'समय नहीं है'
अजय ठगा सा खडा रह गया। पिछले दस वर्षो के दाम्पत्य जीवन के अनेक चित्र उसकी ऑंखों में तैरने लगे। उसने अपने को कभी इतना हताश, इतना टूटा हुआ, इतना अकेला महसूस नहीं किया था। उसे विश्वास ही न हो रहा था कि उसे इतना प्यार करने वाली उसकी सीधी सादी पत्नी उसे यूं अकेला छोडकर चली जायेगी। उसने नम हो आयी अपनी ऑंखों को धीरे से पोंछा और पॉंव घसीटते हुये एक ओर चल दिया । उसके पीछे उसका आठ वर्षीय पुत्र मोहित अचानक घटी इस घटना को देखते ही रह गया। उसकी कुछ समझ में नहीं आया। किन्तु इतना तो वह समझ ही गया कि कुछ खराब बात हो गयी है। वह घबरा गया और अजय के पीछे पीछे भागा।
अजय को बेकारी और भुखमरी से ऑंख मिचौली करते हुये बरसों गुजर गये। दोनों पति- पत्नि परिस्थितियों से जूझते आ रहे थे किन्तु कुछ दिनों से निराशा की गहरी काली मनहूस छाया शोभना की ऑंखों और व्यवहार में में ऐसी गहरा गयी थी कि अजय चाहकर भी उससे ऑंख मिलाकर बात नहीं कर पाता था। यद्यपि अजय एक हॅंसमुख और मिलनसार नौजवान था। वह अपने दोस्तों में खासतौर से इसलिये जाना जाता था कि वह रोतो हुयो को हॅंसाने का गुर जानता था । निराशा या असफलता की बाते वह हवा में उडा देता था। शायद अपने इसी जिन्दादिल स्वभाव के बलबूते वह पिछले दस वर्षों से भूख और बेकारी से भीषण जंग लडता आ रहा था। वह कहा करता था कि आज उसका समय नहीं है लेकिन कल उसका जरूर होगा। परिस्तिथियॉं कितनी भी खराब क्यों न हुई सुखद भविष्य की आशा ने उसके उत्साह को मन्द न होने दिया। लेकिन पिछले कुछ महीने से वह चिन्तित और उदास रहने लगा था।
उसकी पत्नि शोभना तो पहले से ही गमगीन इन्सान की तरह खामोश और उल्लास रहित जीवन जी रही थी। शोभना के व्यवहार में ठंडापन और ऑंखों में सूनापन देखकर अजय सहम जाता था । वह सोचता बेचारी ने शहरी जीवन की रंगीनियों के कितने स्वप्न देखें होंगें। सब उसकी पहुॅंच से दूर थे। आखिर कोई खाली हॅंसी मजाक की बातें सुन सुनाकर कब तक जिन्दगी की गाडी खींच सकता है। जिन्दगी की गाडी को भी तेल पानी चाहिये कि नहीं। समाज शास्त्रियों विचारकों के लिये दस वर्ष का समय कोई मायने न रखता हो किन्तु नौजवानों के दस वर्ष जो रंगीन सपनों में कल्पनाओं के नये नये पंख लगाकर उडने के होते उन्हें रोजी किल्लत से जूझते हुये बिता देना और उससे भी अधिक भविष्य की आशंकाओं से त्रस्त रहना किसी के भी हौसले पस्त कर सकता है। ऐसे में यदि अजय भी निराश हो चला तो उसमें अस्वाभाविक क्या था?
उसकी पत्नि शोभना तो पहले से ही गमगीन इन्सान की तरह खामोश और उल्लास रहित जीवन जी रही थी। शोभना के व्यवहार में ठंडापन और ऑंखों में सूनापन देखकर अजय सहम जाता था । वह सोचता बेचारी ने शहरी जीवन की रंगीनियों के कितने स्वप्न देखें होंगें। सब उसकी पहुॅंच से दूर थे। आखिर कोई खाली हॅंसी मजाक की बातें सुन सुनाकर कब तक जिन्दगी की गाडी खींच सकता है। जिन्दगी की गाडी को भी तेल पानी चाहिये कि नहीं। समाज शास्त्रियों विचारकों के लिये दस वर्ष का समय कोई मायने न रखता हो किन्तु नौजवानों के दस वर्ष जो रंगीन सपनों में कल्पनाओं के नये नये पंख लगाकर उडने के होते उन्हें रोजी किल्लत से जूझते हुये बिता देना और उससे भी अधिक भविष्य की आशंकाओं से त्रस्त रहना किसी के भी हौसले पस्त कर सकता है। ऐसे में यदि अजय भी निराश हो चला तो उसमें अस्वाभाविक क्या था?
अजय के पिता सरकारी सेवा में मामूली से कर्मचारी थे। दिल्ली जैसे बडे शहर में जीवन यापन के खर्चे पूरे करना एक मामूली सरकारी कर्मचारी के के लिये जिसके पास उपर की कोई आमदनी न हो बहुत कठिन था। जब से सरकार ने नई आर्थिक नीतियॉं लागू की थीं वेतन भोगी वर्ग पर कई तरह के संकट आ गये थे। एक तरफ उन पर छॅंटनी का खतरा मंडरा रहा था दूसरी तरफ खुले बाजार की तेज रप्तार ने जीवन यापन के लिये आवश्यक वस्तुओं को उनकी पहुँच से दूर कर दिया था । शिक्षा चिकित्सा परिवहन व्यवस्था सब बाजार की भेंट चढ गये थे। अजय बीएससी की पढाई कर रहा था । उसकी गिनती कालिज के होशियार छात्रों में हाती थी । अन्य छात्रों की तरह वह भी डॉक्टर, इन्जीनियर बनना चाहता था किन्तु उसे शीघ्र ही एहसास हो गया कि अपने पिता की सीमित आमदनी में उसके लिये मेडिकल अथवा इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त कर सकना संभव नहीं होगा। उसने कोई पार्ट टाईम काम करने का निश्चय किया। वह प्रभावशाली ओर सुदर्शन व्यक्तित्व का मालिक था। उसने माडलिंग की दुनियॉं में हाथ आजमाने की सोची। जल्दी ही उसे एक विज्ञापन कम्पनी में काम करने का मौका भी मिल गया। कभी पॉंच हजार कभी दस हजार रूप्ये की आय उसे विज्ञापन से महीने दो महीने में होने लगी। अजय के पिता जो पहने आमदनी से ज्यादा खर्च होने के कारण परेशान रहते थे कुछ निश्चिन्त से रहने लगे। घर का माहौल खुशनुमा हाने लगा।
इसी बीच अजय को अपनी बीमार मौसी को देखने के लिये अपनी मौसी के गॉंव जाना पडा। अजय की मौसी का गॉंव पूर्वी उत्तर प्रदेश के सुदूर अंचल में स्थित था। इलाहाबाद से 80 कि0मी0 दूर रमजोगीपुर नाम के इस गॉंव में टेलीविजन और हिन्दी फिल्मों के माध्यम से से शहर की नई हवा पहुँच तो रही थी लेकिन यहॉं जिन्दगी अभी भी सदियों पुराने तरीके से बैलगाडी की तरह हिचकोले खाती हुये चल रही थी। भारतीय समाज की जो परम्परागत पहचान है जातपॉंत,उंच नीच, टोने टोटके, शकुन अपशकुन, पूजा पाठ,कर्मकाण्ड सब बदस्तूर जिन्दगी को आकाशबेल की तरह लपेटे थे। परजीवी आकाशबेल की तरह उन सारी प्रथाओं, कुपथाओं और सामाजिक चिन्ताओं ने जीवन का सारा रस चूंस लिया था। किन्तु जिन्दगी तब भी वहॉं कभी स्वभाविक रूप से खिलखिलाती थी, गुनगुनाती थी, पेड पर चहचहाती चिडिया की तरह , पहाड से झरते झरने की तरह। ऐसे अवसर होते थे सामुहिक रूप से मनाये जाने वाले तीज त्यौहार, पशु चराई,फसल कटाई या खलिहान के काम करते हुये। अजय अपनी बीमार मौसी की कुशल क्षेम जानकर तुरन्त वापिस आना चाहता था किन्तु मौसी की गम्भीर हालत को देखकर उसे कुछ दिन रूकना पडा। तभी आ गया होली का त्यौहार। भरत के ग्रामों में होली बडी ही मस्ती का त्यौहार होता है। बूढे बच्चे जवान सब मस्ती में उमड पडते हैं। गॉंव के लडको ने अजय को अपन बीच पाकर ऐसा उत्साह दिखाया जैसे अभिताभ बच्चन या धर्मेन्द्र उनके बीच आ गया हो। सबने मिलकर ऐसा हुडदंग मचाया जैसा गॉंव के इतिहास में पहले किसी पर्व पर नहीं हुआ था।
अजय ने गॉंव के त्यौहारी जीवन का का भरपूर आनन्द उठाया। उसने खूब रंग खेला।अजय ने फिल्मी अन्दाज में डायलाग मारे। उसकी जिन्दादिली को देखकर शोभना उस पर मोहित हो गयी। शोभना अजय की मौसी के पडौसी की लडकी थी। सत्रह अटठारह बरस की उसकी उम्र होगी। होली के बाद वह किसी न किसी बहाने उसकी मौसी के घर आने लगी। जल्दी अजय की नजर शोभना ये टकरा गयी। वह पहली ही नजर में उसे बहुत सुन्दर और शील स्वभाव की लगी थी।
