बात ’’इण्डिया दैट इज भारत ’’की करे तो आरक्षण को नजर अन्दाज नही किया जा सकता. प्रश्न यह उठता है कि आरक्षण व्यवस्था इण्डिया मे ही क्यो है. इसी प्रश्न के साथ एक प्रश्न और भी खड़ा होता है, यह कि भारत मे जाति व्यवस्था क्यो है. यदि आरक्षण व्यवस्था के प्रश्न का उत्तर ढूंढा जाये तो कही न कही भारत की जाति व्यवस्था मे विधमान है. यह जाति व्यवस्था ही भारत देश मे किसी को ऊँचा, किसी को नीचा बनाती है. जिसकी वजह से एक वर्ग जो अपने आप को उच्च समझता है साधन सम्पन्न है जबकि दूसरा वर्ग जिसे नीचा समझा जाता है वो साधनविहिन, शोषित, पिछड़ा हुआ है जो इस देश की जाति व्यवस्था की उपज है.

डॉ.अम्बेडकर सन् 1942 मे प्रथम बार लेबर मिनिस्टर बने तब उन्होने सम्पूर्ण भारत मे 8 प्रतिशत आरक्षण लागू किया. आजाद भारत मे जब संवैधानिक रूप से आरक्षण का प्रावधान करना चाहा तो उनका बहुत विरोध किया गया और कहा गया की आरक्षण की वजह से प्रशासनिक क्षमता मे कमी आयेगी. इस पर डॉ.अम्बेडकर अपना जवाब दिया की कार्यक्षमता सरकार से बेहतर प्रतिनिधि सरकार होती है. उन्होंने कहा कि आप बुद्धिमान हो सकते हैं, आप कार्यसक्षम हो सकते हैं, यह सही है लेकिन आप ईमानदार हो सकते हैं इस बात पर मुझे शक है. मान भी लिया जाए कि तुम ईमानदार भी हो सकते हो लेकिन आप मेरे प्रतिनिधि नहीं हो सकते. हमारा प्रतिनिधि केवल हमारा होगा. दूसरा कोई और नहीं हो सकता. लोकतंत्र क्या है? सवा सौ करोड़ के लोगों के 543 प्रतिनिधि संसद मे जाते हैं अर्थात् लोकतंत्र कुछ नही प्रतिनिधि व्यवस्था है. बाबा साहेब डॉ.अम्बेडकर ने आरक्षण का विरोध करने वालो को चुनौती दी कि यदि आप लोकतंत्र को मानते हैं तो आप प्रतिनिधित्व को नकारते हैं, तो आप लोकतंत्र को नही मानते. इस प्रकार से बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर की दलीलों से आरक्षण का विरोध करने वालों को, आरक्षण का विरोध करना मुश्किल हो गया.
डॉ.अम्बेडकर ने 1942 मे शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन बनाया. शेड्यूल्ड कास्ट फैडरेशन ने संविधान सभा मे जाने के लिए 30 उम्मीदवार खड़े किये थे, मगर सारे उम्मीदवार हार गये. सिर्फ बंगाल से एक उम्मीदवार जोगेन्द्रनाथ मंडल जीत कर आये. जब यह देखा की संविधान सभा मे हमारा कोई प्रतिनिधित्व नहीं है, तो जोगेन्द्रनाथ मंडल ने अपनी सीट से इस्तीफा देकर डॉ.अम्बेडकर को चुनवाकर संविधान सभा मे भेजा. यदि डॉ.अम्बेडकर चुनाव हार जाते तो गाँधी और कांग्रेस को ढ़िढोरा पीटने का मौका मिल जाता की डॉ.अम्बेडकर के साथ कोई है ही नही है, क्योकि गाँधी ने तो डॉ.अम्बेडकर के लिये लिखा था और सरदार पटेल ने घोषणा की थी कि ‘‘डॉ. अम्बेडकर के लिए संविधान सभा के दरवाजे ही नही, खिड़किया भी बंद है’’. कांग्रेस ने जिसे देशद्रोही कहा हो तथा जिसे संविधान सभा मे आने रोकने के लिए सारे प्रबन्ध किये हो.
