शनिवार, 16 जुलाई 2011

प्रेमचंद

'मुझे  याद   है बैल  के लिए तुमने  तीस रुपये  दिए  थे  | उसके सौ  हुए |और अब सौ  के दो सौ  हो गये  | ऐसी  तुम  लोगों ने किसानों  को लूट लूट कर  मजूर  बना डाला और अब उनकी जमीन के मालिक बन  बैठे | तीस के दो सौ  कुछ हद है |कितने दिन  हुए होंगे  दादा ?''


होरी ने कातर कंठ से कहा -' यही  आठ  नो साल हुए होंगे | 

गोबर ने छाती  पर हाथ रखकर कहा -' नो साल में तीस के दो सौ  | 

'एक रुपये के हिसाब से कितना होता है ?'

उसने जमीन पर ठीकरे से हिसाब लगाकर कहा दस साल के छत्तीस रुपये होतें  हैं, असल  मिला कर  छियासठ  |उसके  सत्तर ले  लो | इससे बेसी मैं एक कोडी न दूंगा |'

दातादीन  ने होरी को बीच  में डालकर  कहा -' सुनते  हो होरी! गोबर का  फैसला  मैं अपने दो सौ  छोड़कर   सत्तर रुपये ले  लूँ | इस  तरह  का व्यवहार  हुआ  तो कै दिन संसार  चलेगा  | और तुम बैठे सुन रहे हो मगर यह समझ लो मैं ब्राह्मण हूँ | मेरे रुपये हजम करके तुम चैन से न बैठोगे | मैंने यह सत्तर रुपये भी छोड़े| अदालत भी न जाऊँगा |जाओ मैं अगर ब्राह्मण हूँ तो अपने पुरे दो सौ  रुपये लेकर दिखा दूंगा | और तुम मेरे द्वार पर आओगे और हाथ बांधकर दोगे |'
 दातादीन झल्लाए हुए लौट पड़ा |गोबर अपनी जगह बैठा रहा | मगर होरी के पेट में धर्म की क्रान्ति मची हुई थी |अगर ठाकुर या बनिए के रुपये होते तो उसे ज्यादा चिंता न होती. लेकिन ब्राह्मण के रुपये की एक पायी भी दब गयी तो हड्डी तोड़कर निकलेगी |भगवान न करे की ब्राह्मण का कोप किसी पर गिरे |वंश में कोई चुल्लू भर पानी देने वाला , घर में कोई दिया जलाने वाला भी नहीं रहता | उसका धर्मभीरु मन त्रस्त हो उठा |उसने दौड़कर पंडित जी के पाँव पकड़ लिए और आर्त स्वर में बोला -'महाराज जब तक मैं जीता हूँ , तुम्हारी एक एक पायी चुकाउंगा |'
['गौदान ']

2 टिप्‍पणियां:

  1. ऐसे ही कुराफाती बातें तो ये पोंगा-पंडितों ने जनता के दिमाग में भर राखी हैं और उनका पर्दाफ़ाश करना हम लोगों का कर्तव्य है.मैं अपने ब्लॉग पर ऐसा पर्दाफ़ाश कर भी रहा हूँ.

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  2. प्रेमचंद के गोदान में गरीबी की पराकाष्ठा दिखाई गयी है, आपका चयन सराहनीय है,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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