युवाशक्ति किसी भी समाज की सबसे बडी ताकत होती है। युवा वर्ग ही समाज का उत्पादक वर्ग बनता है। वही नये ज्ञान विज्ञान का सर्जक एवं साधक होता है।वही परिवर्तन का वाहक होता है। समाज की यह सबसे बडी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने युवाओं को बौद्धिक और शारीरिक विकास के लिये स्वस्थ वातावरण प्रदान करे।घर और बाहर स्वस्थ,स्वच्छ एवं उन्मुक्त वातावरण ही युवाओं की प्रतिभा के विकास को सही दिशाप्रदान कर सकता है। ऐसा वातावरण न मिलने पर उसके कदम बहक सकते हैं। वह अपराध या नशे की गिरप्त में आ सकता है अथवा निराश होकर आत्म हत्या कर सकता हे।आज कल युवाओं में आत्महत्या की बढती प्रवृत्ति से पता चलता है कि हमारे युवजन गहरे तनाव में जी रहे हैं। इस तनाव के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु सबसे बडा कारण उनका अपने कैरियर को लेकर चिन्तित रहना है। उनके सामने अपने पैरों पर खडा होने की ही नहीं वरन चमकदार पेशे में शामिल होने की भी बडी चुनौति है। हमने उनके सामने जीवन जीने के ऐसे आदर्श रखे हैं जो हर क्षेत्र में गलाकाट प्रतियोगिता को बढावा दे रहे हैं। युवा चाहता है बल्कि उसके माता पिता चाहते हैं कि वह हर कीमत पर एक चमकदार कैरियर बनाने में सफल हो। जब वह किसी कारण से ऐसा नही कर पाता तो उसके दिल पर ऐसी ठेस लगती है जिसे वह झेल नहीं पाता। वह जीता दिखता है, वह हॅंसता दिखता है, वह चलता फिरता हर काम करता दिखता है पर उसके अन्दर सब कछ ठहर जाता है। चटक जाता है। बाहर से सब कुछ वैसे के वैसा ही दिखता है किन्तु अन्दर कुछ भी सही सलामत नहीं होता। इसका पता तब चलता है जब एक दिन अचानक हमारे सामने वह बिखर जाता है। हम स्तब्ध रह जाते हैं। हम समझ नहीं पाते यह क्यों हुआ।वो लख्ते जिगर जो सबकी ऑंख का तारा था,राज दुलारा था,जीवन का सहारा था यूॅं हमें कैसे छोडकर जा सकता है? हम भूल जाते हैं कि आज हमारे समाज में ऐसे जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठा प्राप्त है जिन्हें प्राप्त करने मे असफलता का डर ही उन्हें जीवन से निराष कर देता है।उनके माता पिता भले ही उनसे बहुत अपेक्षा न रखते हों लेकिन समाज की नजरों में उचा बनने,खासतौर से पूजीवादी मूल्यों के अन्तर्गत उच्च जीवन स्तर प्राप्त करने की ललक या एक ऐसी सफलता प्राप्त करने की ललक जिसके लिये कठोर और अनवरत परिश्रम की आवष्यकता होती है न कर पाने की विफलता युवाओं में आत्महत्या का एक बडा कारण है। इसीलिये पता नहीं आज के युवा अपने मॉं बाप से डरते हों या न डरते हों किन्तु हकीकत ये है कि उनके मॉं बाप उनसे बहुत डरते हैं। वे डरते हैं उनके गुस्से से, वे डरते है उनकी चुप्पी से वे डरते हैं उनकी हॅंसी से। हॉं वे अब उनकी हॅंसी से भी डरते हैं। पता नहीं उनके चेहरे की हॅंसी कितनी सच्ची है कितनी अच्छी है। क्या पता उनके हॅंसते खिलखिलाते चेहरे के पीछे कोई भयानक चेहरा छुपा हो।क्या पता उनके दिल की गहराइओं में कौन सा राज नाग बनकर जिन्दगी को डसने के लिय तैयार बैठा हो। कितने युवा होते बच्चे हॅंसते,खेलते मौत को गले जगा रहे हैं। क्या वे किसी से कुछ कहकर आत्महत्या कर रहे हैं। उनके माता पिता तो क्या उनके हमदम,हमकदम भी नहीं जान पाते कि वे कब अपनी जीवन लीला समाप्त करेंगें।
