तुम तो अटलबिहारी थे यूँ टल तो ना सकते थे,
पड़े हुये थे बिस्तर पर ही चल भी ना सकते थे ?
ऐसा भी क्या हुआ बिना जो बोले चले गये ? कहाँ तुम चले गये?
पड़े हुये थे बिस्तर पर ही चल भी ना सकते थे ?
ऐसा भी क्या हुआ बिना जो बोले चले गये ? कहाँ तुम चले गये?
हाथी जैसा बदन तुम्हारा, अजगर जैसी चाल।
बगुले जैसी आँखे मूँदे, ओढे गेंडा खाल।
खोज रहे वो कहाँ है साँचा जिसमें ढले गये ?
कहाँ तुम चले गये?
कहाँ तुम चले गये?
पड़े पड़े बिस्तर पर सड़ते, भोगा था कर्मों को ।
सीख नहीं मिल पाई फिर भी भक्तों,बेशर्मों को।
मिथ्या आदर्शों के छल से सारे छले गये।।
कहाँ तुम चले गये?
कहाँ तुम चले गये?
देशभक्ति का स्वाँग रचाया हाथ बहुत मटकाये।
गद्दारी का दाग था गहरा, छूटा नहीं छुटाये ।
श्रीराम की साबुन से भी कितना मले गये। कहाँ तुम चले गये ?
श्रीराम की साबुन से भी कितना मले गये। कहाँ तुम चले गये ?
देह धरी थी जहाँ, वहाँ से बास बहुत आती है ।
सच कहने को जुबाँ फड़कती फट जाती छाती है।
तमगे उँचे रहे तुम्हारे पर तुम तले गये ।।
कहाँ तुम चले गये?
अभी काल के भाल पे लिखना कितना ही बाकि था।
बदले थे जो घुटने उनका घिसना भी बाकि था ।
ऐसा लगता है जैसे हम सब ही छले गये । कहाँ तुम चले गये ?
बदले थे जो घुटने उनका घिसना भी बाकि था ।
ऐसा लगता है जैसे हम सब ही छले गये । कहाँ तुम चले गये ?
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