रविवार, 29 मई 2011

कविता -- - डॉ0 सत्यपाल सत्यम्

                             
       
[ डॉ सत्यपाल सत्यम हिंदी काव्य मंचों के लोकप्रिय  कवि हैं | कविता और व्यवहार में मृदुता और स्पष्ट वैचारिक  प्रतिबध्दता आपकी विशेषता है | आपकी एक विशेषता यह भी है कि आपने संस्थागत  शिक्षा प्राप्त नहीं की, वरन  मिडिल क्लास  के बाद स्वाध्याय से शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न रोजगार करते हुये वर्त्तमान में अध्यापक पद पर कार्यरत हैं |आपकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं |]   
                                                          

   गॉंव पागल हो गया

कोई झूमर कोई  घुंघरू   कोई पायल हो गया।
कौन आया गॉंव में ये गॉंव पागल हो गया ।।


रूप  फैलाते  गगन  में  वे सितारे  हो गये
वे  नहाकर  चॉंदनी  में  ओर  प्यारे हो गये।
झील सी ऑंखों में डूबे फिर किनारे हो गये
सब  लगे ये  सोचने  बस, वे हमारे हो गये।
कोई बिंदिया  कोई निदिया कोई काजल हो गया।




देह की नगरी में उतरी जब नजर की चॉंदनी
धडकनों के साज पर बजने  लगी है रागनी।
झूमकर  संयम  सुनायें  कुछ रसीली बोलियॉं
हर गली हर मोड पर हैं, मनचलों की टोलियॉं
कोई  दीवाना  सयाना  कोई  घायल हो गया।।


जो निहारे वह तनिक सब आईना बन जायेंगें
प्यास इतनी है अधर पर आग भी पी जायेंगें।
छू गया दामन जो उसका बह चली पुरवाईयॉं 
चहचहाये मन पखेरू,महकती  अमराइयाँ   ।
नील नभ कोई, कोई बनजारा, बादल हो गया।।
                                            -- डॉ0 सत्यपाल सत्यम्


2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छे भावों की अभिव्यक्ति हुयी है इस कविता में.

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  2. डा०साहब, जब इतनी प्यारी कविता, उतना प्यारा फ़ोटो, तो भला कौन पागल नहीं होगा,

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