बुधवार, 21 अप्रैल 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि : 31-मजहर सयानावी

 कड़वे जिसके बोल हैं उसका अपना बस थोड़े ही है                                                                                                   गन्ना हो तो रस भी निकले बात में रस थोड़े ही है |

वो  है  चुर्रेबाज  तो  होगा  हम  भी  हैं  खुद्दार
हम जैसे लोगों की उसके हाथ में नस थोड़े ही है |

सब जाने हैं हम हैं उसके सच्चे पक्के दोस्त
लेकिन उसकी गैर मुनासिब बात में रस थोड़े है |

आये तो जल्दी आ जा वरना फिर मिटटी का ढेर
बिस्तर पर बीमार तेरा दो चार बरस थोड़े है |

और थे जब हालात तो 'मजहर' बात थी जब कुछ और
अब तेरे हालात हैं ओर अब बात में जस थोड़े है |

                         2


मेरी  खुद्दार  तबियत  को  गवारा  भी  नहीं,
जी  हजूरी  के  सिवा  दूसरा  चारा  भी  नहीं |


जिन्दगी  छीन  के  वो ले  गया  मेरी  मुझसे, 
और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |


दर ब दर अब तो भटकना मेरी  मजबूरी  है, 
तुमने रोका भी नहीं, तुमने पुकारा भी नहीं |


जिंदगी जंग  है  तुझसे  मेरी मरते दम तक, 
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |


मैं  तेरे  प्यार  को  तस्लीम  करूँ  तो  कैसे ?
मेरी जानिब तेरा हल्का सा इशारा भी नहीं |

                                             -  मजहर सयानावी

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