शोभना अजय की मौसी का हाल चाल पूछती,दवा पानी देती। अजय की मौसी भी उससे बडी प्रसन्न रहती और हमेशा अजय से उसकी तारीफ करती रहती। वह कहती शोभना बडी अच्छी लडकी है। कभी ऊँचा नहीं बोलती। जिसके साथ उसका विवाह होगा वह जरूर खुश रहेगा। वह बताती कि इसके पिता इसके लिये वर खोज रहे हैं।
अजय ने गॉंव के त्यौहारी जीवन का का भरपूर आनन्द उठाया। उसने खूब रंग खेला।अजय ने फिल्मी अन्दाज में डायलाग मारे। उसकी जिन्दादिली को देखकर शोभना उस पर मोहित हो गयी। शोभना अजय की मौसी के पडौसी की लडकी थी। सत्रह अटठारह बरस की उसकी उम्र होगी। होली के बाद वह किसी न किसी बहाने उसकी मौसी के घर आने लगी। जल्दी अजय की नजर शोभना ये टकरा गयी। वह पहली ही नजर में उसे बहुत सुन्दर और शील स्वभाव की लगी थी।
शोभना अजय की मौसी का हाल चाल पूछती,दवा पानी देती। अजय की मौसी भी उससे बडी प्रसन्न रहती और हमेशा अजय से उसकी तारीफ करती रहती। वह कहती शोभना बडी अच्छी लडकी है। कभी ऊँचा नहीं बोलती। जिसके साथ उसका विवाह होगा वह जरूर खुश रहेगा। वह बताती कि इसके पिता इसके लिये वर खोज रहे हैं।
अजय सोचता कि अगर शोभना से उसका विवाह हो जाये तो जिन्दगी कितनी मजे में बीतेगी। यूँ उसे शादी के लिये लडकियों की कोई कमी न थी किन्तु गॉंव में रिश्तों की जिस पवित्रता, जिस गहराई और जिस गर्माहट का एहसास उसे हुआ उसे देखते हुये शहरी प्रेम सम्बन्ध उसे बडे घटिया ओर वाहियात मालूम होते। शोभना थी कि उसे देखते ही ऑंख झुका लेती थी। अजय को अपने कालिज की लडकियॉं याद आती थी जो पलक झपकतें ही उसके होठ चूम सकती थीं किन्तु अगले ही पल किसी दूसरे की बॉंह में बॉंह डाले खिलखिला रही होती। वे एक ही वक्त में कई.कई लडकों से अपना चक्कर चलाती रहती थी । लडके भी कपडों की तरह प्रेमिकायें बदलते रहते थे। अजय सोचता रहता की एक तरफ गॉंव है जहॉं प्यार के लफज होठों पर आते लडखडाते हैं, प्रेम की भाषा जहॉं आज भी मूक होती है। निगाहों की मीठी छुअन रातों की नींद उडा देती है। अजय को लगता शोभना के रूप में उसे प्यार का सच्चा खजाना मिल गया है। उसे ऐसा लगता जैसे अब वह शोभना के बिना जिन्दा न रह सकेगा।
अजय की मौसी भी दोनों के रंग ढंग देख रही थी। उसने तय किया कि वह जीवन के अन्तिम दिनों में दोनों के विवाह का पुण्य अवश्य कमायेगी। धीरे धीरे अजय की मौसी की हालत में सुधार होने लगा। अजय के पिता ने अजय को वापिस आने के लिये पत्र लिखा। अजय की पढाई का नुकसान हो रहा था। अजय शोभना से बिछुडने का दर्द दिल में लिये दिल्ली आ गया। महानगर की तेज रप्तार जिन्दगी में अजय ने स्वयं को खपा दिया। कुछ ही महीने बीते होंगें कि अजय के मौसाजी शोभना के पिता को लेकर अजय से शोभना का रिश्ता लेकर आ पहुंचे ।
अजय के पिता बडे ही उदार विचारों के व्यक्ति थे। वह स्वयं चाहते थे कि अजय का विवाह भारतीय संस्कारों में पली बढी लडकी से हो। उन्होंने अजय की मॉं से अजय का विवाह शोभना से करने की बात अजय से कहने के लिये कहा। अजय तो शोभना से विवाह के सपने की देखता रहता था। उसे लगा जैसे उसके सपने आकाश से जमीन पर उतर रहे हैं। उसने सहर्ष विवाह की स्वीकृति प्रदान कर दी। शोभना के पिता उसकी स्वीकृति पाकर बडे प्रसन्न हुये। उन्हें लगा कि उनकी शोभना की जिन्दगी बन जायेगी। शोभना बडे शहर में रहेगी तो जिन्दगी के सारे सुख भोगेगी। पन्द्रह दिन के अन्दर विवाह की सारी रस्में पूरी हो गयी और शोभना लाल जाडे में अजय के घर आ गयी।
दोनों के दाम्पत्य जीवन की अभी ठीक से शुरूआत भी नहीं होने पायी थी कि अजय के पिता की नौकरी खत्म हो जाने के समाचार से घर में शोक छा गया। अजय के पिता के कार्यालय में कर्मचारियों की छटनी की चर्चा तो बहुत दिनों से चल रही थी किन्तु सबको विश्वास था कि सरकार उनकी नौकरी नहीं छीनेगी। वस्तुत वह सच्चाई से मुह चुराना था। सरकार की नई आर्थिक नीति में जन कल्याण के कार्यक्रमों के लिये कोई जगह नहीं थी। सरकार धीरे धीरे जन साधारण के हितों के कार्यों से स्वयं को अलग कर रही थी। अधिक से अधिक कर्मचारियों को को वीआरएस देकर छुटकारा पाया जा रहा था । इसके बाद भी कई विभागों अनुभागों को बन्द कर उसके कर्मचारियों को जबरन बाहर किया जा रहा था। एक दिन अजय के पिताजी को भी बन्द लिफाफे में सेवा मुक्ति के आदेश थमा दिये गये।
एक बडे महानगर में सरकारी कर्मचारी का सहसा बेरोजगार हो जाना घर मे मौत हो जाने से भी बडा आघात था। जहॉं जेब में पैसे बिना जिन्दगी पर कभी भी पूर्ण विराम लग जाने का संकट हो वहॉं बिना नियमित आय के गृहस्थी की गाडी कितनी दूर तक खींची जा सकती है। सेवा मुक्ति की खबर सुनकर ही अजय की मॉं ने खाट पकड जी। उसे ऐसा सदमा लगा कि दो महीने के अन्दर उसके प्राण पखेरू उड गये। अजय के पिता की जमा पूँजी उसकी मॉं की बीमारी में उड गयी।
तेजी से घूमते घटना चक्र की भयावहता को शोभना शीघ्र ही समझ गयी। महानगर की चमक दमक के रूपहले सपने जो उसकी ऑंखों में बरसों से सोते जागते जगमगाते रहते थे बर्तन की कलाई की तरह उतर गये।उसे लगा जैसे ऊँची उडान के लिये उडी कोई चिडिया अपनी पहली ही उडान में किसी ऊँची बिल्डिंग से टकराकर जमीन पर आ पडी है। जमीन पर पडी चिडिया की ऑंखों में नील गगन में उडने की हसरत पूरी न हो पाने की जो पीडा उभरती है वह शोभना की ऑंखों में ठहर गयीथी । मितभाषी तो वह पहले से ही थी अब वह और भी खामोश रहने लगी। वह दैनिक जीवन के कामकाज मशीन की तरह निपटाती और रात को चुपचाप अजय की बगल में पडकर सो जाती। यही उसकी दिनचर्या बन गयी। अजय उसे प्रसन्न रखने की भरपूर कोशिश करता लेकिन दोनों ही जानते थे कि प्रसन्नता जैसी कोई चीज जिन्दगी में बची नहीं है। उन्हें लगता जैसे वह प्रसन्न होने का अभिनय कर रहे हैं। उनकी सबसे बडी समस्या निश्चित आजीविका के अभाव में परिवार के खर्चों का पूरे करने की थी।
अजय के पिता ने इधर उधर प्राईवेट नौकरी पाने के बहुत प्रयास किये पर उन्हें शीघ्र ही अनुभव हो गया कि उनके लिये नौकरी ढूँढ पाना बहुत मुश्किल काम है। । जब एम बी ए, एम सी ए शिक्षा प्राप्त नौजवान बेरोजगार घूम रहे हों तब सरकारी नौकरी में आराम से जीवन गुजारने वाले अधेड वय के व्यक्ति के लिये नौकरी का अवसर कहॉं था। ऐसे ही नौकरी के लिये धक्के खाते हुये एक दिन सडक दुर्घटना में अजय के पिता की मौत हो गयी।
अब परिवार के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी अजय के अनुभवहीन कंधों पर आ गयी थी।अजय ने मॉडलिंग के अपने पुराने क्षेत्र में काम करने का प्रयास तेज कर दिये। यदा कदा काम मिलने भी लगा।लेकिन निश्चित और नियमित आय का कोई रोजगार वह अपने लिये नहीं जुटा पाया। घर पर जमा पूंजी के नाम पर कुछ भी न था जिससे वह अपना कोई छोटा मोटा व्यापार कर सकता । वैसे आजकल कम पूंजी का कोई व्यापार रह ही कहॉं गया है। परचूनिये का काम भी बडे मॉल में हो रहा है। इस बीच उनके एक पुत्र मोहित भी पैदा हो गया। मोहित की बाल सुलभ क्रीडाओं से उनके दाम्पत्य जीवन की मनहूसियत की बर्फ पिघलने लगी। जीवन की मुसकान अंधेंरे में रौशनी की लपझप करने लगी।किन्तु शहरी जीवन मे अभावों का तीखापन कुछ ज्यादा ही चुभता है।
