बुधवार, 1 जून 2011

गीत -गाँव और बचपन -डॉ रामगोपाल 'भारतीय'





[डॉ0  रामगोपाल 'भारतीय ' गीत और गजल के सुकोमल कवि हैं | आपकी साहित्यिक  सक्रियता और सबको साथ लेकर चलने का गुण आपको लोकप्रिय  बनाता है | आप अखिल भारतीय साहित्य कला मंच के अध्यक्ष हैं और  अनेक संस्थाओं में सक्रिय सहयोगी हैं | ] 




गीत -1


गाँव और बचपन का रिश्ता , आँखे भूल नहीं पाती हैं|  
शहरी तपती धूंप में मुझको घर की याद बहुत आती है |

बरगद के नीचे बच्चों का अपने हाथ मिलाकर चलना,
पनघट से पानी लेकर आती दुल्हन का पैर फिसलना| 
रोज शाम को चोपालों पर तेरी मेरी उसकी बातें 
सारी रात कहानी किस्से, उस पर लालटेन का जलना|  

घर  में  चाची जब चाचा से घूँघट में ही बतलाती है | 
शहरी तपती धूंप  में मुझको घर की याद बहुत आती है ||

रिश्तों -नातों की गरमाहट अब ठंडी -ठंडी लगती  है, 
चौकी, थाना और कचहरी ,गिद्धों की मंडी लगती है |
कहाँ गए सावन के झूले कहाँ गई वे ईद दिवाली 
अब दिल की चिड़िया सोने  के पिंजरे में बंदी लगती है| 

रोज सुबह का वादा करके, रात सभी को बहकाती है | 
शहरी तपती धूंप  में मुझको , घर की याद बहुत आती है| |

2 टिप्‍पणियां: