गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

कंसावतार कन्या हत्यारे /كساوتار لڑکی قاتل



खुश खबरी.खुश खबरी. एक नही तीन तीन .....लो 

१-अफरीन भी चली गई दुनिया छोड़ के उम्र महज ३ महीने, उसके पिता ने उसे इसलिए मार दिया क्योकि वो लड़की थी। सुना है  उसका पिता ड्रग लेता था नसे में रहा होगा तभी  तो उसे सिगरेट से जलाया, दांतों से काटा फिर उसके सर को दिवार में पटक दिया। 

२-फलक उम्र महज दो साल न बाप का पता न माँ का aiims देल्ही में भर्ती थी मारा गया उसे,गाली दी गई। 
३-ग्वालियर उम्र महज दो दिन बच्ची ...का नाम करण तक नही हुआ ऊँगली पिता के ऊपर है।पोस्टमार्टम हुआ जांच रिपोर्ट में बच्ची के शरीर में निकोटिन मिलने की पुष्टि हुई है।..... 
       गलत किया जा रहा हे पोस्टमार्टम इन बच्चियों का नही इस समाज का होना चाहिए, मै खुश इसलिए हूँ क्योकि अच्छा हुआ मर गई, वरना बाप को कितनी मेहनत करनी पड़ती उसकी शादी के लिए, दहेज़ देना पड़ता,  लिखना पढ़ाना  पड़ता,गन्दी नजरो से बचाना पड़ता। सूख  गया यही पे बिचारे बाप का दिल, अच्छा हुआ तुम इस गंदे समाज से चली गई मेरी प्यारी बहनों वर्ना ,तुम अगर थोड़ी बड़ी हो जाती तो तुम्हारा  भी एसमएस  बनाया जाता। तुम्हारे तस्वीर से गले को काटकर एक नंगी तस्वीर में चिपका दिया जाता, अगर तुम सब से बच जाती तो रात के अन्धेंरे  में कैसे  बचती ...किसी खबर का हिस्सा बन जाती "देल्ही में सामूहिक बलात्कार" तुम खुश रहो, तुम्हे रोज के जिल्लत से आजादी मिल गई है। मै तुम्हारे कब्र में फूल तो नही चढ़ा  सकता हाँ लेकिन इस घटिया सोच वालो पर जरुर चढ़ा  दूंगा।तुमको तो बोलना भी नही आता था वरना तुम क्या बोलती .... थू थू थू ऐसे समाज पे, ये खरीदेंगे एक लड़की अपने लड़के के लिए जिनकी कोई अवकाद नही, अबला न बन बहना। इस बीमार मानसिकता   का इजाल मात्र उनकी आंख निकाल के किया जा सकता है  क्योकि ये नही सुधरेगें  इनकी आंख वह जाएगी|"अबला बनी रहो चुपचाप सहो कुछ न कहो" इस समाज का नारा हें ...
चेहरा भी छुपा ले तो भी गिद्ध वाली नजरो से नही बच पाती हो।
वो दुकान में बिकने वाली चीज़ की तरह घूरी जाती हें.........................
शर्मीली, नाजुकता, ख़ामोशी इतनी भी अच्छी नही,आंचल जरा सम्हालो ...
जहा अस्मिता का सवाल आये तुम लड़ जाओ, उसकी आवाज से आवाज मिलाओ, 
अस्तित्व का सवाल है।  वो तुम्हे जिन्दा जलाये तो तुम भी उसे जिन्दा जला दो
  अनूप  अवस्थी              
                                                
خوش خبری. خوش خبری. ایک نہیں تین تین ..... لو
1 - افرین (بھٹکل) بھی چلی گئی دنیا چھوڑ کے عمر محض 3 ماہ، اس کے والد نے اسے اس لئے مار دیا کیونکہ وہ لڑکی تھی. سنا ہے اس کا والد ڈرگ لیتا تھا نسے میں رہا ہو گا تبھی تو اسے سگریٹ سے جلایا، دانتوں سے کاٹا پھر اس کے سر کو دوار میں پھینک دیا.
2 - فلک عمر محض دو سال نہ باپ کا پتہ نہ ماں کا aiims دےلهي میں بھرتی تھی مارا گیا اسے، گالی دی گئی.3 - گوالیار عمر محض دو دن بچی ... کا نام کرن تک نہیں ہوا اوںگلی باپ کے اوپر ہے. پوسٹ مارٹم ہوا جانچ رپورٹ میں بچی کے جسم میں نكوٹن ملنے کی تصدیق ہوئی ہے ......
       