मोहित स्कूल जाने लगा। अपने साथ के बच्चों को मोहित जब जेब खर्च के पैसों से मनचाही चीजे खरीदते देखता तो उसका भी मन ललचाता था किन्तु जहॉं जिन्दा रहने की शर्त ही खींचतान कर पूरी होती हो वहॉं बाल सुलभ इच्छाओं की पूर्ति अपव्यय ही कही जाती है। अपव्यय के लिये वहॉं कोई गंजाईश न थी। शोभना और अजय चाहकर भी मोहित की इच्छाओं को पूरा न कर पाते थे। मोहित भी वक्त से पहले परिस्थितियों समझौता करना सीख रहा था। अब वह बहुत कम अपने मम्मी पापा से किसी चीज की मॉंग करता था बल्कि अपनी मम्मी को भी ऐसी फिजूलर्ची से मना कर रहता था। वक्त से चहले उसका ऐसा परिपक्व व्यवहार देखकर शोभना और अजय मन मसोस कर रह जाते। उन्हें अपनी विवशता कचाटने लगती।
अजय के पिता ने इधर उधर प्राईवेट नौकरी पाने के बहुत प्रयास किये पर उन्हें शीघ्र ही अनुभव हो गया कि उनके लिये नौकरी ढूँढ पाना बहुत मुश्किल काम है। । जब एम बी ए, एम सी ए शिक्षा प्राप्त नौजवान बेरोजगार घूम रहे हों तब सरकारी नौकरी में आराम से जीवन गुजारने वाले अधेड वय के व्यक्ति के लिये नौकरी का अवसर कहॉं था। ऐसे ही नौकरी के लिये धक्के खाते हुये एक दिन सडक दुर्घटना में अजय के पिता की मौत हो गयी।
अब परिवार के भरण पोषण की पूरी जिम्मेदारी अजय के अनुभवहीन कंधों पर आ गयी थी।अजय ने मॉडलिंग के अपने पुराने क्षेत्र में काम करने का प्रयास तेज कर दिये। यदा कदा काम मिलने भी लगा।लेकिन निश्चित और नियमित आय का कोई रोजगार वह अपने लिये नहीं जुटा पाया। घर पर जमा पूंजी के नाम पर कुछ भी न था जिससे वह अपना कोई छोटा मोटा व्यापार कर सकता । वैसे आजकल कम पूंजी का कोई व्यापार रह ही कहॉं गया है। परचूनिये का काम भी बडे मॉल में हो रहा है। इस बीच उनके एक पुत्र मोहित भी पैदा हो गया। मोहित की बाल सुलभ क्रीडाओं से उनके दाम्पत्य जीवन की मनहूसियत की बर्फ पिघलने लगी। जीवन की मुसकान अंधेंरे में रौशनी की लपझप करने लगी।किन्तु शहरी जीवन मे अभावों का तीखापन कुछ ज्यादा ही चुभता है।
मोहित स्कूल जाने लगा। अपने साथ के बच्चों को मोहित जब जेब खर्च के पैसों से मनचाही चीजे खरीदते देखता तो उसका भी मन ललचाता था किन्तु जहॉं जिन्दा रहने की शर्त ही खींचतान कर पूरी होती हो वहॉं बाल सुलभ इच्छाओं की पूर्ति अपव्यय ही कही जाती है। अपव्यय के लिये वहॉं कोई गंजाईश न थी। शोभना और अजय चाहकर भी मोहित की इच्छाओं को पूरा न कर पाते थे। मोहित भी वक्त से पहले परिस्थितियों समझौता करना सीख रहा था। अब वह बहुत कम अपने मम्मी पापा से किसी चीज की मॉंग करता था बल्कि अपनी मम्मी को भी ऐसी फिजूलर्ची से मना कर रहता था। वक्त से चहले उसका ऐसा परिपक्व व्यवहार देखकर शोभना और अजय मन मसोस कर रह जाते। उन्हें अपनी विवशता कचाटने लगती।
समय बीतता रहा। अजय की कठिनाईयॉं दिन पर दिन कम होने की बजाय बढती ही जाती थीं। मॉडलिंग की दुनियॉं में रोज नई उम्र के जवान और खूबसूरत मॉडल आ रहे थे। अजय की मॉंग धीरे धीरे कम हो रही थी। अजय की आय के स्रोत सूख रहे थे।शोभना स्थिति की गम्भीरता को समझ रही थी। उसने अजय से अपने लिये काम ढूँढने के लिये कहा। अजय बहुत प्रयास के बाद भी उसके योग्य कोई काम न ढूँढ सका। वस्तुत: मॉडलिग का क्षेत्र ही एक ऐसा उसका परिचित क्षेत्र था जहॉं वह शोभना के लिये कोई काम देख सकता था। उसके दिमाग में बार बार शोभना को मॉडलिंग के क्षेत्र में उतारने का ख्याल आता लेकिन उस क्षेत्र की गन्दगी देखकर वह चुप रह जाता। वह जानता था कि लडकियों के लिये मॉडलिंग मे ग्लेमर जरूर है लेकिन उसकी परिणति देह प्रदर्शन से बढकर देह समर्पण तक हाती है। यही सोचकर वह परेशान होता रहा कि शोभना के सामने माडलिंग का प्रस्ताव रखे की न रखे । वह जानता था कि शोभना ऐसे संस्कारों में पली बढी है कि वह जरा भी असहजता सहन न करेंगी। लेकिन एक दिन उसे अपनी मानसिक परेशानी शोभना के सामने बयान ही करनी पडी। शोभना को स्वयं पर विश्वास था और इसी आत्मविश्वास के बल पर उसने माडलिग करने का निर्णय कर लिया। किन्तु पहल ही बार मे उसके साथ ऐसी घटना घट गयी कि उसने माडलिंग के काम से तौबा कर ली।
वह कई महीने अजय के साथ विज्ञापन कम्पनियों के चक्कर काट रही थी। दोनों का मकसद था कि शोभना काम भी समझ लेगी और वहॉं के माहौल से भी परिचित हो जायेगी। एक महीने में ही उसने समझ लिया कि नई लडकियॉं शौक में और पुरानी मजबूरी में मॉडलिंग के नाम पर अपनी देह भुना रही हैं। वह किस स्तर तक गिर गयी हैं इसका राज भी धीरे धीरे उसके सामने खुलता चला गया। फिर भी उसे विश्वास था कि हरेक के साथ ऐसा नहीं हो सकता।और यदि वह स्वयं न चाहे तो बिल्कुल रही हो सकता। किन्तु दुर्भाग्य से उसके साथ पहली बार में कुड ऐसा हुआ जो उसके लिये किसीमानसिक आघात से कम न था। एक विज्ञापन कम्पनी में एक विज्ञापन के 5000रू0 देना निश्चित हुआ। इसके लिये उसके कुछ फोटों लेने के लिये कम्पनी का फोटोग्राफर उसे स्टूडियों में ले गया । स्टूडियों की दीवारों पर अनेक लडकियों के अर्द्धनग्न और नग्न चित्र लगे थे। शोभना उनमें से कई से मिल भी चुकी थी। शोभना ने उन फोटुओं देखा अनदेखा किया और फोटोग्राफर के कहे अनुसार पोज देने लगी। फोटोग्राफर ने विभिन्न अन्दाज में उसके कई फोटो लिये।फोटोग्राफर ने पोज बनाने के बहाने उसके शरीर के नाजुक हिस्सों को कई बार छुआ। शोभना अनदेखा करती रही। फिर अचानक ही उसको फोटोग्राफर ने अपनी बाहों में भर लिया। और शोभा तुम कितनी खूबसूरत हो कहते हुये उसे चूमने लगा। शोभना बदहवाश हो उठी। फोटोग्राफर के लिये यह रोजमर्रा की बात थी। उसने शोभना के कपडे खींचने शुरू कर दिये। शोभना ने तडाक से उसके मुंह पर एक तमाचा मारा और दरवाजे की और लपकी। फोटोग्राफर बिफर उठा - अच्छा नाटक करती है। तेरे जैसी तो पता नहीं कितनी मैने अपनी टॉंग के नीचे को निकाल दी। तुझे जो मैं कहीं का ना छोडूगा। चली है मॉडल बनने और बनती है सतवंती। मॉडल तो तब बनेगी जब हम पास करेंगें। शोभना ने उसकी बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह दरवाजा खोलकर तेजी से सडक पर आ गई। अजय भी उसके पीछे पीछे स्टूडियो से बाहर आ गया। शोभना ने उसे रास्ते में कुछ नहीं बताया घर आकर सारी बात उसे बता दी और काम करने से मना कर दिया। अजय के सामने परिस्थितियों के आगे सिर झुकाने के अलवा कोई रास्ता ना था। जिन्दगी फिर घिसटने लगी। पिछले दो महीने से उसे कोई काम नहीं मिला था। राशनवाले, दूधवाले,सब्जीवाले सबके बिल बकाया थे। सबके तगादे दोनों की नींद हराम किये थे।
