जो हैं गरीब उनकी जरूरते कम हैं,
कम हैं जरूरते तो मुसीबते कम हैं |
हम मिलजुल कर गाते गरीब की महिमा
हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं|
वे नंगें रह लेते हैं बडे मजे में
वे भूखे रह लेते हैं बडे मजे में
हमको कपडों पर और चाहिये कपडे
खाते पीते अपनी नाकों में दम है।
वे कभी कभी कानून भंग करते हैं
पर भले लौग हैं ईश्वर से डरते हैं,
जिसमे श्रद्धा या निष्ठा नहीं बची है
वह पशुओं से भी नीचा और अधम है।
अपनी श्रद्धा भी धर्म चलाने में है,
अपनी निष्ठा भी लाभ कमाने में है
ईश्वर है तो शान्ति , व्यवस्था भी है, ईश्वर से कम कुछ भी विध्वंस परम है।
करते हैं त्याग गरीब स्वर्ग जायेंगें
मिट्टी के तन से मुक्ति वही पायेंगे।
हम वो अमीर हैं जो सुविधा के बंदी
लालच से अपने बॅंधे हरेक कदम हैं।
इतने दुख में हम जीते जैसे तैसे,
हम नहीं चाहते हों गरीब हम जैसे,
लालच न करें हिंसा पर कभी न उतरें,
हिंसा करनी हो तो दंगे क्या कम हैं।
कम हैं मुसीबते अमन चैन हरदम है।
हम मिलजुल कर गाते गरीब की महिमा
हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं।
-गोरख पाण्डेय
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