غلط کیا جا رہا ہے پوسٹ مارٹم ان بچیوں کا نہیں اس سماج کا ہونا چاہئے، مے خوش اس لئے ہوں کیونکہ اچھا ہوا مر گیا، ورنہ باپ کو کتنی محنت کرنی پڑتی اس کی شادی کے لئے، دهےذ دینا پڑتا، لکھنا پڑھانا پڑتا، گندی نجرو سے بچانا پڑتا. سوکھ گیا یہی پہ بچارے باپ کا دل، اچھا ہوا تم اس گندے معاشرے سے چلی گئی میری پیاری بہنوں ورنہ، تم اگر تھوڑی بڑی ہو جاتی تو تمہارا بھی اےسمےس بنایا جاتا. تمہارے تصویر سے گلے کو کاٹ کر ایک ننگی تصویر میں چپکا دیا جاتا، اگر تم سب سے بچ جاتی تو رات کے اندھےرے میں کیسے بچتی ... کسی خبر کا حصہ بن جاتی "دےلهي میں اجتماعی آبروریزی" تم خوش رہو، تمہیں روز کے جللت سے آزادی مل گئی ہے. مے تمہارے قبر میں پھول تو نہیں چڑھا سکتا ہاں لیکن اس گھٹیا سوچ والو پر ضرور چڑھا دوں گا. تم کو تو بولنا بھی نہیں آتا تھا ورنہ تم کیا بولتی .... تھو تھو تھو ایسے سماج پہ، یہ كھريدےگے ایک لڑکی اپنے لڑکے کے لیے جن کی کوئی اوكاد نہیں، ابلا نہ بن بہنا. اس بیمار ذہنیت کا اجال صرف ان کی آنکھ نکال کے کیا جا سکتا ہے کیونکہ یہ نہی سدھرےگے ان کی آنکھ وہ جائے گی | "ابلا بنی رہو چپ چاپ سہو کچھ نہ کہو" اس سماج کا نعرہ هے ...چہرہ بھی چھپا لے تو بھی گددھ والی نجرو سے نہیں بچ پاتی ہو.وہ دکان میں فروخت ہونے والی چیز کی طرح گھوري جاتی هے .........................
شرمیلی، ناجكتا، خاموشی اتنی بھی اچھی نہیں، اچل ذرا سمهالو ...جہا اسمتا کا سوال آئے تم لڑ جاؤ، اس کی آواز سے آواز ملاو،وجود کا سوال ہے. وہ تمہیں زندہ جلائے تو تم بھی اسے زندہ جلا دو
                               
- انوپ اوستھي

4 टिप्‍पणियां:

  1. शिखा जी और शुक्ल जी एक अच्छी पोस्ट बहुत दिन बाद आपको ब्लॉग पर खींच लायी इसके लिए आपका शुक्रिया और इसके लेखक अनूप अवस्थी जी का भी शुक्रिया।यह ब्लॉग व्यक्तिगत लेखन के लिये नहीं है साथी लेखक ऐसे ही ज्वलंत विषयों पर लिखेंगें तो यह कारवाँ बढ़ता जायेगा ।

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  2. अनूप जी क्या खूब कहा आपने सचमुच पोस्टमार्टम बच्चियों का नहीं समाज का होना चाहिए !!!जवलंत बहस और मुद्दा !इसपर विस्तृत बहस की आवश्यकता है। शुक्रिया आपका

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