किसान आकर ठाकुर के चरण पकड़कर रोने लगता है | बड़ी मुश्किल से ठाकुर रुपये देने पर राजी होते हैं |जब कागज़ लिख जाता है और आसामी के हाथ में पांच रुपये रख दिए जाते हैं तो वह चकराकर पूछता है - 'ये तो पांच हैं मालिक ' 'पांच नहीं दस हैं | घर जाकर गिनना ' ' नहीं सरकार पांच हैं ' 'एक रुपया नजराने का हुआ कि नहीं ' 'हाँ सरकार' 'एक तहरीर का ' 'हाँ सरकार' 'एक कागद का ' 'हाँ सरकार ' 'एक दस्तूरी का ' 'हाँ सरकार' 'एक सूद का' 'हाँ सरकार' ' पांच नगद | दस हुए कि नहीं ? 'हाँ सरकार अब पांच भी आप मेरी तरफ से रख लीजिये ' 'कैसा पागल है ' 'नहीं सरकार, एक रुपया छोटी ठकुरानी का नजराना, एक बड़ी ठकुराइन का | एक छोटी ठकुराइन का पान खाने का एक बड़ी ठकुराइन का | बाकी बचा एक रुपया वह आपकी क्रिया करम के लिए |' -[गोदान ] [जनवादी लेखक संघ -मेरठ महान साहित्यकार प्रेमचंद के जन्म दिवस ३१ जुलाई को 'प्रेमचंद और हमारा समय ' विषयक एक विचार गोष्टी का आयोजन बार लाइब्रेरी कचहरी परिसर मेरठ में कर रहा है जिसमें शहर के प्रमुख बुध्दिजीवी, लेखक ,साहित्य प्रेमी भाग लेंगे |आप सब सादर आमंत्रित हैं |] अमरनाथ 'मधुर' |
शनिवार, 23 जुलाई 2011
प्रेमचंद
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
भाई अमरनाथ जी बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति बधाई और शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंउद्धरण बढ़िया रहा। 31 जूलाई के कार्यक्रम हेतु अग्रिम मुबारकवाद। प्रेम चंद्र जी के जन्म दिन के लिए शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएं