मंगलवार, 30 जुलाई 2019

कविता -शौर बहुत है



म चुप ना थे पर क्या करें? शौर बहुत है
वे क्यूँ सुनें बहुमत उन्हें घनघोर बहुत है ।
कमजोर हो रही है दीन की पुकार अब
जालिम है जबर बाजुओं में जोर बहुत है।



गाय हिंदू हो गयी, बकरा मुसलमान,
मेडिसन क्रिश्चियन मिली, हिंदू मिली दुकान ।
स्वस्थ बलिष्ठ हो किस तरह सदियों का बीमार 
मजहब की जंजीर से, जकड़ा देश महान ।



माननीय कहना कहलाना शर्मनाक है 
इनके मुँह पर कालिख,सिर पर पड़ी ख़ाक है |
अबला तो सबला बन कर संग्राम लड़ रही 
देखो फिर ये किस कायर की कटी नाक है |



नक्कारखाने तूती बन के बोल तो ज़रा
सिल रखे है क्यों अपने लब खोल तो ज़रा|
तेरे भी हमकदम चलेगा कारवां बड़ा 
अपने बंधें हुए परों को खोल तो ज़रा |


अपनी पीठ थपथपाते हैं बैठ सदन में 
सभी जगह शामिल रहते हैं दीन दमन में |
शीलहरण फिर हुआ द्रोपदी बिलख रही है  
कैसे धृतराष्ट्र बैठे हैं राज भवन में |





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