वो डंके की चोट पे बोले, शाह नया है
नहीं हुकुमत की आदत है शाह नया है।
धरती पर बैठे लोगों यूं मत चिल्लाओ
बैठा है जो आज तख़्त पर शाह नया है।
ढाका से काबुल तक मेरा वतन एक है
जब चाहूँगा जहाँ चाहूँगा वहीँ रहूँगा .
न कोई तिलमिलाता है, न कोई मुस्कराता है
जिसे पढ़कर न कोई धीमें धीमें गुनगुनाता है।
बहुत फरमाईसें ऐसी बहुत हैं ख्वाहिशें ऐसीं
लिखूं ऐसा, मगर कैसे? मुझे लिखना न आता है।
न कोई तिलमिलाता है, न कोई मुस्कराता है
जिसे पढ़कर न कोई धीमें धीमें गुनगुनाता है।
बहुत फरमाईसें ऐसी बहुत हैं ख्वाहिशें ऐसीं
लिखूं ऐसा, मगर कैसे? मुझे लिखना न आता है।
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