शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

गजल -घर को घेरे हुए गरीबी बेकारी है

एक गली के गुंडे सी सरकार बन रही
और हमारी भी है उससे रोज ठन रही |

घर से निकलें नहीं कि बाहर, जुर्माना है
जाने किस किसकी है हम पर तोप तन रही |

घर को घेरे हुए गरीबी बेकारी है
बैठे बैठे बीमारी है नयी जन रही |

काजल की कोठरियों से बच बच कर चलते
फिर भी सबसे ज्यादा अपनी नाक सन रही |

देश हुआ आजाद बना गणतंत्र हमारा
तनी कभी कश्मीर कभी आसाम गन रही |





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