अभी अँधेरा गहमा सा है
दिल फूलों का सहमा सा है
अंधियारा कुछ कम हो जाए
तितली फूलों पर मंडराए .
तब मधुवन के गीत लिखूंगा,
हाँ मैं मन के गीत लिखूंगा |
अभी सांस पर पहरा बैठा
आँखों,में डर गहरा बैठा
जब टूटा विश्वास जुड़ेगा
मन होकर आजाद उड़ेगा
तब जीवन के गीत लिखूंगा
हाँ, मैं मन के गीत लिखूंगा |
अभी रात का सन्नाटा है
मजहब ने हर दिल बांटा है
खुशियाँ जब घर-घर आएँगी
और झोलियाँ भर जायेंगी,
घर आँगन के गीत लिखूंगा
हाँ, मैं मन के गीत लिखूंगा |
बीच हमारे दीवारें हैं
और विवश घर के द्वारे हैं .
जब दीवारें हट जायेंगी
और बेडिया कट जायेंगी
घरआँगन के गीत लिखूंगा
हाँ, मैं मन के गीत लिखूंगा
डरी-डरी सी अब दुल्हन है
होम हुआ उसका जीवन है
सबको जब अधिकार मिलेंगे
हर घूँघट में फूल खिलेंगे
तब चितवन के गीत लिखूंगा
हाँ, मैं मन के गीत लिखूंगा |
कैसे हैं ये रिश्ते नाते,
डरते हैं सब हाथ मिलाते ,
मन को होटों तक आने दो
रिश्ता बनाकर मुस्काने दो
मधुर मिलन के गीत लिखूंगा,
हाँ, मैं मन के गीत लिखूंगा |
- डा0राम गोपाल 'भारतीय'
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