जलेस मेरठ جلیس میرٹھ
जनवादी लेखक संघ मेरठ جناوادئ لکھاک سنگھ میرٹھ
मंगलवार, 2 अक्टूबर 2018
हे राम और जयश्रीराम
मैं गाँधी को याद करना चाहता हूँ लेकिन गोडसे पहले सामने आकर खड़ा हो जाता है। गाँधी को नेहरू के बिना याद किया जा सकता है,सुभाष के बिना याद किया जा सकता है विनोबा के बिना याद किया जा सकता है अम्बेडकर के बिना याद किया जा सकता है जिन्ना के बिना याद किया जा सकता है खान अब्दुल गफ्फार खान के बिना याद किया जा सकता है लेकिन आप गोडसे के बिना याद नहीं कर सकते हैं।और तो और आप गाँधी के बिना गाँधी को याद कर सकते हैं जैसे कि लोग करते ही आ रहे हैं लेकिन आप गोडसे के बिना गाँधी को याद नहीं कर सकते हैं। गोडसे ही वह आदमी है जो ये बताता है कि हिंसक आदमी सबसे ज्यादा अहिंसक आदमी से डरता है और इसलिये वो सबसे पहले निशस्त्र और अहिंसक आदमी की हत्या करता है। गाँधी निडर और निशस्त्र खुलेआम लोगों से मिलता है और गोडसे भीड़ में छुपकर हमला करता है।भीड़ को हत्यारा अपनी नफरत अपने उन्माद के लिये ढाल बनाता है गाँधी अपने आत्मबल को, सत्य को, स्नेह को अपनी शक्ति मानते हैं। गाँधी गिरते हैं तो हे राम पुकारते हैं गोडसेपंथी गिराते हैं तो जैश्रीराम चिल्लाते हैं।
पहले लोग हे राम और जयश्रीराम के अन्तर को पहचानते थे अब इतना भ्रम फैला दिया गया है कि दोनों को एक बताया जा रहा है और बहुत से लोग ऐसा मान भी रहे हैं। लेकिन हे राम सुनकर कोई डरता नहीं था, करूणा से विचलित अवश्य हो जाता था। आज भी कोई न डरेगा लेकिन जरा भीड़ में जोर से जयश्रीराम बोलकर दिखाईये लोग डर जायेंगे, भीड़ छँट जायेगी और आसपास के लोग अपने घरों के दरवाजे दहशत से बन्द कर लेंगे।
गाँधी और गोडसे में यही फर्क है। गाँधी को गोडसे के साथ याद करें तो इसलिये करें कि गाँधी है तो आप अपने दरवाजे खोल सकते हैं और अगर गोडसे होगा तो डर के मारे आपको दरवाजा बन्द करना पड़ेगा। क्या आप डरते हुये जीना चाहेंगे?
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