गोलमेज सम्मेलन मे डॉ.अम्बेडकर द्वारा की गई पैरवी के कारण अंग्रेज सरकार द्वारा साम्प्रदायिक पंचाट मे दलितो को पृथक निर्वाचन व दो वोट का अधिकार दिया गया, जिसके विरोध मे मोहन दास करमचन्द गाँधी ने अनशन किया, जिसके कारण डॉ.अम्बेडकर पर पड़ रहे चौतरफा दबाव, दलित बस्तियो को जलाने की धमकियों तथा डॉ. अम्बेडकर को मिल रही जान की धमकियों के कारण पूना की जेल मे जाकर डॉ. अम्बेडकर ने गाँधी के साथ समझौता किया, जिसके परिणामस्वरूप पूना पैक्ट समझौता हुआ, जिसमे अंग्रेज सरकार से प्राप्त पृथक निर्वाचन व दो वोट का अधिकार दलितो को त्यागना पड़ा. पूना पैक्ट समझौता के परिणामस्वरूप दलितो को हर स्तर पर आरक्षण देने की व्यवस्था की गई. यह आरक्षण दलितो व ब्राह्यणो के बीच हुए पूना पैक्ट समझौते का परिणाम था.
ओ.बी.सी. आरक्षण कि बात करे तो यह भी डॉ. अम्बेडकर आजादी से पूर्व देना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने उन्हे ऐसा करने नही दिया, फिर भी अम्बेडकर ने अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण हेतु संविधान मे अनुच्छेद 340 का प्रावधान किया. आजादी के बाद डॉ. अम्बेडकर ने कांग्रेस से अनुच्छेद 340 को लागू कर कमीशन गठित करने का प्रस्ताव रखा जिसे कांग्रेस ने नही माना, मजबूर होकर उन्होनें अपने विधि मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन कांग्रेस ने बढ़ते दबाव से मजबूर होकर, काका कालेलकर आयोग का गठन किया. 1953 मे अपनी रिपोर्ट मे आयोग ने ओ.बी.सी. की लगभग 2000 जातियो को चिन्हित कर ओ.बी.सी. आरक्षण कि सिफारिश की. जिस पर नेहरू ने काका कालेलकर को संसद के केन्द्रिय कक्ष मे बुलाकर डाँटा और उससे अपनी ही रिपोर्ट के विरूद्ध 31 पेज का पत्र लिखवाया. उक्त पत्र को आधार बनाकर नेहरू ने काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट पर बहस करने से इन्कार कर दिया. 1954 मे नेहरू ने सभी मुख्यमंत्रीयों को गुप्त पत्र लिखकर निर्देश दिया कि आरक्षण पर अमल नही किया जाए क्योकि इससे दोयम दर्जे का राष्ट्र का निर्माण होगा, इस षडयन्त्र का भांडाफोड़ 1977 मे जनता पार्टी की सरकार के गृहमंत्री चौधरी चरणसिंह ने किया क्योकि वे नेहरू के विरोधी थे तथा इस पत्र को फाइल से निकालकर मीडिया को प्रकाशित करने के लिए दे दिया.
सन् 1977 मे मोरारजी देसाई ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में कहा कि यदि हमारी सरकार आयी तो हम कालेलकर आयोग की सिफारिशों को लागू करेगें. 1977 मे कांग्रेस के घोर विरोध के कारण मोरारजी देसाई को आम चुनाव मे बहुमत मिला और वे प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री बनते ही ओ.बी.सी. प्रतिनिधि मण्डल ने कालेलकर आयोग की सिफारिशों को लागू करने का अनुरोध किया, जिसे देसाई ने यह कहकर ठुकरा दिया कि आयोग की सिफारिशे 1953 की है और अब 1977 चल रहा है, हालात और समय बदल गया है, अब एक नया कमीशन बना देते है. परिणामस्वरूप बिन्देश्वरी प्रसाद मण्डल की अध्यक्षता मे मण्डल कमीशन का गठन किया गया. जिसकी रिपोर्ट 1981 मे प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी के कार्यकाल मे आयी जिसको गाँधी ने संसद के पटल पर रखने से इन्कार कर दिया जो बार-बार ओ.बी.सी. के सांसद संसद मे हंगामा करते थे, तो विवश होकर गाँधी ने मण्डल कमीशन की सिफारिशो को लोकसभा मे चर्चा के लिए रखा और यह घोषित किया की इसे आर्थिक आधार पर लागू किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता, यह कहकर लागू करने से इन्कार कर दिया.