वह कई महीने अजय के साथ विज्ञापन कम्पनियों के चक्कर काट रही थी। दोनों का मकसद था कि शोभना काम भी समझ लेगी और वहॉं के माहौल से भी परिचित हो जायेगी। एक महीने में ही उसने समझ लिया कि नई लडकियॉं शौक में और पुरानी मजबूरी में मॉडलिंग के नाम पर अपनी देह भुना रही हैं। वह किस स्तर तक गिर गयी हैं इसका राज भी धीरे धीरे उसके सामने खुलता चला गया। फिर भी उसे विश्वास था कि हरेक के साथ ऐसा नहीं हो सकता।और यदि वह स्वयं न चाहे तो बिल्कुल रही हो सकता। किन्तु दुर्भाग्य से उसके साथ पहली बार में कुड ऐसा हुआ जो उसके लिये किसीमानसिक आघात से कम न था। एक विज्ञापन कम्पनी में एक विज्ञापन के 5000रू0 देना निश्चित हुआ। इसके लिये उसके कुछ फोटों लेने के लिये कम्पनी का फोटोग्राफर उसे स्टूडियों में ले गया । स्टूडियों की दीवारों पर अनेक लडकियों के अर्द्धनग्न और नग्न चित्र लगे थे। शोभना उनमें से कई से मिल भी चुकी थी। शोभना ने उन फोटुओं देखा अनदेखा किया और फोटोग्राफर के कहे अनुसार पोज देने लगी। फोटोग्राफर ने विभिन्न अन्दाज में उसके कई फोटो लिये।फोटोग्राफर ने पोज बनाने के बहाने उसके शरीर के नाजुक हिस्सों को कई बार छुआ। शोभना अनदेखा करती रही। फिर अचानक ही उसको फोटोग्राफर ने अपनी बाहों में भर लिया। और शोभा तुम कितनी खूबसूरत हो कहते हुये उसे चूमने लगा। शोभना बदहवाश हो उठी। फोटोग्राफर के लिये यह रोजमर्रा की बात थी। उसने शोभना के कपडे खींचने शुरू कर दिये। शोभना ने तडाक से उसके मुंह पर एक तमाचा मारा और दरवाजे की और लपकी। फोटोग्राफर बिफर उठा - अच्छा नाटक करती है। तेरे जैसी तो पता नहीं कितनी मैने अपनी टॉंग के नीचे को निकाल दी। तुझे जो मैं कहीं का ना छोडूगा। चली है मॉडल बनने और बनती है सतवंती। मॉडल तो तब बनेगी जब हम पास करेंगें। शोभना ने उसकी बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वह दरवाजा खोलकर तेजी से सडक पर आ गई। अजय भी उसके पीछे पीछे स्टूडियो से बाहर आ गया। शोभना ने उसे रास्ते में कुछ नहीं बताया घर आकर सारी बात उसे बता दी और काम करने से मना कर दिया। अजय के सामने परिस्थितियों के आगे सिर झुकाने के अलवा कोई रास्ता ना था। जिन्दगी फिर घिसटने लगी। पिछले दो महीने से उसे कोई काम नहीं मिला था। राशनवाले, दूधवाले,सब्जीवाले सबके बिल बकाया थे। सबके तगादे दोनों की नींद हराम किये थे।
अजय का एक दोस्त आसिफ था जो माडलिंग करते करते स्वयं की विज्ञापन एजेंसी खोल बैटा था । उसने शोभना को काम देने का प्रस्ताव रखा। शोभना ने सब कुछ समझकर पुन काम करने का निश्चय किया। एक विज्ञापन के लिये उसे पॉच हजार रूपये में बुक कर लिया गया। शोभना अपनी पहली कमायी से बहुत खुश हुई। वह आसिफ के अच्छे व्यवहारसे बहुत प्रभावित हुई। उसने आसिफ को अपने घर आमंत्रित किया। आसिफ अजय का पूर्व परिचित था ही वह पूरे ताम झाम से अजय के घर आया उसने शोभना और अजय को महगे गिफट दिये।
शोभना का काम ठीक ठाक चलने लगा। शोभना को अक्सर काम के सिलसिले में घर से बाहर रहना पडता। अजय को महसूस होने लगा कि अब वह पहले जैसी नहीं रह गयी है। उसे लगता जैसे वह आसिफ में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रही है। वह उसे अपने से दूर होती हुई मालूम देती। यद्यपि शोभना की आमदनी से घर खर्च में सुविधा हो रही थी किन्तु दोनों के सम्बन्ध औपचारिकता में बदल रहे थे।
अजय अब बिल्कुल बेरोजगार था। कई महीने से उसे कोई काम नही मिला था। सब कम्पनी वाले कहते अजय जी अब नये माडलों का जमाना है। माडलिग की उम्र लम्बी कहॉं हाती है। अधिक से अधिक पॉंच साल। अधिकतर तो एक दो विज्ञापन में ही निकल लेते हैं। आप खुशकिस्मत हैं जो इतने दिनों तक मार्केट में हैं। अजय जानता था कि जो कहा जा रहा है वह सच है। किन्तु उसकी विवशता थी कि वह कौशिश करके भी अपने लिये कोई स्थायी रोजगारी नहीं ढूंढ़ पाया था।
एक दिन वह मोहित को साथ लेकर आसिफ के ऑफिस आ गया। शोभना ड्रेसिंग रूम में दूसरी लडकियों के साथ मेकअप कर रही थी। लडकियॉं मेकअप करते हुये बडे अश्लील ढंग से एक दूसरे से मजाक कर रही थी। शोभना भी बराबर उनकी बातचीत में हिस्सा ले रही थह।इसी बीच अजय वहॉ पहुच गया। शोभना ने अजय को वहॉं आते देखा तो कुछ असहज सी हो गयी। अजय ने शोभना से कहा कि आज मोहित को अप्पूघर घुमाकर लाते हैं बेचारा कई दिनों से कह रहा है। शोभना का पहले ही आसिफ के साथ डीनर का प्रोग्राम तय था अत वह मन मारकर अजय के साथ चलने के लिये खडी हुई। अजय को विज्ञापन कम्पनी का वातावरण कुछ ज्यादा ही अश्लील महसूस हुआ।
उसने आफिस से बाहर आकर मुक्ति की सॉंस ली और शोभना से बतियाने लगा। लेकिन शोभना कुछ न बोली उसका मूड खराब था। पिछले दस वर्षों की घुटन भरी मनहूस खामोशी जैसे एक साथ उसके तनमन पर छा गयी। वह सोचने लगी अजय के साथ उसकी जिन्दगी नरक बनी जा रही है। उसने अजय के साथ जिन्दगी का कौन का सुख उठाया। सडे गले संसकारों ने उसे कोई रास्ता ही नहीं दिया। क्या रखा है पति परमेश्वर की सडी गली परम्परा में। नैतिकता के सारे मापदण्ड वक्त की जीवन शैली से तय होते हैं। आज की तेज रप्तार जिन्दगी में कोई संस्कारों की लाश कहॉं तक ढोये। पति को परमेश्वर मानने वाली मानसिकता क्या मायने रखती है। सबको अपनी जिन्दगी जीने का हक है। जिन्दगी बहता दरिया है जिसे किसी खूंटे से बॉंधकर नहीं रखा जा सकता। उसे लगा उसकी जिन्दगी के जैसे में ठहराव के कारण सडन पैदा हो गयी है। उसे मितली आ गयी जैसे सडे तालाब के पानी की गन्ध उसकी नाक में समा गयी हो।
शोभना तेजी से आगे बढी जैसे तेज चलकर सडे पानी से दूर निकल जाना चाहती हो। उसे न अजय का ध्यान था न मोहित का । सहसा एक कार पीछे से आकर उसके बराबर मे रूकी। कार में से आसिफ ने अपना चेहरा बाहर निकाला और शोभना की ओर देखकर मुस्कराते हुये कहा शोभना तुम अचानक कैसे आ गयी, तुम्हें मेरे साथ पार्टी मे जाना है।आओ जल्दी बैठो समय नही है।
शोभना ने कार की ओर अपने कदम बढा दिये। अजय ने स्वयं को अनदेखा किये जाने से अपमानित महसूस किया। उसने शोभना का रास्ता रोकते हुये कहा शोभना आज मोहित को अप्पूघर घुमाकर लाना है। शोभना बोली 'अजय तुम जाओ मुझे जाना है।' अजय को शोभना का व्यवहार बहुत बुरा लगा। उसने कहा शोभना तुम हमें छोडकर जा रही हो।
शोभना ने कार का दरवाजा खोलते हुये कहा 'अजय! तुमने सुना नहीं, आसिफ को पार्टी के लिये देर हो रही है। समय नहीं है। मैं जा रही हूँ ।'
शोभना के बैठते ही कार चल दी । अजय कुछ देर तक खडा रहा फिर वह बुदबुदाया शोभना तुम ऐसी तो न थी। उसे लगा जैसे आज उसका समय नहीं है।
-अमरनाथ 'मधुर'
'وقت نہیں ہے'
اجے ٹھگا سا کھڑا رہ گیا. گزشتہ دس برسوں کے دامپتي زندگی کے مختلف تصویر اس کی آنکھوں میں تےرنے لگے. اس نے اپنے کو کبھی اتنا مایوس، اتنا ٹوٹا ہوا، اتنا اکیلا محسوس نہیں کیا تھا. اسے یقین ہی نہ ہو رہا تھا کہ اسے اس قدر پیار کرنے والی اس کی سیدھی سادی بیوی اسے یوں اکیلا چھوڑ کر چلی جائے گی. اس نے نم ہو آئی اپنی آنکھوں کو دھیرے سے پوچھا اور پاؤں گھسیٹتے ہوئے ایک طرف چل دیا. اس کے پیچھے اس کا آٹھ سالہ بیٹا موہت اچانک پیش آیا اس واقعہ کو دیکھتے ہی رہ گیا.اس کی کچھ سمجھ میں نہیں آیا. لیکن اتنا تو وہ سمجھ ہی گیا کہ کچھ خراب بات ہو گئی ہے. وہ گھبرا گیا اور اجے کے پیچھے پیچھے بھاگا.
