रविवार, 26 अगस्त 2018

अभी ठहरो उतरने दो जरा ये बाढ का पानी,                     
पता चल जायेगा डूबी हमारी किसलिये कश्ती ?
अभी लोगों से क्या बोलें पता खुद ही नहीं हमको 
 कि जर्जर हो गयी कश्ती या भारी हो गयी अस्थि।
          
हुमायूँ हूँ, मेरे भाई तो सब रखते अदावत हैं,                 
मगर कर्णावती राखी ना मुझको भेजती कोई।               
नया ये दौर कैसा है ? समझ में कुछ नहीं आता,               
भरोसा भाई पे करती बहिन ना दीखती कोई 

कई लोग ऊपर चढ गये मेरी पीठ अब भी झुकी हुई,           
 जिसे ऊँचा दिखने की चाह हो, मेरी पीठ पे आ चढे अभी।
यूँ इधर उधर की बात से ना बनेगा कोई काम कुछ,             
जिसे कामियाबी चाहिये मुझे गालियाँ दे बढे़ अभी ।

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