रविवार, 3 जुलाई 2011

अपनी बात

                                        अपनी बात 
अपने वाम पंथी  मित्रो  का भी अजब हाल है | सोचा था कि  जनवादी लेखक संघ  की मेरठ इकाई का ब्लॉग होगा तो प्रतिबध्द लोगों को जोड़ने में मदद मिलेगी,  पर सदा की तरह सबसे ज्यादा निराश उन्होने   ही किया| न तो उन्होंने ब्लॉग  लेखन में रूचि ली न  किसी प्रकार की प्रति क्रिया   ही दी | कुछ तो ऐसे  वाग्वीर हैं जो सब समस्याओं   का हल गरम -गरम बहस और भाषण से करने के लिए हर वक्त तैयार रहते हैं | साहित्य    में ये    सिर्फ   मार   धाड़   वाली   फिल्मों  की तरह एक ही रंग रस  प्रगति-क्रान्ति  चाहते   हैं | प्रेम, सोंदर्य, प्रकृति  पर लिखना   उनकी    निगाह   में पथभ्रष्ट  होना   है | मेरी  समझ   में नहीं आता  कि कोई  कब  तक   चिल्लाता  रहेगा और क्या चिल्लाकर  ही अपनी बात  कही  जा  सकती  है | माना  कभी  कभी  अपनी बात  को स्पष्ट  करने या  अपनी बात  पर जोर देने  के लिए जोर से बोलना  पड़ता  है | पर कभी  कभी  ही | नियमित  वार्ता  सम  स्वर  में हो सकती   है | जिंदगी  की  तरह साहित्य  में भी कोई  एक   भाव  स्थायी   नहीं रह  सकता  | वैसे  भी प्रेम   मोहब्बत  की  कविता  लिखना   न कोई  अपराध   है और न कहीं  से वामपंथी  होने  में बाधक  है | जो एइसा  सोचते  हैं, वे  मुझे  कठमुल्ला  दिखाई देते   हैं  और इनके  इस   तरह के कठमुल्लेपन  का मैं हमेशा  विरोधी  रहा  हूँ  | इसी लिए   ब्लॉग लेखन  में मैंने  पूरी  स्वतंत्रता   रखी  है  और अपनी तरफ से स्थानीय  साहित्यकारों  को रचनाधर्मिता   के आधार  पर जोड़ने   का प्रयास  किया है | इसके  चलते  जहाँ  वामपंथी  मित्रों  से उपेक्षा  मिली  है वहीँ  अन्य  लोगों   द्वारा  मुक्त  कंठ  से सराहना  मिली  है |  अपनों की यह  उपेक्षा  शूल  सी चुभती   है | 

1 टिप्पणी:

  1. नहीं साहब हम आप की उपेक्षा नहीं करते हैं और आपके प्रयासों की सराहना एवं प्रशंसा अपने ब्लाग में भी करते रहते हैं.कृपया निराश न हों.आप अपना स्वतंत्र लेखन जारी रखें.

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