اجے کو بے کاری اور فاقہ کشی سے آنکھ مچولي کرتے ہوئے برسوں گزر گئے.دونوں شوہر - پتن حالات سے جوجھتے آ رہے تھے لیکن کچھ دنوں سے مایوسی کی گہری کالی منهوس سایہ شوبھنا کی آنکھوں اور برتاؤ میں میں ایسی گہرا گئی تھی کہ اجے چاہ کر بھی اس سے آنکھ ملا کر بات نہیں کر پاتا تھا. اگرچہ اجے ایک هسمكھ اور ملنسار نوجوان تھا. وہ اپنے دوستوں میں خاص طور سے اس لئے جانا جاتا تھا کہ وہ روتو هيو کو هسانے کا گر جانتا تھا. مایوسی یا ناکامی کی باتیں وہ ہوا میں اڑا دیتا تھا. شاید اپنے اسی جندادل مزاج کے بلبوتے وہ گزشتہ دس برسوں سے بھوک اور بے کاری سے شدید جنگ لڈتا آ رہا تھا. وہ کہا کرتا تھا کہ آج اس کا وقت نہیں ہے لیکن کل اس کا ضرور ہوگا. پرستتھي کتنی بھی خراب کیوں نہ ہوئی خوشگوار مستقبل کی امید نے اس کے جوش کو مند نہ ہونے دیا. لیکن گزشتہ کچھ ماہ سے وہ چنتت اور اداس رہنے لگا تھا.
اس کی پتن شوبھنا تو پہلے سے ہی گمگين انسان کی طرح خاموش اور مسرت کے بغیر زندگی جی رہی تھی. شوبھنا کے رویے میں ٹھڈاپن اور آنکھوں میں دیکھ کر سوناپن اجے سہم جاتا تھا. وہ سوچتا بیچاری نے شہری زندگی کی رگينيو کے کتنے خواب دیکھیں ہوں گے. سب اس کی پهچ سے دور تھے. آخر کوئی خالی هسي مذاق کی باتیں سن سناکر کب تک زندگی کی گاڑی کھینچ سکتا ہے. زندگی کی گاڑی کو بھی تیل پانی چاہیے کہ نہیں. سماج شاستريو دانشوروں کے لئے دس سال کا وقت کوئی معنی نہ رکھتا ہو لیکن نوجوانوں کے دس سال جو رنگین خوابوں میں تصورات کے نئے نئے ونگ لگا کر اڑنے کے ہوتے انہیں روزی قلت سے جوجھتے ہوئے بتا دینا اور اس سے بھی زیادہ مستقبل کی خدشات سے نبرد آزما رہنا کسی کے بھی حوصلے پست کر سکتا ہے. ایسے میں اگر اجے بھی مایوس ہو چلا تو اس میں اسوابھاوك کیا تھا؟
اجے کے والد سرکاری خدمت میں معمولی سے ملازم تھے. دہلی جیسے بڑے شہر میں زندگی گزارنے کے اخراجات پورے کرنا ایک معمولی سرکاری ملازمین کے کے لئے جس کے پاس اوپر کی کوئی آمدنی نہ ہو بہت مشکل تھا. جب سے حکومت نے نئی اقتصادی نيتي نافذ کی تھیں تنخواہ حق دار طبقے پر کئی طرح کے بحران آ گئے تھے.ایک طرف ان پر چھٹني کا خطرہ منڈلا رہا تھا دوسری طرف کھلے بازار کی تیز رپتار نے زندگی گزارنے کے لئے ضروری چیزوں کو ان کی پہنچ سے دور کر دیا تھا. تعلیم طب نقل و حمل کے نظام سب مارکیٹ کی ملاقات چڑھ گئے تھے. اجے بيےسسي کی پڑھائی کر رہا تھا. اس کی گنتی کالج کے ہوشیار طلباء میں هاتي تھی. دیگر طلبہ کی طرح وہ بھی ڈاکٹر، انجینئر بننا چاہتا تھا لیکن اسے جلد ہی احساس ہو گیا کہ اپنے والد کی محدود آمدنی میں اس کے لئے میڈیکل یا انجینئرنگ کی تعلیم حاصل کر سكنا ممکن نہیں ہوگا. اس نے کوئی پارٹ ٹايم کام کرنے کا فیصلہ کیا. وہ متاثر کن اور سدرشن شخصیت کا مالک تھا. اس نے ماڈلگ کی دني میں ہاتھ آزمانے کی سوچی. جلدی ہی اسے ایک اشتہار کمپنی میں کام کرنے کا موقع بھی مل گیا. کبھی پچ ہزار کبھی دس ہزار روپيے کی آمدنی اسے اشتہار سے مہینے دو مہینے میں ہونے لگی. اجے کے والد جو پہنے آمدنی سے مزید خرچ ہونے کی وجہ سے پریشان رہتے تھے کچھ فکر سے رہنے لگے. گھر کا ماحول كھشنما ہونے لگا.
اسی دوران اجے کو اپنی بیمار مؤسی کو دیکھنے کے لئے اپنی مؤسی کے گاؤں جانا پڑا. اجے کی مؤسی کا گاؤں مشرقی اتر پردیش کے دور دراز اچل میں واقع تھا. الہ آباد سے 80 کہ 0 میٹر 0 دور رمجوگيپر نام کے اس گاؤں میں ٹی وی اور ہندی فلموں کے ذریعے سے شہر کی نئی ہوا پہنچ تو رہی تھی لیکن یہاں زندگی اب بھی صدیوں پرانے طریقے سے بیلگاڈی کی طرح هچكولے کھاتی ہوئے چل رہی تھی. ہندوستانی معاشرے میں جو روایتی پہچان ہے جاتپت، اچ نیچ، ٹونے ٹوٹکے، شكن اپشكن، پوجا متن، كرمكاڈ سب بدستور زندگی کو اكاشبےل کی طرح لپیٹے تھے. پرجيوي اكاشبےل کی طرح ان ساری طریقوں، كپتھاو اور سماجی چنتاو نے زندگی کا سارا رس چوس لیا تھا. لیکن زندگی اس وقت بھی وہاں کبھی سوبھاوك طور سے كھلكھلاتي تھی، گنگناتي تھی، پیڑ پر چهچهاتي چڈيا کی طرح، پهاڈ سے جھرتے جھرنے کی طرح. ایسے موقع ہوتے تھے سامهك طور سے منايے جانے والے تيج تہوار، جانوروں چراي، فصل کٹائی یا کھلیان کے کام کرتے ہوئے. اجے اپنی بیمار مؤسی کی ہنر كشےم جان کر فورا واپس آنا چاہتا تھا لیکن مؤسی کی شدید حالت کو دیکھ کر اسے کچھ دن رکنا پڑا. تبھی آ گیا ہولی کا تہوار. بھرت کے گرامو میں ہولی بڑی ہی مستی کا تہوار ہوتا ہے. بوڈھے بچے جوان سب مستی میں امڈ پڑتے ہیں. گاؤں کے لڈكو نے اجے کو اپن درمیان پا کر ایسا جوش دکھایا جیسے ابھتابھ بچن یا دھرمیندر ان کے درمیان آ گیا ہو. سب نے مل کر ایسا هڈدگ مچایا جیسا گاؤں کی تاریخ میں پہلے کسی تہوار پر نہیں ہوا تھا. اجے نے گاؤں کے تيوهاري زندگی کا کا بھرپور لطف اٹھایا. اس نے خوب رنگ کھیلا. اجے نے فلمی انداز میں ڈايلاگ ہلاک. اس کی جندادلي کو دیکھ کر شوبھنا اس پر موہت ہو گئی. شوبھنا اجے کی مؤسی کے پڈوسي کی لڑکی تھی. سترہ اٹٹھاره برس کی اس کی عمر ہوگی. ہولی کے بعد وہ کسی نہ کسی بہانے اس کی مؤسی کے گھر آنے لگی. جلدی اجے کی نظر شوبھنا یہ ٹکرا گئی. وہ پہلی ہی نظر میں اسے بہت خوبصورت اور شيل مزاج کی لگی تھی.
شوبھنا اجے کی مؤسی کا حال پوچھتی، دوا پانی دیتی. اجے کی مؤسی بھی اس سے بڑی خوش رہتی اور ہمیشہ اجے سے اس کی تعریف کرتی رہتی. وہ کہتی شوبھنا بڑی اچھی لڑکی ہے. کبھی اونچا نہیں بولتی. جس کے ساتھ اس کا شادی ہوگا وہ ضرور خوش رہے گا. وہ بتاتی کہ اس کے والد اس کے لیے ور تلاش میں ہیں.
اجے سوچتا کہ اگر شوبھنا سے اسکی شادی ہو جائے تو زندگی کتنی مزے میں بيتےگي. یوں اسے شادی کے لیے لڈكيو کی کوئی کمی نہ تھی لیکن گاؤں میں رشتوں کی جس پاکیزگی، جس گہرائی اور جس گرماهٹ کا احساس اسے ہوا، اسے دیکھتے ہوئے شہری محبت تعلق اسے بڑے گھٹیا اور واہیات معلوم ہوتے. شوبھنا تھی کہ اسے دیکھتے ہی آنکھ جھکا لیتی تھی. اجے کو اپنے کالج کی لڈكي یاد آتی تھی جو پلك جھپكتے ہی اس کے ہونٹ چوم سکتی تھیں لیکن اگلے ہی پل کسی دوسرے کی به میں به ڈالے كھلكھلا رہی ہوتی. وہ ایک ہی وقت میں کئی کئی لڈكو سے اپنا چکر چلاتی رہتی تھی. لڑکے بھی کپڑوں کی طرح پرےمكايے بدلتے رہتے تھے. اجے سوچتا رہتا کی ایک طرف گاؤں ہے جہاں محبت، پیار کے لپھج ہونٹوں پر آتے لڈكھڈاتے ہیں، محبت کی زبان جہاں آج بھی خاموش ہوتی ہے. نگاہوں کی میٹھی چھن راتوں کی نیند اڑا دیتی ہے.اجے کو لگتا شوبھنا کے طور پر اسے محبت کا سچا خزانہ مل گیا ہے. اسے ایسا لگتا جیسے ابھی وہ شوبھنا کے بغیر زندہ نہ رہ سکے گا.