इन्दिरा गाँधी की हत्या के बाद राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बने उनके पास लोकसभा मे सांसद 413 थे, उन्होने सोचा होगा कि जब इन सिफारिशो को मेरी माँ ने लागू नही किया, तो मैं क्यों करू. जब तीसरे मोर्चे की सरकार के वी.पी.सिंह प्रधानमंत्री बने तो उन पर अपनी
सरकार को बचाये रखने के लिए चौधरी देवीलाल और काशीराम ने मण्डल कमीशन की सिफारिशो को लागू करने के लिए दबाव बनाया जिसमे वे सफल हुए और मण्डल कमीशन की सिफारिशो को लागू कर दिया गया. इसमे फिर भी एक पेंच बाकी रख दिया गया. मण्डल कमीशन के द्वारा नौकरी मे आरक्षण दे दिया गया लेकिन शिक्षा मे आरक्षण नही दिया गया. नतीजा जब शिक्षा मे आरक्षण नही होगा तो नौकरी का आरक्षण स्वतः ही जीरो (0) हो गया.
वामन मेश्राम ने कहा की राजनीति कोई बच्चों का खेल तो है नही, की सबको समझ मे आ जाए. राजनीति का मतलब है कि, ऐसी नीति जो आपको राजा बना दे. अगर आपको समझ मे आ जाता तो, आप राजा नही बन जाते, आप प्रजा क्यो रहते? हमारे लोगो को तो राजनीति को अमल मे लाने की तो छोड़ो, समझ मे भी नही आती है. अमल तो तब करेगा, जब समझ मे आयेगा|
-डा 0सुनील यादव
ات'' انڈیا دےٹ از بھارت'' کی کرے تو ریزرویشن کو نظر انداز نہیں کیا جا سکتا. سوال یہ اٹھتا ہے کہ ریزرویشن نظام انڈیا میں ہی کیوں ہے. اسی سوال کے ساتھ ایک سوال اور بھی کھڑا ہوتا ہے، یہ کہ بھارت میں ذات نظام کیوں ہے. اگر ریزرویشن نظام کے سوال کا جواب ڈھوڈھا جائے تو کہی نہ کہی بھارت کی ذات نظام میں ودھمان ہے. یہ ذات نظام ہی بھارت ملک میں کسی کو اونچا، کسی کو نیچا بناتی ہے. جس کی وجہ سے ایک طبقہ جو اپنے آپ کو اوپر سمجھتا ہے ذرائع خوشحال ہے جب کہ دوسرا طبقہ جسے نیچا سمجھا جاتا ہے وہ سادھنوهن، شوشت، پسماندہ ہوا ہے جو اس ملک کی ذات نظام کی پیداوار ہے.
جب تمام افراد ساری دنیا میں یکساں طور پر پیدا ہوتے ہیں اور یکساں طور پر مرتے ہیں تو بھارت میں شخصیت پیدائش سے اونچا - نیچا کس طرح ہو سکتا ہے. یعنی بھارت میں ریزرویشن نظام کی اتپت کا اصل وجہ بھارت کی ذات نظام ہے. جب برہمنوں کی طرف سے شودرو کا مسلسل استحصال کیا جاتا تھا اور ان کے ساتھ جانوروں جیسا برتاؤ کیا جاتا تھا. ایسی صورت حال سے شودرو کو آزادی دلانے کے لیے سب سے پہلے كولهاپر کے بادشاہ چھترپتی شاهو جی مہاراج نے 26 جولائی 1902 کو اپنے ریاست میں براهيو اور شےنويوي ذات کو چھوڑ کر باقی تمام جاتيو کے لئے 50 فیصد ریزرویشن کی نظام نافذ کی. جب اسمبلی مڈلو میں ریزرویشن کی وکالت کی گئی تو سب سے پہلے بال گنگادھرتلک نے یہ کہہ کر مخالفت کی کی کیا تےلي، تمولي، كبھٹو کو پارلیمنٹ میں جا کر حل چلانا ہے. جس پر برہمنوں کی طرف سے بال گنگادھرتلک کو میںمقبول عام کی ڈگری فراہم کی. موہن داس كرمچند گاندھی نے ہر طرح کے ریزرویشن کا فرقہ وارانہ نام دے کر مخالفت کی. جواہر لال نہرو نے ریزرویشن کے لئے کہا کہ اس سے دوسرے درجے کا ملک بنتا ہے.
