शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

गजल - डॉ0 ईश्वर चन्द ‘गंभीर‘


[ डॉ0 ईश्वर चन्द ‘गंभीर‘ मेरठ के लब्ध प्रतिष्ठ कवि हैं | आप सैन्य सेवा पूर्ण कर साहित्य में सृजन रत हैं | ]






जलता हुआ गॉंधी का वतन देख रहा हूँ ।
पुस्तक की जगह हाथ में गन देख रहा हूँ 

कैसे विवेकानन्द बने कल कोई बच्चा 
पीढी में चरित्रों का पतन देख रहाहूँ  ।

जाता नहीं है फर्क वो बेटी का, बहु का
बांटे हैं दहेजों ने कफन देख रहा हूँ 

तुलसी, कबीर, सूर के दोहे नहीं गाते,
फिल्मी धुनों में सबको मगन देख रहा हूँ 

गंभीर’ जात पांत के झगड़े  नहीं जाते
मैं फिर भी एकता का सपन देख रहाहूँ |

                      डॉ0 ईश्वर चन्द ‘गंभीर‘

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