बुधवार, 6 जुलाई 2011

अध्ययन - इतिहास का दूसरा सबक- मोहम्मद गौरी



              1176 ई0 में शहाबुद्दीन गौरी ने अच्छ पर चढ़ाई की | किले को चारों तरफ से घेर लिया गया | किन्तु शीघ्र ही उसे अनुभव हो गया इस प्रकार किला नहीं जीता जा सकता| उसने राजा की रानी के पास सन्देश भेजा कि ' यदि तुम्हारे प्रयत्न से किले पर विजय प्राप्त कर लूँ तो तुमको अपनी रानी बनाऊंगा |' रानी ने संदेशा भेजा कि मेरी आयु तो अब ऐसी नहीं रही कि बादशाह कि मलिका बनूँ , हाँ मेरी लड़की इस योग्य है कि वह शिहाबुद्दीन जैसे वीर पुरुष कि जीवन संगिनी बन सकती है |जब विजयी हो जाएं और किले पर अधिकार कर लें तो मेरी लड़की को जीवन संगिनी बना लें, लेकिन मेरी संपत्ति पर अधिकार न करें |'शहाबुद्दीन ने रानी कि सब शर्तें स्वीकार कर लीं |रानी ने दो तीन दिन में ही राजा का काम तमाम कर दिया | शाहबुद्दीन ने राजा कि लड़की से शादी करके उसे इस्लामी शिक्षा के लिए गजनी भेज दिया | लेकिन वह इन विश्वासघातियों से नफ़रत करता था | दो वर्ष के अन्दर रानी और उसकी लड़की कि म्रत्यु हो गयी |
          1191 में तराइन कि पहली लड़ाई में शा
हबुद्दीन गोरी प्रथ्वीराज चौहान के भाई खान्देराय के आक्रमण से घायल हो कर गिर पडा और मूर्क्षित हो गया | कहा जाता है कि उसके अमीर उसे रणक्षेत्र में घायल पडा छोड़कर भाग आये| हिन्दू सैनिक उसे पहचानते नहीं थे | जब कुछ अन्धेरा हुआ तो शहाबुद्दीन गोरी के गुलामों का एक दल अपने बादशाह को ढूँढता हुआ उसके पास से गुजरा | उस समय वह कुछ- कुछ होश में आ चुका था | अपने गुलामों कि आवाज पहचानकर उसने उन्हें आवाज दी| स्वामिभक्त गुलाम अपने अमीर को सारी रात अपने काँधे पर लादकर भगोडे अमीरों के पास पहुंचें |
(शहाबुद्दीन मोहम्मद गोरी ने हिन्दुस्तान का शासक भी किसी अमीर या सम्बन्धी को नहीं गुलाम कुतबुद्दीन ऐबक को ही बनाया-'मधुर' )
             गोरिस्तान पहुँच कर शाहबुद्दीन ने युध्द क्षेत्र से भागने वाले अफगानी अमीरों से तो कुछ नहीं कहा लेकिन खिलजी और गौर अमीरों को कडा दंड दिया | उसने तोबरों में कच्चे जों भरवाकर उनकी गरदनों में लटकवा दिए और उसी दशा में सारे नगर में घुमाया| फिर अमीरों को कच्चे जों खाने के लिए मजबूर किया| उसने वर्षों तक उनसे दुआ सलाम का भी संपर्क न रखा| स्वंय भी हिन्दुओं से पराजित होने पर इतना लज्जित हुआ कि उसी दिन से उसने न तो अपनी बीवी का मुंह देखा और न ही कपडे बदले | एक वर्ष बाद उसने फिर हिन्दुस्तान पर फिर हमला किया जिसमें उसकी जीत हुई | [प्रथ्वीराज से सोलह बार हारने की बात प्रमाणित नहीं होती है -'मधुर' ]
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               मुस्लिम हमलावरों से परेशान खख्खरों ने ब्रह्म्मिक नामक स्थान पर 14 मार्च 1206 ई० में शहाबुद्दीन गोरी कि ह्त्या कर दी | शाहबुद्दीन अपने शिविर में बैठा हुआ कूच की तैयारी कर रहा था | २० खख्खर किसी प्रकार छुप छुपाकर उस के तम्बू तक पहुँच गए | एक खख्खर ने बढाकर दरबान पर चाकू से हमला किया | उससे मची अफरा तफरी के माहौल का फायदा उठाकर खख्खर शाही शिविर के परदे को फाड़कर घुस गए तथा शहाबुद्दीन को उठाने से पहले ही क़त्ल कर डाला |
 
-- ' तारीखे ए फ़रिश्ता ' ले० मुल्ला मोहम्मद कासिम हिन्दुशाह फ़रिश्ता [इतिहासकार]
प्रस्तुत कर्ता : अमरनाथ 'मधुर'



    

   

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतर ऐतिहासिक और ज्ञानवर्धक जानकारी , बधाई

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  2. kitna jhoot bola hai. gauri ko kuchh kabaaliyo ne nahi balki khud Prithviraj chauhan ne mara tha. jab gauri ko 17 baar parajit kiya aur uske mafi maangne par chhor diya (jo ki Prithviraj ki murkhta thi) aur 18bi baar Prithviraj ke haarne par us gauri ne unki aanke nikal li thi tab gauri ne apni sabha main unse apni dhanu-vidya ka kaushal dikhane ko kaha tab unke miter aur kavi चन्दबरदाई ne kavita bol kar Prithviraj ko ishara kiya ki gauri kanha baitha hai tab unhone teer chala kar unki hatya kar dee fir aapas main ek dusre ko maar kar apni lila samapt kar li. lagta hai ki ye likhne wala Communist hai

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    1. ji bilkul amit ji iss blog me bahot sari bhule he aur writter koi communist hi malum hota he baki ke blog ke title bhi dekhiye

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