मंगलवार, 12 जुलाई 2011

कविता - 'गधे की अपील'-सुखदेव

 मेरठ में सन्1987 में साम्प्रदायिक दंगें के बाद कर्फ्यू खुलने के एक दो दिन बाद ही देहली गेट क्षेत्र के लोगों ने एक दिन देखा कि दो गधे आपस में गले में बंधी रस्सी से साथ -साथ घूम रहे हैं जिनमें से एक पीठ पर दिल्ली की बडी मस्जिद के इमाम ओर दूसरे की पीठ पर भगवा दल के बडे नेता का नाम लिखा था| साम्प्रदायिक तनाव की आशंका को देखते हुये किसी दूरदर्शी नागरिक ने पुलिस को यह खबर कर दी। पुलिस गधों को पकडकर थाने ले गयी और उनकी पीठ पर लिखे को मिटाने के लिये उन्हें खूब खूब रगड -रगड कर नहलाया। किन्तु नाम पक्के पेन्ट से लिखा गया था जो मिट नहीं सकता था, सो नहीं मिटा। तब पुलिस ने पुलिसिया समझदारी दिखाते हुये उन्हें गोली मार दी। कुछ दिन कुछ चर्चा रही फिर बात आई गई हो गयी। किन्तु यह मानवीय (?)व्यवहार कवि सुखदेव  के दिल को चुभ गया। उन्होंने ‘गधे की अपील’ कविता लिखकर आदमी की आदमियत पर प्रश्न चिह्न लगा दिया। उन दिनों काव्य गोष्ठियों की यह चर्चित कविता थी। कवि सुखदेव एक  योग्य शिक्षक,कुशल चित्रकार, कवि और कार्टूनिस्ट थे। उन्होंने कई वर्षो तक दैनिक जागरण के प्रथम पृष्ठ के लिये कार्टून बनाये। अफसोस उनकी दुखद परिस्थितियों में असामयिक मौत हो गयी और वे अपने पीछे केवल कुछ कार्टून संग्रहों के और कोई रचना नहीं छोड गये। उनकी यह कविता भी उनके एक प्रशंसक की डायरी से प्राप्त हुई है जो आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। 
       गधे की अपील
गाली के बाद ’गधों‘ का प्रयोग जब दंगों में होने लगा 
तो एक  बूढा गधा फूट फूट कर रोने लगा 
मैंने पूछा क्यों गधे भाई? 
क्या तकलीफ है? तबियत तो ठीक है? 
मेरा प्रश्न सुनकर उसकी ऑंखों से परनाला बहने लगा, 
हिचकी भरकर यूँ  कहने लगा -
आपने नहीं सुना,
आदमी ने आदमी का गुस्सा 
गधों पर उतार दिया, 
मेरी बिरादरी के तीन सदस्यों को
गोली से मार दिया |
जानते हो क्यूँ     ? 
बात थी दरअसल यूँ - 
कि आदमी ने उनकी पीठ पर 
आदमी का नाम लिखा था, 
शायद आदमी को उनमें अपना प्रतिबिम्ब दिखा था |
मगर यह तो आदमी की अपनी औकात थी |
भला इसमें गधों को 
गोली मारने की क्या बात थी |
आदमी की आदमियत देख 
शर्म से गड गया  हूँ |
भ्रम में पड गया  हूँ |
कि असली आदमी तो कभी ऐसा कर नहीं सकता, 
परमात्मा का अंश 
गधों के स्तर पर नहीं उतर सकता |
फिर भी यदि ऐसा करने वाले 
आदमी के ही बच्चे हैं ,
तो उन नकली आदमियों से 
हम गधे ही अच्छे हैं|
यदि कोई यह कहे कि 
उन पर से गधों का बोझ उतारा गया है |
यानि कि आदमी समझकर ही मारा गया है| 
तब तो प्रशासन को भी शर्मिन्दा होना चाहिये था |
और उनकी मौत पर 
किसी मंत्री को आकर रोना चाहिये था |
लेकिन उनकी मौत ने 
किसी का दिल नहीं छुआ| 
पता लगा लीजिये पोस्टमार्टम तक नहीं हुआ।
फिर भी मुझे इस बात का कुछ गम नहीं ,
क्योंकि भारत में गधों की संख्या कम नहीं। 
मेरे रोने का कारण यह भी नहीं 
कि गधे क्यो मर गये? 
दुःख तो इस बात का है कि 
आदमी अपने चरित्र से इतना क्यों गिर गये ?
जो कि धर्म के नाम पर 
साम्प्रदायिकता की कील 
मनुष्य की छाती में ठोक देते हैं| 
और मौका पाते ही 
उसकी पीठ में छुरा भोंक देते हैं| 
इतना कहकर गधा रूक गया |
मेरा माथा शर्म से झुक गया| 
गधा फिर बोला -भाई सहाब , 
शर्मदार आदमी इतना नहीं शर्माता| 
सुबह का भूला 
शाम को घर आ जाये तो भूला नही कहाता| 
चूंकि मैं कोई नेता नहीं  
ना मेरी कोई दलील है ,
बस एक छोटी सी अपील है 
कि अगर तुम वास्तव में आदमी हो, 
तो आदमियत की ऑंख में 
किरीकिरी बनकर न गडो| 
आदमियों की तरह रहो,  
कुत्तों की तरह न लडों ।
                           - -सुखदेव

4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut khoobsurat,is prastuti ke liye aapako badhai avam kavi sukhdev ji ko shriddha suman.

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  2. सुखदेव को पढ़ना एक रोमांचकारी अनुभव रहा.मैं उन्हें काफी करीब से जानता था .अब तो उनकी याद ही है.

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  3. सुखदेव जी ने वास्तविकता का मार्मिक चित्रण किया है.दरअसल वह धर्म नहीं है जिसको लोग धर्म कह रहे हैं.गुमराह करने वाले बड़े दिग्गज हैं-आश राम बापू,रविशंकर,रामदेव,मुरारी बापू,अन्ना हजारे आदि-आदि उनकी पोल खोलने वाले मुझ जैसे लोग अलग-थलग पड़ते हैं और संसाधनों आदि में कमजोर भी पड़ते हैं तब कोई क्यों हमारी सुनेगा?फिर वही होगा जैसा उन गधों के साथ हुआ और महान कवी सुखदेव जी ने अभिव्यक्त किया है.

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  4. सुखदेव जी की कविता पर आपकी स्नेहिल टिपण्णी ने मेरे ब्लॉग लेखन को सार्थक कर दिया है |मेरे सुखदेव जी से गहरे मित्रता के सम्बन्ध थे किन्तु दोनों मितभाषी होने के कारण न वो अपने मन की तात्कालिक पीड़ा को कह पाए और न मैं पूछ पाया | परिणाम जो न होना चाहिए था वह अचानक घट गया |उनकी या गोरख पाण्डेय की मौत हमारे सामने एक ऐसा सवाल खड़ा कर देती है जिसका हमारे पास कोई जबाब नहीं है |वैसे हर अंतर्मुखी व्यक्ति हमेशा आत्मघात की मनस्तिथि में रहता है |

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