शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

गीत-मेरा प्यार - अमरनाथ 'मधुर '


                                                                      मेरा प्यार


मेरा प्यार नदी की धारा, मेरा प्यार नदी की धारा।
एक किनारा मैं हूँ   साजन और दूसरा तू है किनारा।।
                                       मेरा प्यार नदी की धारा ।। 

एक  करीब  आता है जितना  दूर  दूसरा  उतना  होता 
पाने के अरमान  संजोये,  पाने के  अवसर  सब  खोता।
फिर भी क्या नियति है देखो साथ- साथ रहना है उनको
ना वो अलग हैं ना वो मिलेगें मौन हुआ उनमें समझौता।
ऐसा ही कुछ जीवन अपना क्यूँ   नाराज सनम तुम मेरे
कैसे हाथ पकडने दूँ मै जग जलता है देख के  सारा।
                                            मेरा प्यार नदी की धारा।।        

कितनी  सदियॉं  बीत गयीं है, प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में
अपनी  वो  संदेशवाहिनी  जाने  खोई  कहॉं  लहर ।
आकर  सब  हमराज  तुम्हारे  बुलबुले से फूट रहे हैं
जाने  क्या  चर्चा  करते  हैं  मेरी  सीपी  शंख उधर ।
तुम  अपने  हमराज  संभालो  वरना  एक  बूंद  पानी पी
कर  देगी  बदनाम  टिटहरी सारे जग  में प्यार हमारा।
                                           मेरा प्यार नदी की धारा।।                


गिरि,गह्यवर,वन,मरूभूमि में झरने, झील रूप रच- रचकर
नीर वही बहता रहता है, बरसा था जो बादल बनकर |
एक दिवस वह भी आता है पीछे रह जाते दोनों तट
सीने के सागर से लगती है जलधारा खुद ही जाकर |
साजन जन्मे बार बार हम, फिर सरिता के कूल बने हम 
दोहराया जायें हॉं यूँ  ही फिर प्रणय इतिहास हमारा ।
                                           मेरा प्यार नदी की धारा।।


3 टिप्‍पणियां:

  1. मनोभावों का मार्मिक चित्रण है.

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  2. गिरि,गह्यवर,वन,मरूभूमि में झरने, झील रूप रच- रचकर
    नीर वही बहता रहता है, बरसा था जो बादल बनकर |
    एक दिवस वह भी आता है पीछे रह जाते दोनों तट
    सीने के सागर से लगती है जलधारा खुद ही जाकर |

    बहुत सुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए रचना ....

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