गुरुवार, 14 जुलाई 2011

गीत - सुमनेश 'सुमन '

[श्री  सुमनेश 'सुमन'   मेरठ के लोकप्रीय   कवि और कवि सम्मेलनों  के कुशल  संचालक  हैं   |साहित्यिक   परिवेश  आपको  विरासत  में  मिला  है |]
रोशनी की बात कर
 हर कदम पसरी उदासी,
 तू ख़ुशी की बात कर |
 दर्द के खारे समंदर 
 तू नदी की बात कर |


पंथ सब काँटों भरे थे, पर पथिक चलते रहें हैं, 
मंजिलों के स्वप्न  उनकी आँख में पलते रहे हैं |
रोक पायी कब उन्हें, बाधाएं  उनके  रास्तों की ,
आग  थी भीतर व बाहर आग में जलाते  रहें हैं |
प्यार कर जिन्दादिली को,
जिंदगी की बात कर | 
दर्द के खारे  समंदर  
तू नदी की बात कर |


कष्ट   सहकर सत्य पालन  की कथा  हम सुन चुके  हैं, 
और ऋषि  की अस्थियों से अस्त्र भी हम बुन चुके हैं | 
हम व्यथा   सीता, अहल्या, द्रोपदी की जानते  हैं ,
कर्म का अधिकार रघुकुल  रीति   भी जब मानते हैं| 
निष्कपट,निश्छल सुमन -मन,
सादगी की बात कर | 
दर्द के खारे समंदर, 
तू नदी की बात कर || 


फिर किसी बदरंग आँचल   को सुनहरा रंग दे दें,
बेसहारों को सवाँरे जिंदगी का ढंग  दे दें |
जब उठे दो हाथ तो उजड़े हुए घर को सजाएं,
जब खुले दो होट तो बस जिन्दगी के गीत गायें  |
फिर अँधेरी बस्तियों में 
रोशनी की बात कर |
दर्द के खारे समंदर, 
तू नदी की बात कर || 
                                      -  सुमनेश  'सुमन '

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