اجے کی مؤسی بھی دونوں کے رنگ ڈھنگ دیکھ رہی تھی. اس نے طے کیا کہ وہ زندگی کے آخری بار دنوں میں دونوں کی شادی کا شریک زندگی ضرور كمايےگي.دھیرے دھیرے اجے کی مؤسی کی حالت میں بہتری آنے لگا. اجے کے والد نے اجے کو واپس آنے کے لیے خط لکھا. اجے کی پڑھائی کا نقصان ہو رہا تھا. اجے شوبھنا سے بچھڈنے کا درد دل میں لئے دہلی آ گیا. شہر کی تیز رپتار زندگی میں اجے نے خود کو كھپا دیا. کچھ ہی ماہ گزرے ہوں گے کہ اجے کے موساجي شوبھنا کے والد کو لے کر اجے سے شوبھنا کا رشتہ لے کر آ پہنچے.
اجے کے والد بڑے ہی لبرل خیالات کے شخص تھے. وہ خود چاہتے تھے کہ اجے کا شادی بھارتی سسكارو میں پلی بڈھی لڑکی سے ہو. انہوں نے اجے کی م سے اجے کا شادی شوبھنا سے کرنے کی بات اجے سے کہنے کے لیے کہا. اجے تو شوبھنا سے شادی کے خواب کی دیکھتا رہتا تھا. اسے لگا جیسے اس کے خواب آسمان سے زمین پر اتر رہے ہیں. اس نے بخوشی شادی کی منظوری دے دی. شوبھنا کے والد اس کی منظوری پا کر بڑے خوش ہوئے. انہیں لگا کہ ان کی شوبھنا کی زندگی بن جائے گی. شوبھنا بڑے شہر میں رہے گی تو زندگی کے سارے سکھ بھوگےگي. پندرہ دن کے اندر شادی کی ساری رسمیں پوری ہو گئی اور شوبھنا لال جاڈے میں اجے کے گھر آ گئی.
دونوں کے دامپتي زندگی کی ابھی ٹھیک سے شروع بھی نہیں ہونے پائی تھی کہ اجے کے والد کی نوکری ختم ہو جانے کے خبر سے گھر میں غم چھا گیا. اجے کے والد کے دفتر میں ملازمین کی چھٹني کا ذکر تو بہت دنوں سے چل رہی تھی لیکن سب کو یقین تھا کہ حکومت ان کی ملازمت نہیں چھينےگي. حقیقت وہ سچائی سے منہ چرانا تھا.حکومت کی نئی اقتصادی پالیسی میں عوامی فلاح و بہبود کے پروگراموں کے لئے کوئی جگہ نہیں تھی. حکومت دھیرے دھیرے عوامی عام کے مفادات کے کاموں سے خود کو الگ کر رہی تھی. زیادہ سے زیادہ ملازمین کو کو ويارےس دے کر چھٹکارا پایا جا رہا تھا. اس کے بعد بھی کئی شعبوں حصوں کو بند کر اس کے ملازمین کو زبردستی باہر کیا جا رہا تھا. ایک دن اجے کے والد صاحب کو بھی بند لفافے میں خدمت نجات کے حکم تھما دیے گئے.
ایک بڑے شہر میں سرکاری ملازمین کا دفعتا بے روزگار ہو جانا گھر میں موت ہو جانے سے بھی بڑا دھچکا تھا. جہاں جیب میں پیسے بغیر زندگی پر کبھی بھی مکمل بندی لگ جانے کا بحران ہو وہاں بغیر باقاعدہ آمدنی کے گھر کی گاڑی کتنی دور تک کھینچی جا سکتی ہے. خدمت نجات کی خبر سن کر ہی اجے کی م نے کھاٹ پکڑ جی. اسے ایسا صدمہ لگا کہ دو ماہ کے اندر اس کے جان پكھےرو اڈ گئے. اجے کے والد کی جمع سرمایہ اس م کی بیماری میں اڈ گئی.
تیزی سے گھومتے واقعہ سائیکل کی بھياوهتا کو شوبھنا جلد ہی سمجھ گئی. شہر کی چمک دمک کے روپهلے خواب جو اس کی آنکھوں میں برسوں سے سوتے جاگتے جگمگاتے رہتے تھے برتن کی کلائی کی طرح اتر گئے. اسے لگا جیسے اونچی اڈان کے لئے اڈي کوئی چڈيا اپنی پہلی ہی اڈان میں کسی اونچی بلڈنگ سے ٹکراکر زمین پر آ پڑی ہے. زمین پر پڑی چڈيا کی آنکھوں میں نیل گگن میں اڑنے کی حسرت پوری نہ ہو پانے کی جو درد ابھرتی ہے وہ شوبھنا کی آنکھوں میں ٹھہر گييتھي. متبھاشي تو وہ پہلے سے ہی تھی اب وہ اور بھی خاموش رہنے لگی. وہ روزمرہ زندگی کے کام کاج مشین کی طرح نپٹاتي اور رات کو چپ چاپ اجے کی بغل میں پڑ کر سو جاتی. یہی اس کی روز کا معمول بن گئی. اجے اسے خوش رکھنے کی بھر پور کوشش کرتا لیکن دونوں ہی جانتے تھے کہ خوشی جیسی کوئی چیز زندگی میں بچی نہیں ہے. انہیں لگتا جیسے وہ خوش ہونے کا اداکاری کر رہے ہیں. ان کی سب سے بڑی پریشانی یقینی روزی روٹی کے فقدان کی وجہ سے خاندان کے اخراجات کا پورے کرنے کی تھی.اجے کے والد نے ادھر ادھر پرائیویٹ نوکری پانے کے بہت کوشش کی پر انہیں جلد ہی محسوس ہو گیا کہ ان کے لئے ملازمت تلاش کر پانا بہت مشکل کام ہے. . جب ایم بی اے، ایم سی اے کی تعلیم حاصل نوجوان بے روزگار گھوم رہے ہوں اس وقت سرکاری ملازمتوں میں آرام سے زندگی گزارنے والے ادھےڈ وي کے شخصیت کے لئے کام کا موقع كه تھا. ایسے ہی کام کے لئے دھکے کھاتے ہوئے ایک دن سڑک حادثے میں اجے کے والد کی موت ہو گئی.
اب خاندان کے فل غذائیت کی پوری ذمہ داری اجے کے انبھوهين کندھوں پر آ گئی تھی. اجے نے مڈلگ کے اپنے پرانے علاقے میں کام کرنے کی کوشش تیز کر دیئے. يدا كدا کام ملنے بھی لگا. لیکن یقینی اور مستقل آمدنی کا کوئی روزگار وہ اپنے لئے نہیں سکا. گھر پر جمع سرمایہ کے نام پر کچھ بھی نہ تھا جس سے وہ اپنا کوئی چھوٹا موٹا کاروبار کر سکتا. ویسے آج کل کم سرمایہ کا کوئی بزنس رہ ہی كه گیا ہے.پرچونيے کا کام بھی بڑے مال میں ہو رہا ہے. اس درمیان ان کے ایک بیٹے موہت بھی پیدا ہو گیا. موہت کی بال رسائی كريڈاو سے ان کے دامپتي زندگی کی منهوسيت کی برف پگھلنے لگی. زندگی کی مسكان ادھےرے میں روشنی کی لپجھپ کرنے لگی. لیکن شہری زندگی میں ابھاوو کا تيكھاپن کچھ زیادہ ہی چبھتا ہے. موہت اسکول جانے لگا.اپنے ساتھ کے بچوں کو موہت جب جیب خرچ کے پیسوں سے من چاہی عورت چیزیں تھیں خریدتے دیکھتا تو اس کا بھی دل للچاتا تھا لیکن جہاں زندہ رہنے کی شرط ہی رسہ کشی کر پوری ہوتی ہو وہاں بال رسائی خواہشات کی تکمیل اپويي ہی کہی جاتی ہے.اپويي کے لئے وہاں کوئی گجايش نہ تھی. شوبھنا اور اجے چاہ کر بھی موہت کی خواہشات کو پورا نہ کر پاتے تھے. موہت بھی وقت سے پہلے حالات سمجھوتہ کرنا سیکھ رہا تھا. اب وہ بہت کم اپنے ممی پاپا سے کسی چیز کی مانگ کرتا تھا بلکہ اپنی ممی کو بھی ایسی پھجولرچي سے انکار کر رہتا تھا. وقت سے چهلے اس کا ایسا پختہ رویہ دیکھ کر شوبھنا اور اجے من مسوس کر رہ جاتے. انہیں اپنی بے بسی كچاٹنے لگتی.
