समझते थे कि सरकार उनके वोट बैंक से बनी है और फैसला भी न्यायोचित है इसलिये कानून के राज का दम भरने वाली पार्टी उनके खिलाफ कुछ ना करेगी लेकिन सरकार ने फैसले को पलटकर उन्हे ऐसा झटका दिया कि उन्हें होश आने में कई दिन लग गये। जब उन्हें होश आया तब वे विरोध करने के लिये सड़को पर उतरे लेकिन तब तक काफी देर हो गयी थी। चिड़िया खेत चुग गयी है अब कुछ  होना मुश्किल है।
 दूसरा मामला बारबारा राव जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कथित राष्ट्रविरोधी साजिश में शामिल होने का आया है। जिसमें  कोर्ट ने आरोपियों की गिरप्तारी को अनावश्यक समझते हुये सम्बन्धित आरोपियों को उनके घर में ही नजरबंद करने का आदेश दिया है जिससे आरोपियों को राहत मिल गई । आज स्थिति ये है कि एक ओर जहाँ  देश का प्रबुद्ध वर्ग सभी आरोपियों के बेदाग बरी होने के बारे में मुतमुईन हैं तो दूसरी ओर सरकार के नुमाईन्दे हर हाल में आरोपियों को सजा दिलाने का दावा कर रहें हैं। मतलब कि वे कौर्ट का सम्मान करने को तैयार नहीं हैं।
 तीसरा बड़ा फैसला समलैंंगिकों के निजता के अधिकार की रक्षा करने का आया है जिसमें उनका उत्पीड़न और दमन करने वाले काले कानून धारा 377 को निष्प्रभावी कर दिया गया है। कल इस फैसले को भी रद्द करने के लिये संसद में कानून आ सकता है क्यूँकि धर्म और संस्कृति के ठेकेदार जो जनता को भेड़ समझकर हाँकते रहते हैं एक सुर में इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। सरकार उन्हें खुश करने के लिये कुछ भी कानून बना सकती है। इस मामलें में तमाम तरह के दक्षिण पंथी और मध्यमार्गी ही नहीं वामपंथी भी सड़े हुये नैतिक मूल्यों के लठैत बनकर समलैन्गिकों को ललकार रहे हैं। उनके तर्क भी वही हैं जो बन्द दिमागों वाले दकियानूसियों के हैं।  वे कहते हैं समलैन्गिक लोग बच्चे कैसे पैदा करेंगे? वे समाज में हिंसा और अव्यवस्था फैलायेंगे। वे परिवार को तोड देंगे और सबसे बड़ा आरोप ये है कि वे मनोरोगी हैं उनका इलाज किया जाना चाहिये।
 अब कौन मनोरोगी है और किसका इलाज किया जाना चाहि ये एक अन्धा आदमी भी बता सकता है। जो लोग धरम और जाति के नाम पर विद्वेष फैलाते हैं, स्त्रियों नाबालिगों का शोषण करते हैं, जो लोग धर्म के नाम पर औरतों, बच्चों और बेजुबान जारवरों की बलि देते हैं, जो लोग स्त्रियों के साथ सामाजिक बलात्कार यानि कि हलाला की वकालत करते हैं, जो लोग जिस्मफरोशी के हिमायती हैं, वो सारे लोग दो वयस्कों की पारस्परिक सहमति से अन्तरंग एकान्त मिलन को जबरन रोक देने का अधिकार चाहते हैं। ये समझ में नहीं आता है कि किसी के स्वैच्छिक अन्तरंग एकान्त मिलन से किसी को क्या तकलीफ होती है? वस्तुतः नैतिकता के इन बकैतों लठैतों को लठियाये जाने की जरुरत है। ये वही लोग हैं जो सती प्रथा , तीन तलाक, हलाला ,देवदासी प्रथा, बाल विवाह ,छूआछूत, नगर वधू जैसी बुराईयों के खात्मे के विरोध में  समाज को समय समय पर भड़काते रहे हैं। समाज के प्रगतिशील लोग ऐसे लोगों का विरोध करने के लिये सड़कों पर उतरते रहे हैं लेकिन कोई सड़को पर ऐसे काले कानून का विरोध करने के लिये नहीं आयेगें जो समलैन्गिकों का दमन और उत्पीड़न करता है। क्या किसी खास वर्ग के बेकसूर लोगों के उत्पीड़न का समाज के सभी वर्गो को विरोध नहीं करना चाहिये? समाज में सबको बराबर का हक होता है लेकिन दबंग लोग अल्पसंख्यक कमजोर लोगों को चैन से जीने नहीं देते हैं । समलैन्गिक समाज के वास्तविक अल्पसंख्यक हैं।  सुप्रीम कोर्ट समाज मे ऐसे लोगों पर होने वाले अन्याय और उत्पीड़न के विरूद्ध ढाल बनकर खड़ा हुआ है, हमें उस ढाल की देखभाल करनी है कि कहीं कोई नैतिकता का लठैत इसे छीन न ले।

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