मंजुल मयंक
एक
रात ढलने लगी, चाँद बुझने लगा,
तुम न आए, सितारों को नींद आ गई ।
धूप की पालकी पर, किरण की दुल्हन,
आ के उतरी, खिला हर सुमन, हर चमन,
देखो बजती हैं भौरों की शहनाइयाँ,
हर गली, दौड़ कर, न्योत आया पवन,
बस तड़पते रहे, सेज के ही सुमन,
तुम न आए बहारों को नीद आ गई ।
व्यर्थ बहती रही, आँसुओं की नदी,
प्राण आए न तुम, नेह की नाव में,
खोजते-खोजते तुमको लहरें थकीं,
अब तो छाले पड़े, लहर के पाँव में,
करवटें ही बदलती, नदी रह गई,
तुम न आए किनारों को नींद आ गई ।
रात आई, महावर रचे साँझ की,
भर रहा माँग, सिन्दूर सूरज लिए,
दिन हँसा, चूडियाँ लेती अँगडाइयाँ,
छू के आँचल, बुझे आँगनों के दिये,
बिन तुम्हारे बुझा, आस का हर दिया,
तुम न आए सहारों को नीद आ गई ।
दो
जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा
उस गली से हमें तो गुज़ारना नहीं |
जो डगर तेरे द्वारे पे जाती ना हो
उस डगर पे हमें पाँव रखना नहीं |
जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा.........
ज़िन्दगी में कई रंगरलियाँ सही
हर तरफ मुस्कुराती ये कलियाँ सही
खूबसूरत बहारों की गलियाँ सही
जिस चमन में तेरे पग में कांटे चुभे
उस चमन से हमें फूल चुनना नहीं |
जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा ..........
हाँ ये रस्में ये कसमें सभी तोड़ के
तू चली आ चुनर प्यार की ओढ़ के
या चला जाऊंगा मैं ये जग छोड़ के
जिस जगह याद तेरी सताने लगे
उस जगह एक पल भी ठहरना नहीं |
जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा ............
उस गली से हमें तो गुज़ारना नहीं
जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा |
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