ڈاکٹر امبےڈكر ء 1942 میں اے بار لیبر منسٹر بنے تب انہوں مکمل، بھارت میں 8 فیصد ریزرویشن نافذ کیا. آزاد بھارت میں جب آئینی طور سے ریزرویشن کا بندوبست کرنا چاہا تو ان کا بہت مخالفت کی گئی اور کہا گیا کی ریزرویشن کی وجہ سے انتظامی صلاحیت میں کمی آئے گی. اس پر ڈاکٹر امبےڈكر اپنا جواب دیا کی فعالیت حکومت سے بہتر نمائندہ حکومت ہوتی ہے. انہوں نے کہا کہ آپ عقلمند ہو سکتے ہیں، آپ كاريسكشم ہو سکتے ہیں، یہ صحیح ہے لیکن آپ ایماندار ہو سکتے ہیں اس بات پر مجھے شک ہے. مان بھی لیا جائے کہ تم ایمان دار بھی ہو سکتے ہو لیکن آپ میرے نمائندے نہیں ہو سکتے.ہمارا نمائندہ صرف ہمارا ہوگا. دوسرا کوئی اور نہیں ہو سکتا. جمہوریت کیا ہے؟ سوا سو کروڑ کے لوگوں کے 543 نمائندے پارلیمنٹ میں جاتے ہیں یعنی جمہوریت کچھ نہیں نمائندے نظام ہے. بابا صاحب ڈاکٹر امبےڈكر نے ریزرویشن کی مخالفت کرنے والو کو چیلنج کیا کہ اگر آپ جمہوریت کو مانتے ہیں تو آپ نمائندگی کو درکنار کرتے ہیں، تو آپ جمہوریت کو نہیں مانتے. اس طرح سے بابا صاحب ڈاکٹر امبےڈكر کی دلیلوں سے ریزرویشن کی مخالفت کرنے والوں کو، ریزرویشن کی مخالفت کرنا مشکل ہو گیا.
ڈاکٹر امبےڈكر نے 1942 میں شےڈيولڈ کاسٹ فیڈریشن بنایا. شےڈيولڈ کاسٹ فیڈریشن نے آئین ساز اسمبلی میں جانے کے لئے 30 امیدوار کھڑے کیے تھے، مگر تمام امیدوار ہار گئے. صرف بنگال سے ایک امیدوار جوگےندرناتھ وفد جیت کر آئے. جب یہ دیکھا کی آئین ساز اسمبلی میں ہمارا کوئی نمائندگی نہیں ہے، تو جوگےندرناتھ منڈل نے اپنی سیٹ سے استعفی دے کر ڈاکٹر امبےڈكر کو چنواكر آئین ساز اسمبلی میں بھیجا. اگر ڈاکٹر امبےڈكر انتخاب ہار جاتے تو گاندھی اور کانگریس کو ڑھڈھورا دھونے کا موقع مل جاتا کی ڈاکٹر امبےڈكر کے ساتھ کوئی ہے ہی نہیں ہے، کیونکہ گاندھی نے تو ڈاکٹر امبےڈكر کے لئے لکھا تھا اور سردار پٹیل نے اعلان کیا تھا کہ ' 'ڈاکٹر امبےڈكر کے لئے آئین ساز اسمبلی کے دروازے ہی نہیں، كھڑكيا بھی بند ہے''. کانگریس نے جسے غدار کہا ہو اور جسے آئین ساز اسمبلی میں آنے روکنے کے لئے سارے انتظام کئے ہو.
گول میز کانفرنس میں ڈاکٹر امبےڈكر کے ذریعے کی گئی پیروی کی وجہ سے انگریز حکومت کی طرف سے فرقہ وارانہ پچاٹ میں دلتو کو علیحدہ الیکشن اور دو ووٹ کا حق دیا گیا، جس کے خلاف میں موہن داس كرمچند گاندھی نے انشن کیا، جس کی وجہ سے ڈاکٹر امبےڈكر پر پڑ رہے چوترپھا دباؤ، دلت بستيو کو جلانے کی دھمکیوں اور ڈاکٹر امبےڈكر کو مل رہی جان کی دھمکیوں کی وجہ سے پونا کی جیل میں جا کر ڈاکٹر امبےڈكر نے گاندھی کے ساتھ معاہدہ کیا، جس کے نتیجے میں پونا پےكٹ معاہدہ ہوا، جس میں انگریز حکومت سے حاصل علیحدہ الیکشن اور دو ووٹ کا حق دلتو کو تياگنا پڑا. پونا پےكٹ معاہدہ کے نتیجے میں دلتو کو ہر سطح پر ریزرویشن دینے کا انتظام کیا. یہ ریزرویشن دلتو اور براهيو کے درمیان ہوئے پونا پےكٹ معاہدے کا نتیجہ تھا.
