बहुत दिन हुये हैं कोई गीत गाये
जमाना है गुजरा हमें मुस्कराये।
कबीरा की चाकी बनी जिन्दगानी
सलामत न बाकि कोई भी निशानी
नहीं कोई अपना सभी हैं पराये।
न कोई खुशी है नहीं कोई गम है
मेरी जिन्दगी तू बडी बेरहम है
फर्क कुछ नहीं है कोई आये जाये।
बहुत दूर दिल से सभी रिश्ते नाते
हमीं ने न चाहा तो वो क्यूँ निभाते
अकेला कहॉं तक कोई लौ लगाये।
अजब जिदगी है हमें रास आयी
लगे फीकी फीकी ये सारी खुदायी
कहीं नूर बरसे, कही रंग छाये।

bahut khoobsoorat prastuti. dhanywaad
जवाब देंहटाएंएक-एक शब्द भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.