गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि : 32- मासूम गाजियाबादी

 

                         मासूम गाजियाबादी


आँखों की लबों की ज़ुल्फ़ों की रुख़सार की बातें मत करना |
इस मुल्क़ में मुश्किल और भी हैं सिंगार की बातें मत करना||

करनी ही ज़ुरूरी हैं तो चलो मज़लूम के ग़म की बात करें|
बेकार हैं बातें पायल की, झनकार की बातें मत करना||

तक़दीरे-वतन लिखने वालों नस्लों को भुगतनी पडती हैं|
बच्चों से किताबों के ज़रिये तक़रार की बातें मत करना||

मुफ़लिस की ज़ुबां बन जाता था बेक़स की हिमायत करता था|
ग़मख़ार नहीं व्यापार है अब अख़बार की बातें मत करना ||

ए दोस्त यहाँ के लोगों से चल शर्त है मिलवा तो दूंगा |
इस शहर के लोगों से मिलना किरदार की बातें मत करना||

ए पर्दानशीनों याद रहे शौहर की नक़ाबें पहन के अब |
जिस्मों की तिजारत होती है बाज़ार की बातें मत करना ||

तू ख़ूने-तमन्ना कर लेना ज़िद मत करना मासूम है तू |
ज़रदार की महफ़िल में जा कर नादार की बातें मत करना ||

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मेरे सामने मेरी कौम के सभी बेकसों का सवाल है |
तू अलग नहीं मेरे हमनशीं तेरी चाहतों का ख़याल है |

किसी रोज़ तू मेरे साथ चल मैं  यतीम बच्चों में ले चलूँ
तुझे ज़िन्दगी का पता चले ये ग़मों से कितनी निढाल है |

सरे-शाख़ फूल बुझे-बुझे जो दिखाई दें तो ये सोचना
यही मुफ़लिसी कि दलील है यही गुरबतों कि मिसाल है |

अभी तिलमिलाते वो भूक से मेरे सामने कई तिफ़्ल हैं
तेरे गेसुओं कि पनाह में अभी साँस लेना मोहाल है |

कभी बेईमानों कि चींख ने कभी कमसिनों कि पुकार ने
तेरी सिसकियों को दबा दिया मुझे ग़म है इसका मलाल है |

मेरी बात सुन यही फ़र्क है मेरी फ़िक्र में तेरी सोच में
मेरे दिल में दर्दे-जहान है तुझे सिर्फ अपना ख़याल है |
                                             -मासूम गाजियाबादी 

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