وقت بيتتا رہا. اجے کی كٹھنايي دن پر دن کم ہونے کی بجائے بڑھتی ہی جاتی تھیں. مڈلگ کی دني میں روز نئی عمر کے جوان اور خوبصورت ماڈل آ رہے تھے.اجے کی مانگ دھیرے دھیرے کم ہو رہی تھی. اجے کی آمدنی کے ذرائع سوکھ رہے تھے. شوبھنا حالت کی سنجیدگی کو سمجھ رہی تھی. اس نے اجے سے اپنے لئے کام تلاش کرنے کے لیے کہا. اجے بہت کوشش کے بعد بھی اس کے قابل کوئی کام نہ مل سکا. حقیقت: مڈلگ کا علاقہ ہی ایک ایسا اس کا واقف علاقے تھا جہاں وہ شوبھنا کے لیے کوئی کام دیکھ سکتا تھا. اس کے دماغ میں بار بار شوبھنا کو مڈلگ کے علاقے میں اتارنے کا خیال آتا لیکن اس علاقے کی گندگي دیکھ کر وہ چپ رہ جاتا. وہ جانتا تھا کہ لڈكيو کے لئے مڈلگ میں گلےمر ضرور ہے لیکن اس کی نتیجہ جسم کی کارکردگی سے بڑھ کر جسم خود سپردگی تک هاتي ہے. یہی سوچ کر وہ پریشان ہوتا رہا کہ شوبھنا کے سامنے ماڈلگ کی تجویز رکھے کی نہ رکھے. وہ جانتا تھا کہ شوبھنا ایسے سسكارو میں پلی بڈھی ہے کہ وہ ذرا بھی تھکاوٹ ایک برداشت نہ کریں گی. لیکن ایک دن اسے اپنی ذہنی پریشانی شوبھنا کے سامنے بیان ہی کرنی پڑی. شوبھنا کو خود پر یقین تھا اور اسی اعتماد کے بل پر اس نے ماڈلگ کرنے کا فیصلہ کر لیا. لیکن پہل ہی بار میں اس کے ساتھ ایسا واقعہ پیش آیا گی کہ اس نے ماڈلگ کے کام سے توبہ کر لی.
وہ کئی ماہ اجے کے ساتھ اشتہار کمپنیوں کے چکر کاٹ رہی تھی.
اجے ٹھگا سا کھڑا رہ گیا. گزشتہ دس برسوں کے دامپتي زندگی کے مختلف تصویر اس کی آنکھوں میں تےرنے لگے. اس نے اپنے کو کبھی اتنا مایوس، اتنا ٹوٹا ہوا، اتنا اکیلا محسوس نہیں کیا تھا. اسے یقین ہی نہ ہو رہا تھا کہ اسے اس قدر پیار کرنے والی اس کی سیدھی سادی بیوی اسے یوں اکیلا چھوڑ کر چلی جائے گی. اس نے نم ہو آئی اپنی آنکھوں کو دھیرے سے پوچھا اور پاؤں گھسیٹتے ہوئے ایک طرف چل دیا. اس کے پیچھے اس کا آٹھ سالہ بیٹا موہت اچانک پیش آیا اس واقعہ کو دیکھتے ہی رہ گیا.اس کی کچھ سمجھ میں نہیں آیا. لیکن اتنا تو وہ سمجھ ہی گیا کہ کچھ خراب بات ہو گئی ہے. وہ گھبرا گیا اور اجے کے پیچھے پیچھے بھاگا.
اجے کو بے کاری اور فاقہ کشی سے آنکھ مچولي کرتے ہوئے برسوں گزر گئے.دونوں شوہر - پتن حالات سے جوجھتے آ رہے تھے لیکن کچھ دنوں سے مایوسی کی گہری کالی منهوس سایہ شوبھنا کی آنکھوں اور برتاؤ میں میں ایسی گہرا گئی تھی کہ اجے چاہ کر بھی اس سے آنکھ ملا کر بات نہیں کر پاتا تھا. اگرچہ اجے ایک هسمكھ اور ملنسار نوجوان تھا. وہ اپنے دوستوں میں خاص طور سے اس لئے جانا جاتا تھا کہ وہ روتو هيو کو هسانے کا گر جانتا تھا. مایوسی یا ناکامی کی باتیں وہ ہوا میں اڑا دیتا تھا. شاید اپنے اسی جندادل مزاج کے بلبوتے وہ گزشتہ دس برسوں سے بھوک اور بے کاری سے شدید جنگ لڈتا آ رہا تھا. وہ کہا کرتا تھا کہ آج اس کا وقت نہیں ہے لیکن کل اس کا ضرور ہوگا. پرستتھي کتنی بھی خراب کیوں نہ ہوئی خوشگوار مستقبل کی امید نے اس کے جوش کو مند نہ ہونے دیا. لیکن گزشتہ کچھ ماہ سے وہ چنتت اور اداس رہنے لگا تھا.
اس کی پتن شوبھنا تو پہلے سے ہی گمگين انسان کی طرح خاموش اور مسرت کے بغیر زندگی جی رہی تھی. شوبھنا کے رویے میں ٹھڈاپن اور آنکھوں میں دیکھ کر سوناپن اجے سہم جاتا تھا. وہ سوچتا بیچاری نے شہری زندگی کی رگينيو کے کتنے خواب دیکھیں ہوں گے. سب اس کی پهچ سے دور تھے. آخر کوئی خالی هسي مذاق کی باتیں سن سناکر کب تک زندگی کی گاڑی کھینچ سکتا ہے. زندگی کی گاڑی کو بھی تیل پانی چاہیے کہ نہیں. سماج شاستريو دانشوروں کے لئے دس سال کا وقت کوئی معنی نہ رکھتا ہو لیکن نوجوانوں کے دس سال جو رنگین خوابوں میں تصورات کے نئے نئے ونگ لگا کر اڑنے کے ہوتے انہیں روزی قلت سے جوجھتے ہوئے بتا دینا اور اس سے بھی زیادہ مستقبل کی خدشات سے نبرد آزما رہنا کسی کے بھی حوصلے پست کر سکتا ہے. ایسے میں اگر اجے بھی مایوس ہو چلا تو اس میں اسوابھاوك کیا تھا؟
اجے کے والد سرکاری خدمت میں معمولی سے ملازم تھے. دہلی جیسے بڑے شہر میں زندگی گزارنے کے اخراجات پورے کرنا ایک معمولی سرکاری ملازمین کے کے لئے جس کے پاس اوپر کی کوئی آمدنی نہ ہو بہت مشکل تھا. جب سے حکومت نے نئی اقتصادی نيتي نافذ کی تھیں تنخواہ حق دار طبقے پر کئی طرح کے بحران آ گئے تھے.ایک طرف ان پر چھٹني کا خطرہ منڈلا رہا تھا دوسری طرف کھلے بازار کی تیز رپتار نے زندگی گزارنے کے لئے ضروری چیزوں کو ان کی پہنچ سے دور کر دیا تھا. تعلیم طب نقل و حمل کے نظام سب مارکیٹ کی ملاقات چڑھ گئے تھے. اجے بيےسسي کی پڑھائی کر رہا تھا. اس کی گنتی کالج کے ہوشیار طلباء میں هاتي تھی. دیگر طلبہ کی طرح وہ بھی ڈاکٹر، انجینئر بننا چاہتا تھا لیکن اسے جلد ہی احساس ہو گیا کہ اپنے والد کی محدود آمدنی میں اس کے لئے میڈیکل یا انجینئرنگ کی تعلیم حاصل کر سكنا ممکن نہیں ہوگا. اس نے کوئی پارٹ ٹايم کام کرنے کا فیصلہ کیا. وہ متاثر کن اور سدرشن شخصیت کا مالک تھا. اس نے ماڈلگ کی دني میں ہاتھ آزمانے کی سوچی. جلدی ہی اسے ایک اشتہار کمپنی میں کام کرنے کا موقع بھی مل گیا. کبھی پچ ہزار کبھی دس ہزار روپيے کی آمدنی اسے اشتہار سے مہینے دو مہینے میں ہونے لگی. اجے کے والد جو پہنے آمدنی سے مزید خرچ ہونے کی وجہ سے پریشان رہتے تھے کچھ فکر سے رہنے لگے. گھر کا ماحول كھشنما ہونے لگا.
اسی دوران اجے کو اپنی بیمار مؤسی کو دیکھنے کے لئے اپنی مؤسی کے گاؤں جانا پڑا. اجے کی مؤسی کا گاؤں مشرقی اتر پردیش کے دور دراز اچل میں واقع تھا. الہ آباد سے 80 کہ 0 میٹر 0 دور رمجوگيپر نام کے اس گاؤں میں ٹی وی اور ہندی فلموں کے ذریعے سے شہر کی نئی ہوا پہنچ تو رہی تھی لیکن یہاں زندگی اب بھی صدیوں پرانے طریقے سے بیلگاڈی کی طرح هچكولے کھاتی ہوئے چل رہی تھی. ہندوستانی معاشرے میں جو روایتی پہچان ہے جاتپت، اچ نیچ، ٹونے ٹوٹکے، شكن اپشكن، پوجا متن، كرمكاڈ سب بدستور زندگی کو اكاشبےل کی طرح لپیٹے تھے. پرجيوي اكاشبےل کی طرح ان ساری طریقوں، كپتھاو اور سماجی چنتاو نے زندگی کا سارا رس چوس لیا تھا. لیکن زندگی اس وقت بھی وہاں کبھی سوبھاوك طور سے كھلكھلاتي تھی، گنگناتي تھی، پیڑ پر چهچهاتي چڈيا کی طرح، پهاڈ سے جھرتے جھرنے کی طرح. ایسے موقع ہوتے تھے سامهك طور سے منايے جانے والے تيج تہوار، جانوروں چراي، فصل کٹائی یا کھلیان کے کام کرتے ہوئے. اجے اپنی بیمار مؤسی کی ہنر كشےم جان کر فورا واپس آنا چاہتا تھا لیکن مؤسی کی شدید حالت کو دیکھ کر اسے کچھ دن رکنا پڑا. تبھی آ گیا ہولی کا تہوار. بھرت کے گرامو میں ہولی بڑی ہی مستی کا تہوار ہوتا ہے. بوڈھے بچے جوان سب مستی میں امڈ پڑتے ہیں. گاؤں کے لڈكو نے اجے کو اپن درمیان پا کر ایسا جوش دکھایا جیسے ابھتابھ بچن یا دھرمیندر ان کے درمیان آ گیا ہو. سب نے مل کر ایسا هڈدگ مچایا جیسا گاؤں کی تاریخ میں پہلے کسی تہوار پر نہیں ہوا تھا. اجے نے گاؤں کے تيوهاري زندگی کا کا بھرپور لطف اٹھایا. اس نے خوب رنگ کھیلا. اجے نے فلمی انداز میں ڈايلاگ ہلاک. اس کی جندادلي کو دیکھ کر شوبھنا اس پر موہت ہو گئی. شوبھنا اجے کی مؤسی کے پڈوسي کی لڑکی تھی. سترہ اٹٹھاره برس کی اس کی عمر ہوگی. ہولی کے بعد وہ کسی نہ کسی بہانے اس کی مؤسی کے گھر آنے لگی. جلدی اجے کی نظر شوبھنا یہ ٹکرا گئی. وہ پہلی ہی نظر میں اسے بہت خوبصورت اور شيل مزاج کی لگی تھی.
