गुरुवार, 2 जून 2011

कविता -दिल्ली लुटने वाली है - राम लखन पटेल










श्री राम लखन पटेल इलाहाबाद जनपद के बाकराबाद गाँव के रहने वाले हैं| और  रेल डाक सेवा  मेरठ मेरठ  कैंट  में कार्यरत हैं | उनके लेखन में देश की दुर्दशा के मार्मिक चित्र और परिवर्तन के बागी स्वर मिलते हैं | 





दिल्ली लुटने वाली है 

भारत में स्वारथ  की ऐसी आंधी उठने  वाली है | 
जाग देश रखवालों से ही दिल्ली लुटने वाली है || 

आये  कितने युग पुरुष   यहाँ  राहें दिखला कर चले गये, 
हम जियें अत:  वे मात्रभूमि पर शीश चढ़ाकर  चले गये | 
झुकने न दिया मस्तक अपना बागी कहलाकर चले गये, 
अपने सीने की धरती पर झंडा फहराकर चले गये |
उनके बलिदानों  पर  इनकी चाल सियासी गाली है || जाग देश ||

है किसको परवाह यहाँ अब लाल किला या ताज बिके, 
गंगा यमुना की लहरें बिक जायें, पर्वरातराज बिके |
फूल- फूल हर कलि -कलि  का तूफानी अंदाज बिके,
बिक जाए केसरिया चुनर चाहे माँ की लाज बिके|
सावधान! पावों की अपनी धरती बिकने वाली है || जाग देश  || 

इसकी भी परवाह नहीं सोने के भाव अनाज बिके, 
दिन भर की मजदूरी की कीमत पर आलू, प्याज बिके |
तन ढकने  के लिए  जतन  से पहले तन की लाज बिके,  
रोजी रोटी के चक्कर में चूल्हा, चौका,  छाज बिके |  
ठग चोरों की बढ़ी सम्पदा , निर्धन की बदहाली है ||जाग देश || 

निर्माणों की कल्प -कथायें खो जाती अफवाहों में, 
पीढ़ी  दर पीढ़ी जनता मर जाती यहाँ अभावों में |
स्वर्ग बना देंगें गाँवों  को करते शोर चुनावों में, 
पर शिक्षित नारी पनिहारिन- घसिहारन ही गाँवों में |  
स्वतन्त्र्तता  की  स्वरण  जयंती पर कितनी कंगाली है || जाग देश || 

लोकतंत्र की रक्षा की गतिविधियाँ सारी जाली हैं,  
जनता की देहरी पर इनका हर ऑंसू   घडियाली है|  
बहुमत  की रक्तिम  बूंदों से जब भर जाती प्याली है,  
जलते दिये निठुर अधरों पर मनती रोज दिवाली है |
इनको  बतला दो अब इनकी दाल न गलने वाली है || जाग देश|| 

1 टिप्पणी:

  1. अभी समय है, कहते है कि दिल्ली सात-आठ बार तहस-नहस हो चुकी है,

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