बड़ी मौत से ठनी मगर फिर टल ही गये अटल,
सड़ी देह मुश्किल जलती पर जल ही गये अटल ।
भारी बदन उठाना धरना मुश्किल से होता था,
घुटने तो बदले पर बिल्कुल बदले नहीं अटल ।
हमारी अस्थियों में जहर है गंगा में ना डालो,
तुम्हारी अस्थियों से क्या भला अमृत निकलता है ?
कभी भरपेट रोटी चैन से हमने नहीं खाई,
मगर तुमने न क्या खाया जो शव में सिर्फ शुद्धता है।
ना हम हैं पीटने लायक, ना हम पिटने के काब़िल है,
बताओ जिन्दगी में क्या कसम से हमको हासिल है ?
हमारा हौसला होता तो हम शामिल रहे होते,
मगरकाहिल हैं हम बुजदिल हैं हम,झूठे हैं बातिल हैं ।
अभी कुछ किश्त बाकि हैं तुम्हे वरदान देने की,
तुम अपने ईश पे भक्तों कभी विश्वाश मत ख़ोना।
वो फेंकेगें जरा कुछ जोर से आदत पुरानी है,
तुम्हारे चोट लग जाये अकेले बैठ के रोना।
कभी गाली कभी गोली कभी ले सूरतें भोली,
किसे आँखे दिखाते हो किसे तुम आजमाते हो।
अरे बहरूपियों सारे तुम्हारे रूप देखे हैं,
उछलते कूदते क्या हो, क्या हाथों को नचाते हो।
डरे हैं ना कभी तुमसे, डरेंगे ना कभी भी हम ,
तुम अपना जोर दिखलाओ हम अपना दम दिखाते है।
डरे रहते हो तुम बेखौप लोगों का कत्ल करके ,
निडर हम बोलते लिखते हैं और फिर मुस्कराते हैं।
झूठ कहूँ तो लफ्जों का दम घुटता है, सच बोलूँ तो लोग खफ़ा हो जाते हैं। –--- गुलजार
सड़ी देह मुश्किल जलती पर जल ही गये अटल ।
भारी बदन उठाना धरना मुश्किल से होता था,
घुटने तो बदले पर बिल्कुल बदले नहीं अटल ।
हमारी अस्थियों में जहर है गंगा में ना डालो,
तुम्हारी अस्थियों से क्या भला अमृत निकलता है ?
कभी भरपेट रोटी चैन से हमने नहीं खाई,
मगर तुमने न क्या खाया जो शव में सिर्फ शुद्धता है।
ना हम हैं पीटने लायक, ना हम पिटने के काब़िल है,
बताओ जिन्दगी में क्या कसम से हमको हासिल है ?
हमारा हौसला होता तो हम शामिल रहे होते,
मगरकाहिल हैं हम बुजदिल हैं हम,झूठे हैं बातिल हैं ।
अभी कुछ किश्त बाकि हैं तुम्हे वरदान देने की,
तुम अपने ईश पे भक्तों कभी विश्वाश मत ख़ोना।
वो फेंकेगें जरा कुछ जोर से आदत पुरानी है,
तुम्हारे चोट लग जाये अकेले बैठ के रोना।
कभी गाली कभी गोली कभी ले सूरतें भोली,
किसे आँखे दिखाते हो किसे तुम आजमाते हो।
अरे बहरूपियों सारे तुम्हारे रूप देखे हैं,
उछलते कूदते क्या हो, क्या हाथों को नचाते हो।
डरे हैं ना कभी तुमसे, डरेंगे ना कभी भी हम ,
तुम अपना जोर दिखलाओ हम अपना दम दिखाते है।
डरे रहते हो तुम बेखौप लोगों का कत्ल करके ,
निडर हम बोलते लिखते हैं और फिर मुस्कराते हैं।
झूठ कहूँ तो लफ्जों का दम घुटता है, सच बोलूँ तो लोग खफ़ा हो जाते हैं। –--- गुलजार
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