रविवार, 18 सितंबर 2011

कविता -ओमकार रघुवंशी








जालिम  देख
देख अरे  ओ जालिम  देख|
भूखा तन और नंगा पेट |

भूख नहीं फिर भी भरपूर, 
बरफी रबड़ी मोतीचूर ,
आम संतरा  ओ अंगूर ,
दे हमको बस रोटी एक | 

गली गली मस्जिद चुनवा दे,   
मंदिर तू सौ  सौ  बनवा  दे, 
गुरुद्वारा  या  चर्च  बना  दे 
मत  कर बस्ती मटियामेट |

नोटों  की  छाया  में  रह ले,
अम्बर से उसको मिलवा ले, 
अन्य ग्रहों पर वास बना ले, 
दे हमको बस छप्पर एक |

तेरे तन पर रेशम  तार,  
कुत्ता पहने झालरदार, 
ओछे महगें पहने नार,  
दे दे हमको चिथड़ा  एक |

नौ  बरसों का रामू छोरा, 
नन्हें कर में गुरु हथोडा, 
मेरा संगी बनाकर थोडा, 
मिटा रहा  हाथों  की रेख|

जैसे  कह  वैसे  रह  लेंगें, 
और सितम को भी सह लेंगें 
नहीं  जरा  हुत्कार   भरेंगे 
मगर न इनको  हमको बेच|

और नहीं बस और नहीं, 
लुटे बहुत बस और नहीं, 
आता गर तू बाज नहीं, 
देंगें  तेरे  घुटने  टेक | 

1 टिप्पणी:

  1. गली गली मस्जिद चुनवा दे,
    मंदिर तू सौ सौ बनवा दे,
    गुरुद्वारा या चर्च बना दे
    मत कर बस्ती मटियामेट |

    behad umda geet !!
    zahn o dil ko prabhavit karne wala

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