اوبيسي ریزرویشن کہ بات کرے تو یہ بھی ڈاکٹر امبےڈكر آزادی سے قبل دینا چاہتے تھے، لیکن کانگریس نے انہیں ایسا کرنے نہیں دیا، پھر بھی امبےڈكر نے دیگر پسماندہ طبقے کے ریزرویشن کے لیے آئین میں آرٹیکل 340 کا بندوبست کیا. آزادی کے بعد ڈاکٹر امبےڈكر نے کانگریس سے آرٹیکل 340 کو لاگو کر کمیشن قائم کرنے کی تجویز پیش کی جسے کانگریس نے نہیں مانا، مجبور ہو کر انہوں نے اپنے وزیر قانون کے عہدے سے استعفی دے دیا، لیکن کانگریس نے بڑھتے دباؤ سے مجبور ہو کر، کاکا كالےلكر کمیشن کی تشکیل کی. 1953 میں اپنی رپورٹ میں کمیشن نے اوبيسي کی تقریبا 2000 جاتيو کی نشاندہی کر اوبيسي ریزرویشن کہ سفارش کی. جس پر نہرو نے کاکا كالےلكر کو پارلیمنٹ کے كےندري کمرہ میں بلا کر ڈانٹا اور اس سے اپنی ہی رپورٹ کے خلاف 31 پیج کا خط لکھوایا. مذکورہ خط کو بنیاد بنا کر نہرو نے کاکا كالےلكر کمیشن کی رپورٹ پر بحث کرنے سے انکار کر دیا. 1954 میں نہرو نے تمام مكھيمترييو کو خفیہ خط لکھ کر ہدایت کی کہ ریزرویشن پر عمل نہیں کیا جائے کیونکہ اس سے دوسرے درجے کا ملک کی تعمیر ہوگا، اس شڈينتر کا بھاڈاپھوڑ 1977 میں جنتا پارٹی کی حکومت کے وزیر داخلہ چوہدری چرسه نے کیا کیونکہ وہ نہرو کے مخالف تھے اور اس خط کو فائل سے نکال کر میڈیا کو شائع کرنے کے لئے دے دیا.
ء 1977 میں مورارجي دیسائی نے اپنے انتخاب اعلان خط میں کہا کہ اگر ہماری حکومت آئی تو ہم كالےلكر کمیشن کی سفارشات کو نافذ کریں گے. 1977 میں کانگریس کے سخت مخالفت کی وجہ سے مورارجي دیسائی کو عام انتخابات میں اکثریت حاصل ہوئی اور وہ وزیر اعظم بنے. وزیر اعظم بنتے ہی اوبيسي نمائندے مڈل نے كالےلكر کمیشن کی سفارشات کو نافذ کرنے کی درخواست کی، جسے دیسائی نے یہ کہہ کر مسترد کر دیا کہ کمیشن کی سپھارشے 1953 کی ہے اور اب 1977 چل رہا ہے، حالات اور وقت بدل گیا ہے، اب ایک نیا کمیشن بنا دیتے ہیں. نتیجے بندےشوري پرساد مڈل کی صدارت میں مڈل کمیشن کی تشکیل کی گئی. جس کی رپورٹ 1981 میں وزیر اعظم اندرا گاندھی کے دور میں آئی جس کو گاندھی نے پارلیمنٹ کے سکرین پر رکھنے سے انکار کر دیا جو بار - بار اوبيسي کے ممبر پارلیمنٹ پارلیمنٹ میں ہنگامہ کرتے تھے، تو مجبور ہو کر گاندھی نے مڈل کمیشن کی سپھارشو کو لوک سبھا میں بحث کے لئے رکھا اور یہ اعلان کیا کی اسے اقتصادی بنیاد پر نافذ کیا جاتا تو مزید بہتر ہوتا، یہ کہہ کر نافذ کرنے سے انکار کر دیا.
اندرا گاندھی کے قتل کے بعد راجیو گاندھی وزیراعظم بنے ان کے پاس لوک سبھا میں رکن پارلیمنٹ 413 تھے، انہوں نے سوچا ہوگا کہ جب ان سپھارشو کو میری ماں نے نافذ نہیں کیا، تو میں کیوں کرو. جب تیسرے محاذ کی حکومت کے ويپي سنگھ وزیر اعظم بنے تو ان پر اپنیحکومت کو بچائے رکھنے کے لئے چودھری دےويلال اور كاشيرام نے مڈل کمیشن کی سپھارشو کو نافذ کرنے کے لئے دباؤ بنایا جس میں وہ کامیاب ہوئے اور مڈل کمیشن کی سپھارشو کو لاگو کر دیا گیا. اسمے پھر بھی ایک پیچ باقی رکھ دیا گیا. مڈل کمیشن کے ذریعے ملازمت میں ریزرویشن دے دیا گیا لیکن تعلیم میں ریزرویشن نہیں دیا گیا. نتیجہ جب تعلیم میں ریزرویشن نہیں ہوگا تو کام کا ریزرویشن خود کار طریقے سے زیرو (0) ہو گیا.