आखिर वो कौन सा दर्द है जिसे हमारे युवा बॉंट नहीं पाते। क्या डॉक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक बनना ही जिन्दगी है।क्या करेंगें डॉक्टर, इन्जीनियर बनकर यही ना कि बहुत ज्यादा पैसे कमायेंगें। पर पैसे से क्या होगा ? क्या पैसे से ही जिन्दगी सब खुशियॉं खरीदी जा सकती हैं? जिन्दगी हलवाई की मिठाई नहीं है जिसे रस लेकर खाया जा सके।जिन्दगी एक संग्राम है जिसे लडना ही पडता है। और जो लड नही सकेगा वह जी नहीं सकेगा। इसलिये जिन्दगी का कोई फलसफा डॉक्टरों इन्जीनियरों के पास नहीं है।जिन्दगी का फलसफा है हमारे कवियों और सन्तों के पास। शायर मजहर गढमुक्तेश्वरी कहता हैः-
जिन्दगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
नौजवानों आओ जिन्दगी की जंग लडें,उससे दो दो हाथ करें। अभी उससे हारने, थककर बैठने का वक्त तुम्हारी जिन्दगी में नहीं आया है। अभी तुम्हें लम्बा सफर तय करना है। जिन्दगी को जीना है जीतना है।निराश होकर रूको नहीं। ठहरा हुआ तो पानी भी सड जाता है। जीवन तो है ही चलने का नाम। चलते रहो सुबह औ शाम। ये रस्ता कट जायेगा मितरॉं, फासला घट जायेगा मितरॉं,हौशला बढ जायेगा मितरॉं। ये जो गमो की स्याह रात है कितनी भी लम्बी हो कट ही जायेगी। फिर सुबह होगी, सूरज निकलेगा,फूल खिलेंगें, भौंरे गुनगुनायेंगें, पंछी चहचहायेंगें।फिर तुम्हारी जिन्दगी में ही कैसे अधंेरा कायम रह सकता है। सुबह जरूर होगी।
शायद दुनियॉं में कोई ऐसा आदमी न होगा जिसने अपने जीवन में एक बार कभी न कभी आत्महत्या करने के बारे मे न सोचा हो। किन्तु कितने लौग मरे? अनायास या सप्रयास वह बुरा वक्त गुजर गया और जिन्दगी फिर अपनी रप्तार से चल पडी। सच यही है कि यदि वह समय गुजर जाये जिस समय व्यक्ति आत्मघात की ओर प्रवृत्त होता है तो फिर वह आत्महत्या नहीं करेगा। कुछ लौग कहते हैं वह लम्बे समय से तनाव में था। कितने लम्बे समय से तनाव मे था? महीने? दो महीने? छः महीने? इतने दिनों मंे तो कैसा भी मौसम हो वह भी बदल जाता है। क्या बरसात के बाद सर्दी और सर्दी के बाद गर्मी की ऋुत नहीं आती। क्या पतझर के बाद बहार नहीं आती। फिर जिन्दगी में हॅंसी खुशी के दिन क्यो नहीं आयेंगें। अवश्य आयेंगें। याद रखो जिन्दगी हजार नेमत है। जिन्दगी नही ंतो कुछ भी नहीं।जिन लौगों ने इस जीवन के बाद स्वर्ग में बेहतर जिन्दगी की कल्पना की है वह कोरी कल्पना ही है।केवल मन समझाने वाली बात है। जो कुछ भी सुख दुख है वह इसी जीवन में है, इसी धरती पर है। इससे बाहर कहीं कुछ नहीं । तभी तो गालिब कहते हैं -हमको मालूम है जन्नत की हकीकत, लेकिन दिल के बहलाने को गालिब यह ख्याल अच्छा है। इसलिये जियो जिन्दगी के लिये, हर खुशी के लिये। जो आज भी है और कल भी। मीर तकी मीर का कहना है-
मीर अमदन भी कोई मरता है, जान है तो जहान है प्यारे|

विचारोतेजक लेख .मेरी बधाई स्वीकार करें .
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