सोमवार, 3 सितंबर 2018

मैंने बुनियादी काम किया जो रहा डायरी के अन्दर,
कुछ इन्कलाब लाया हूँ मैं पर सिर्फ शायरी के अन्दर।
कुछ काम धरातल पर करने का नहीं हौसला होता है,
कुछ काम करूँ इससे पहले आ मुझे घुड़कते हैं बन्दर ।

ये न सोचों मैं कायर हूँ जो बन्दर से डर जाता हूँ
बातें करता हूँ बड़ी बड़ी घर चुपके चुपके आता हूँ।
मित्रों ये वक्त भयावह है भालू बन्दर की बात नहीं
अच्छे अच्छों को सड़को पे गायों से दुबके पाता हूँ ।

ऐसे में बनूँ बहादुर मैं ये मेरे बस की बात नहीं,
सब और वार सह सकता हूँ सह सकता केवल लात नहीं
इस गोबरधन के चक्कर में सब गुड़ गोबर हो जाता है
वरना चलता चक्कर मेरा, कर लेता लव जेहाद कहीं।

अब लव ना लब जेहाद कहीं, ना आह कहीं ना अंगड़ाई,
चुपके से कोचिंग जाता हूँ, बैठे करता रहता पढा़ई ।
नम्बर भी सौ में से सौ हैं,  हर बार परीक्षा में आते
ना कहीं नौकरी मिलती है घर रोज हुआ करती लड़ाई ।

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