وامن مےشرام نے کہا کی سیاست کوئی بچوں کا کھیل تو ہے نہیں، کی سب کو سمجھ میں آ جائے. سیاست کا مطلب ہے کہ، ایسی پالیسی جو آپ کو بادشاہ بنا دے. اگر آپ کو سمجھ میں آ جاتا تو، آپ بادشاہ نہیں بن جاتے، آپ قوم کیوں رہتے؟ ہمارے علامت کو تو سیاست کو عمل میں لانے کی تو چھوڑو، سمجھ میں بھی نہیں آتی ہے. عمل تو تب کرے گا، جب سمجھ میں آئے گا |
- ڈاکٹر 0 سنیل یادو
جب تمام افراد ساری دنیا میں یکساں طور پر پیدا ہوتے ہیں اور یکساں طور پر مرتے ہیں تو بھارت میں شخصیت پیدائش سے اونچا - نیچا کس طرح ہو سکتا ہے. یعنی بھارت میں ریزرویشن نظام کی اتپت کا اصل وجہ بھارت کی ذات نظام ہے. جب برہمنوں کی طرف سے شودرو کا مسلسل استحصال کیا جاتا تھا اور ان کے ساتھ جانوروں جیسا برتاؤ کیا جاتا تھا. ایسی صورت حال سے شودرو کو آزادی دلانے کے لیے سب سے پہلے كولهاپر کے بادشاہ چھترپتی شاهو جی مہاراج نے 26 جولائی 1902 کو اپنے ریاست میں براهيو اور شےنويوي ذات کو چھوڑ کر باقی تمام جاتيو کے لئے 50 فیصد ریزرویشن کی نظام نافذ کی. جب اسمبلی مڈلو میں ریزرویشن کی وکالت کی گئی تو سب سے پہلے بال گنگادھرتلک نے یہ کہہ کر مخالفت کی کی کیا تےلي، تمولي، كبھٹو کو پارلیمنٹ میں جا کر حل چلانا ہے. جس پر برہمنوں کی طرف سے بال گنگادھرتلک کو میںمقبول عام کی ڈگری فراہم کی. موہن داس كرمچند گاندھی نے ہر طرح کے ریزرویشن کا فرقہ وارانہ نام دے کر مخالفت کی. جواہر لال نہرو نے ریزرویشن کے لئے کہا کہ اس سے دوسرے درجے کا ملک بنتا ہے.
ڈاکٹر امبےڈكر ء 1942 میں اے بار لیبر منسٹر بنے تب انہوں مکمل، بھارت میں 8 فیصد ریزرویشن نافذ کیا. آزاد بھارت میں جب آئینی طور سے ریزرویشن کا بندوبست کرنا چاہا تو ان کا بہت مخالفت کی گئی اور کہا گیا کی ریزرویشن کی وجہ سے انتظامی صلاحیت میں کمی آئے گی. اس پر ڈاکٹر امبےڈكر اپنا جواب دیا کی فعالیت حکومت سے بہتر نمائندہ حکومت ہوتی ہے. انہوں نے کہا کہ آپ عقلمند ہو سکتے ہیں، آپ كاريسكشم ہو سکتے ہیں، یہ صحیح ہے لیکن آپ ایماندار ہو سکتے ہیں اس بات پر مجھے شک ہے. مان بھی لیا جائے کہ تم ایمان دار بھی ہو سکتے ہو لیکن آپ میرے نمائندے نہیں ہو سکتے.ہمارا نمائندہ صرف ہمارا ہوگا. دوسرا کوئی اور نہیں ہو سکتا. جمہوریت کیا ہے؟ سوا سو کروڑ کے لوگوں کے 543 نمائندے پارلیمنٹ میں جاتے ہیں یعنی جمہوریت کچھ نہیں نمائندے نظام ہے. بابا صاحب ڈاکٹر امبےڈكر نے ریزرویشن کی مخالفت کرنے والو کو چیلنج کیا کہ اگر آپ جمہوریت کو مانتے ہیں تو آپ نمائندگی کو درکنار کرتے ہیں، تو آپ جمہوریت کو نہیں مانتے. اس طرح سے بابا صاحب ڈاکٹر امبےڈكر کی دلیلوں سے ریزرویشن کی مخالفت کرنے والوں کو، ریزرویشن کی مخالفت کرنا مشکل ہو گیا.
