श्री राम लखन पटेल इलाहाबाद जनपद के बाकराबाद गाँव के रहने वाले हैं| और रेल डाक सेवा मेरठ मेरठ कैंट में कार्यरत हैं | उनके लेखन में देश की दुर्दशा के मार्मिक चित्र और परिवर्तन के बागी स्वर मिलते हैं |
दिल्ली लुटने वाली है
भारत में स्वारथ की ऐसी आंधी उठने वाली है |
जाग देश रखवालों से ही दिल्ली लुटने वाली है ||

हम जियें अत: वे मात्रभूमि पर शीश चढ़ाकर चले गये |
झुकने न दिया मस्तक अपना बागी कहलाकर चले गये,
अपने सीने की धरती पर झंडा फहराकर चले गये |
उनके बलिदानों पर इनकी चाल सियासी गाली है || जाग देश ||
है किसको परवाह यहाँ अब लाल किला या ताज बिके,
गंगा यमुना की लहरें बिक जायें, पर्वरातराज बिके |
फूल- फूल हर कलि -कलि का तूफानी अंदाज बिके,
बिक जाए केसरिया चुनर चाहे माँ की लाज बिके|
सावधान! पावों की अपनी धरती बिकने वाली है || जाग देश ||
इसकी भी परवाह नहीं सोने के भाव अनाज बिके,
दिन भर की मजदूरी की कीमत पर आलू, प्याज बिके |
तन ढकने के लिए जतन से पहले तन की लाज बिके,
रोजी रोटी के चक्कर में चूल्हा, चौका, छाज बिके |
ठग चोरों की बढ़ी सम्पदा , निर्धन की बदहाली है ||जाग देश ||
पीढ़ी दर पीढ़ी जनता मर जाती यहाँ अभावों में |
स्वर्ग बना देंगें गाँवों को करते शोर चुनावों में,
पर शिक्षित नारी पनिहारिन- घसिहारन ही गाँवों में |
स्वतन्त्र्तता की स्वरण जयंती पर कितनी कंगाली है || जाग देश ||
लोकतंत्र की रक्षा की गतिविधियाँ सारी जाली हैं,
जनता की देहरी पर इनका हर ऑंसू घडियाली है|
बहुमत की रक्तिम बूंदों से जब भर जाती प्याली है,
जलते दिये निठुर अधरों पर मनती रोज दिवाली है |
इनको बतला दो अब इनकी दाल न गलने वाली है || जाग देश||
अभी समय है, कहते है कि दिल्ली सात-आठ बार तहस-नहस हो चुकी है,
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