बुधवार, 11 अप्रैल 2012

नन्हा संगतराश














 पत्थरों के बीच 


मूर्ति तराशता
नन्हा संगतराश
आसमां में उड़ते
पंछियों को देख
अपना भी आसमां
तलाशता रहा ॥
एक दिन मैं भी
पंछी सा उड़ूँगा
इन्ही पंछियों की तरह
मेरा भी एक दरख़्त होगा
और एक आसमां
आहा !उसका दरख़्त
और उसका आसमां
सोचता रहा ॥
और खामोश....
पत्थरों के बीच
मूर्ति तराशता रहा ॥
दिन गुज़रते रहे
छैनी - हथौड़े
चलते रहे
मूर्तियाँ गढ़ती गईं
शोहरत बढ़ती गई
वो नन्हा संगतराश
अब बड़ा हो चुका था ॥
पर उसे आज भी
उस आसमां की तलाश थी
जिसमें वो पंछी बन
उड़ सके
जहाँ बस अपने सपने ही
गढ़ सके
और आज
अनायास ही हड़बड़ा कर
सामने खिड़की से झाँका
खुशी से बुदबुदाया ,
आहा !
उस दरख़्त पर सुंदर पक्षी !!!!
तभी एक टीस उठी
और सीने में अंदर तक
धंस गई
होंठो से एक आह के साथ
दो शब्द
वातावरण में गूँजे
दरख़्त दरख़्त
पर मेरा दरख़्त कहाँ ?.........पूनम 'मनु'












ننھا
 سگتراش

پتھروں کے درمیان
مورتی تراشتا
ننھا سگتراش
آسماں میں اڑتے
پچھيو کو دیکھ
اپنا بھی آسماں
تلاشتا رہا.
ایک دن میں بھی
پنچھی سا اڑوگا
انہی پچھيو کی طرح
میرا بھی ایک درخت ہوگا
اور ایک آسماں
اها! اس کا درخت
اور اس کا آسماں
سوچتا رہا.
اور خاموش ....
پتھروں کے درمیان
مورتی تراشتا رہا.
دن گزرتے رہے
چھےني - هتھوڑے
چلتے رہے
مورتیاں گڑھتي گئیں
شہرت بڑھتی گئی
وہ ننھا سگتراش
اب بڑا ہو چکا تھا.
پر اسے آج بھی
اس آسماں کی تلاش تھی
جس میں وہ پنچھی بن
اڑ سکے
جہاں بس اپنے خواب ہی
گڑھ سکے
اور آج
اچانک هڑبڑا کر
سامنے کھڑکی سے جھاكا
خوشی سے بدبدايا،
اها!
اس درخت پر خوبصورت پرندے!!!!
تبھی ایک ٹیس اٹھی
اور سینے میں اندر تک
دھںس گئی
ہوںٹھو سے ایک آہ کے ساتھ
دو لفظ
ماحول میں گوجے
درخت درخت
پر میرا درخت کہاں؟ ......... پونم 'من'

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