ڈاکٹر امبےڈكر نے 1942 میں شےڈيولڈ کاسٹ فیڈریشن بنایا. شےڈيولڈ کاسٹ فیڈریشن نے آئین ساز اسمبلی میں جانے کے لئے 30 امیدوار کھڑے کیے تھے، مگر تمام امیدوار ہار گئے. صرف بنگال سے ایک امیدوار جوگےندرناتھ وفد جیت کر آئے. جب یہ دیکھا کی آئین ساز اسمبلی میں ہمارا کوئی نمائندگی نہیں ہے، تو جوگےندرناتھ منڈل نے اپنی سیٹ سے استعفی دے کر ڈاکٹر امبےڈكر کو چنواكر آئین ساز اسمبلی میں بھیجا. اگر ڈاکٹر امبےڈكر انتخاب ہار جاتے تو گاندھی اور کانگریس کو ڑھڈھورا دھونے کا موقع مل جاتا کی ڈاکٹر امبےڈكر کے ساتھ کوئی ہے ہی نہیں ہے، کیونکہ گاندھی نے تو ڈاکٹر امبےڈكر کے لئے لکھا تھا اور سردار پٹیل نے اعلان کیا تھا کہ ' 'ڈاکٹر امبےڈكر کے لئے آئین ساز اسمبلی کے دروازے ہی نہیں، كھڑكيا بھی بند ہے''. کانگریس نے جسے غدار کہا ہو اور جسے آئین ساز اسمبلی میں آنے روکنے کے لئے سارے انتظام کئے ہو.
گول میز کانفرنس میں ڈاکٹر امبےڈكر کے ذریعے کی گئی پیروی کی وجہ سے انگریز حکومت کی طرف سے فرقہ وارانہ پچاٹ میں دلتو کو علیحدہ الیکشن اور دو ووٹ کا حق دیا گیا، جس کے خلاف میں موہن داس كرمچند گاندھی نے انشن کیا، جس کی وجہ سے ڈاکٹر امبےڈكر پر پڑ رہے چوترپھا دباؤ، دلت بستيو کو جلانے کی دھمکیوں اور ڈاکٹر امبےڈكر کو مل رہی جان کی دھمکیوں کی وجہ سے پونا کی جیل میں جا کر ڈاکٹر امبےڈكر نے گاندھی کے ساتھ معاہدہ کیا، جس کے نتیجے میں پونا پےكٹ معاہدہ ہوا، جس میں انگریز حکومت سے حاصل علیحدہ الیکشن اور دو ووٹ کا حق دلتو کو تياگنا پڑا. پونا پےكٹ معاہدہ کے نتیجے میں دلتو کو ہر سطح پر ریزرویشن دینے کا انتظام کیا. یہ ریزرویشن دلتو اور براهيو کے درمیان ہوئے پونا پےكٹ معاہدے کا نتیجہ تھا.
اوبيسي ریزرویشن کہ بات کرے تو یہ بھی ڈاکٹر امبےڈكر آزادی سے قبل دینا چاہتے تھے، لیکن کانگریس نے انہیں ایسا کرنے نہیں دیا، پھر بھی امبےڈكر نے دیگر پسماندہ طبقے کے ریزرویشن کے لیے آئین میں آرٹیکل 340 کا بندوبست کیا. آزادی کے بعد ڈاکٹر امبےڈكر نے کانگریس سے آرٹیکل 340 کو لاگو کر کمیشن قائم کرنے کی تجویز پیش کی جسے کانگریس نے نہیں مانا، مجبور ہو کر انہوں نے اپنے وزیر قانون کے عہدے سے استعفی دے دیا، لیکن کانگریس نے بڑھتے دباؤ سے مجبور ہو کر، کاکا كالےلكر کمیشن کی تشکیل کی. 1953 میں اپنی رپورٹ میں کمیشن نے اوبيسي کی تقریبا 2000 جاتيو کی نشاندہی کر اوبيسي ریزرویشن کہ سفارش کی. جس پر نہرو نے کاکا كالےلكر کو پارلیمنٹ کے كےندري کمرہ میں بلا کر ڈانٹا اور اس سے اپنی ہی رپورٹ کے خلاف 31 پیج کا خط لکھوایا. مذکورہ خط کو بنیاد بنا کر نہرو نے کاکا كالےلكر کمیشن کی رپورٹ پر بحث کرنے سے انکار کر دیا. 1954 میں نہرو نے تمام مكھيمترييو کو خفیہ خط لکھ کر ہدایت کی کہ ریزرویشن پر عمل نہیں کیا جائے کیونکہ اس سے دوسرے درجے کا ملک کی تعمیر ہوگا، اس شڈينتر کا بھاڈاپھوڑ 1977 میں جنتا پارٹی کی حکومت کے وزیر داخلہ چوہدری چرسه نے کیا کیونکہ وہ نہرو کے مخالف تھے اور اس خط کو فائل سے نکال کر میڈیا کو شائع کرنے کے لئے دے دیا.
