रविवार, 10 जुलाई 2011

गीत -रामकुमार गौड

                श्री रामकुमार गौड सेवा  निवर्त्त बैंक अधिकारी हैं | आप सरल  और मिलनसार स्वभाव के स्वामी हैं | आपकी  अभिरुचि साहित्यिक  और उच्च स्तरीय  है | आपकी पुस्तक गीत संग्रह 'थिरक गयी नैया 'सहज प्रकाशन मुजफ्फर नगर [उ0 प्र०] से प्रकाशित हुई है|
           



             तरू़-पीडा          
मै जीर्ण.शीर्ण तरू इस पथ का, 
अब पात कहॉं,और छॉंव कहॉं?

है पातहीन डाली. डाली, 
बिखरे तिनके वह नीड नहीं
पंछी सब पंख पसार उडे,
कलरव करती वह भीड नहीं।

अब मन सूखी सरिता जैसा 
पतवार कहॉं और नाव कहॉं?     


थी प्यार लुटाती पुष्प लता, 
भरकर निशिदिन आलिंगन में
मुस्काया तन का पात- पात 
और हर्षाया मन ही मन में ।

आये कोई क्यों प्यार करे 
वह ठौर कहॉं ठहराव कहॉं ?

हर दिशा हुई पतझर-पतझर 
मधुमास अचानक रूठ गया
ऑंधी आयी तन कॉंप उठा 
भीतर.भीतर कुछ टूट गया ।

अब प्रीत गीत की कौन कहे, 
रूकते न पथिक के पॉंव यहॉं?

पुष्पित करने को प्रिया वेणी,
कितनो ने ही नित पुष्प् चुने
जाने कितने अनुबन्ध हुये,                                                
और कितने मन के गीत सुने।

कोलाहल से हट दूर कभी, 
था बसा प्रीत का गॉंव यहॉं ?

                                                                    -रामकुमार गौड

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