कड़वे जिसके बोल हैं उसका अपना बस थोड़े ही है गन्ना हो तो रस भी निकले बात में रस थोड़े ही है |
वो है चुर्रेबाज तो होगा हम भी हैं खुद्दारहम जैसे लोगों की उसके हाथ में नस थोड़े ही है |
सब जाने हैं हम हैं उसके सच्चे पक्के दोस्त
लेकिन उसकी गैर मुनासिब बात में रस थोड़े है |
आये तो जल्दी आ जा वरना फिर मिटटी का ढेर
बिस्तर पर बीमार तेरा दो चार बरस थोड़े है |
और थे जब हालात तो 'मजहर' बात थी जब कुछ और
अब तेरे हालात हैं ओर अब बात में जस थोड़े है |
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मेरी खुद्दार तबियत को गवारा भी नहीं,
जी हजूरी के सिवा दूसरा चारा भी नहीं |
जिन्दगी छीन के वो ले गया मेरी मुझसे,
और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |
दर ब दर अब तो भटकना मेरी मजबूरी है,
तुमने रोका भी नहीं, तुमने पुकारा भी नहीं |
जिंदगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
मैं तेरे प्यार को तस्लीम करूँ तो कैसे ?
मेरी जानिब तेरा हल्का सा इशारा भी नहीं |
- मजहर सयानावी
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