ء 1977 میں مورارجي دیسائی نے اپنے انتخاب اعلان خط میں کہا کہ اگر ہماری حکومت آئی تو ہم كالےلكر کمیشن کی سفارشات کو نافذ کریں گے. 1977 میں کانگریس کے سخت مخالفت کی وجہ سے مورارجي دیسائی کو عام انتخابات میں اکثریت حاصل ہوئی اور وہ وزیر اعظم بنے. وزیر اعظم بنتے ہی اوبيسي نمائندے مڈل نے كالےلكر کمیشن کی سفارشات کو نافذ کرنے کی درخواست کی، جسے دیسائی نے یہ کہہ کر مسترد کر دیا کہ کمیشن کی سپھارشے 1953 کی ہے اور اب 1977 چل رہا ہے، حالات اور وقت بدل گیا ہے، اب ایک نیا کمیشن بنا دیتے ہیں. نتیجے بندےشوري پرساد مڈل کی صدارت میں مڈل کمیشن کی تشکیل کی گئی. جس کی رپورٹ 1981 میں وزیر اعظم اندرا گاندھی کے دور میں آئی جس کو گاندھی نے پارلیمنٹ کے سکرین پر رکھنے سے انکار کر دیا جو بار - بار اوبيسي کے ممبر پارلیمنٹ پارلیمنٹ میں ہنگامہ کرتے تھے، تو مجبور ہو کر گاندھی نے مڈل کمیشن کی سپھارشو کو لوک سبھا میں بحث کے لئے رکھا اور یہ اعلان کیا کی اسے اقتصادی بنیاد پر نافذ کیا جاتا تو مزید بہتر ہوتا، یہ کہہ کر نافذ کرنے سے انکار کر دیا.
اندرا گاندھی کے قتل کے بعد راجیو گاندھی وزیراعظم بنے ان کے پاس لوک سبھا میں رکن پارلیمنٹ 413 تھے، انہوں نے سوچا ہوگا کہ جب ان سپھارشو کو میری ماں نے نافذ نہیں کیا، تو میں کیوں کرو. جب تیسرے محاذ کی حکومت کے ويپي سنگھ وزیر اعظم بنے تو ان پر اپنیحکومت کو بچائے رکھنے کے لئے چودھری دےويلال اور كاشيرام نے مڈل کمیشن کی سپھارشو کو نافذ کرنے کے لئے دباؤ بنایا جس میں وہ کامیاب ہوئے اور مڈل کمیشن کی سپھارشو کو لاگو کر دیا گیا. اسمے پھر بھی ایک پیچ باقی رکھ دیا گیا. مڈل کمیشن کے ذریعے ملازمت میں ریزرویشن دے دیا گیا لیکن تعلیم میں ریزرویشن نہیں دیا گیا. نتیجہ جب تعلیم میں ریزرویشن نہیں ہوگا تو کام کا ریزرویشن خود کار طریقے سے زیرو (0) ہو گیا.
وامن مےشرام نے کہا کی سیاست کوئی بچوں کا کھیل تو ہے نہیں، کی سب کو سمجھ میں آ جائے. سیاست کا مطلب ہے کہ، ایسی پالیسی جو آپ کو بادشاہ بنا دے. اگر آپ کو سمجھ میں آ جاتا تو، آپ بادشاہ نہیں بن جاتے، آپ قوم کیوں رہتے؟ ہمارے علامت کو تو سیاست کو عمل میں لانے کی تو چھوڑو، سمجھ میں بھی نہیں آتی ہے. عمل تو تب کرے گا، جب سمجھ میں آئے گا |
- ڈاکٹر 0 سنیل یادو
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