شوبھنا اجے کی مؤسی کا حال پوچھتی، دوا پانی دیتی. اجے کی مؤسی بھی اس سے بڑی خوش رہتی اور ہمیشہ اجے سے اس کی تعریف کرتی رہتی. وہ کہتی شوبھنا بڑی اچھی لڑکی ہے. کبھی اونچا نہیں بولتی. جس کے ساتھ اس کا شادی ہوگا وہ ضرور خوش رہے گا. وہ بتاتی کہ اس کے والد اس کے لیے ور تلاش میں ہیں.
اجے سوچتا کہ اگر شوبھنا سے اسکی شادی ہو جائے تو زندگی کتنی مزے میں بيتےگي. یوں اسے شادی کے لیے لڈكيو کی کوئی کمی نہ تھی لیکن گاؤں میں رشتوں کی جس پاکیزگی، جس گہرائی اور جس گرماهٹ کا احساس اسے ہوا، اسے دیکھتے ہوئے شہری محبت تعلق اسے بڑے گھٹیا اور واہیات معلوم ہوتے. شوبھنا تھی کہ اسے دیکھتے ہی آنکھ جھکا لیتی تھی. اجے کو اپنے کالج کی لڈكي یاد آتی تھی جو پلك جھپكتے ہی اس کے ہونٹ چوم سکتی تھیں لیکن اگلے ہی پل کسی دوسرے کی به میں به ڈالے كھلكھلا رہی ہوتی. وہ ایک ہی وقت میں کئی کئی لڈكو سے اپنا چکر چلاتی رہتی تھی. لڑکے بھی کپڑوں کی طرح پرےمكايے بدلتے رہتے تھے. اجے سوچتا رہتا کی ایک طرف گاؤں ہے جہاں محبت، پیار کے لپھج ہونٹوں پر آتے لڈكھڈاتے ہیں، محبت کی زبان جہاں آج بھی خاموش ہوتی ہے. نگاہوں کی میٹھی چھن راتوں کی نیند اڑا دیتی ہے.اجے کو لگتا شوبھنا کے طور پر اسے محبت کا سچا خزانہ مل گیا ہے. اسے ایسا لگتا جیسے ابھی وہ شوبھنا کے بغیر زندہ نہ رہ سکے گا.
اجے کی مؤسی بھی دونوں کے رنگ ڈھنگ دیکھ رہی تھی. اس نے طے کیا کہ وہ زندگی کے آخری بار دنوں میں دونوں کی شادی کا شریک زندگی ضرور كمايےگي.دھیرے دھیرے اجے کی مؤسی کی حالت میں بہتری آنے لگا. اجے کے والد نے اجے کو واپس آنے کے لیے خط لکھا. اجے کی پڑھائی کا نقصان ہو رہا تھا. اجے شوبھنا سے بچھڈنے کا درد دل میں لئے دہلی آ گیا. شہر کی تیز رپتار زندگی میں اجے نے خود کو كھپا دیا. کچھ ہی ماہ گزرے ہوں گے کہ اجے کے موساجي شوبھنا کے والد کو لے کر اجے سے شوبھنا کا رشتہ لے کر آ پہنچے.
اجے کے والد بڑے ہی لبرل خیالات کے شخص تھے. وہ خود چاہتے تھے کہ اجے کا شادی بھارتی سسكارو میں پلی بڈھی لڑکی سے ہو. انہوں نے اجے کی م سے اجے کا شادی شوبھنا سے کرنے کی بات اجے سے کہنے کے لیے کہا. اجے تو شوبھنا سے شادی کے خواب کی دیکھتا رہتا تھا. اسے لگا جیسے اس کے خواب آسمان سے زمین پر اتر رہے ہیں. اس نے بخوشی شادی کی منظوری دے دی. شوبھنا کے والد اس کی منظوری پا کر بڑے خوش ہوئے. انہیں لگا کہ ان کی شوبھنا کی زندگی بن جائے گی. شوبھنا بڑے شہر میں رہے گی تو زندگی کے سارے سکھ بھوگےگي. پندرہ دن کے اندر شادی کی ساری رسمیں پوری ہو گئی اور شوبھنا لال جاڈے میں اجے کے گھر آ گئی.
دونوں کے دامپتي زندگی کی ابھی ٹھیک سے شروع بھی نہیں ہونے پائی تھی کہ اجے کے والد کی نوکری ختم ہو جانے کے خبر سے گھر میں غم چھا گیا. اجے کے والد کے دفتر میں ملازمین کی چھٹني کا ذکر تو بہت دنوں سے چل رہی تھی لیکن سب کو یقین تھا کہ حکومت ان کی ملازمت نہیں چھينےگي. حقیقت وہ سچائی سے منہ چرانا تھا.حکومت کی نئی اقتصادی پالیسی میں عوامی فلاح و بہبود کے پروگراموں کے لئے کوئی جگہ نہیں تھی. حکومت دھیرے دھیرے عوامی عام کے مفادات کے کاموں سے خود کو الگ کر رہی تھی. زیادہ سے زیادہ ملازمین کو کو ويارےس دے کر چھٹکارا پایا جا رہا تھا. اس کے بعد بھی کئی شعبوں حصوں کو بند کر اس کے ملازمین کو زبردستی باہر کیا جا رہا تھا. ایک دن اجے کے والد صاحب کو بھی بند لفافے میں خدمت نجات کے حکم تھما دیے گئے.
ایک بڑے شہر میں سرکاری ملازمین کا دفعتا بے روزگار ہو جانا گھر میں موت ہو جانے سے بھی بڑا دھچکا تھا. جہاں جیب میں پیسے بغیر زندگی پر کبھی بھی مکمل بندی لگ جانے کا بحران ہو وہاں بغیر باقاعدہ آمدنی کے گھر کی گاڑی کتنی دور تک کھینچی جا سکتی ہے. خدمت نجات کی خبر سن کر ہی اجے کی م نے کھاٹ پکڑ جی. اسے ایسا صدمہ لگا کہ دو ماہ کے اندر اس کے جان پكھےرو اڈ گئے. اجے کے والد کی جمع سرمایہ اس م کی بیماری میں اڈ گئی.
تیزی سے گھومتے واقعہ سائیکل کی بھياوهتا کو شوبھنا جلد ہی سمجھ گئی. شہر کی چمک دمک کے روپهلے خواب جو اس کی آنکھوں میں برسوں سے سوتے جاگتے جگمگاتے رہتے تھے برتن کی کلائی کی طرح اتر گئے. اسے لگا جیسے اونچی اڈان کے لئے اڈي کوئی چڈيا اپنی پہلی ہی اڈان میں کسی اونچی بلڈنگ سے ٹکراکر زمین پر آ پڑی ہے. زمین پر پڑی چڈيا کی آنکھوں میں نیل گگن میں اڑنے کی حسرت پوری نہ ہو پانے کی جو درد ابھرتی ہے وہ شوبھنا کی آنکھوں میں ٹھہر گييتھي. متبھاشي تو وہ پہلے سے ہی تھی اب وہ اور بھی خاموش رہنے لگی. وہ روزمرہ زندگی کے کام کاج مشین کی طرح نپٹاتي اور رات کو چپ چاپ اجے کی بغل میں پڑ کر سو جاتی. یہی اس کی روز کا معمول بن گئی. اجے اسے خوش رکھنے کی بھر پور کوشش کرتا لیکن دونوں ہی جانتے تھے کہ خوشی جیسی کوئی چیز زندگی میں بچی نہیں ہے. انہیں لگتا جیسے وہ خوش ہونے کا اداکاری کر رہے ہیں. ان کی سب سے بڑی پریشانی یقینی روزی روٹی کے فقدان کی وجہ سے خاندان کے اخراجات کا پورے کرنے کی تھی.اجے کے والد نے ادھر ادھر پرائیویٹ نوکری پانے کے بہت کوشش کی پر انہیں جلد ہی محسوس ہو گیا کہ ان کے لئے ملازمت تلاش کر پانا بہت مشکل کام ہے. . جب ایم بی اے، ایم سی اے کی تعلیم حاصل نوجوان بے روزگار گھوم رہے ہوں اس وقت سرکاری ملازمتوں میں آرام سے زندگی گزارنے والے ادھےڈ وي کے شخصیت کے لئے کام کا موقع كه تھا. ایسے ہی کام کے لئے دھکے کھاتے ہوئے ایک دن سڑک حادثے میں اجے کے والد کی موت ہو گئی.
اب خاندان کے فل غذائیت کی پوری ذمہ داری اجے کے انبھوهين کندھوں پر آ گئی تھی. اجے نے مڈلگ کے اپنے پرانے علاقے میں کام کرنے کی کوشش تیز کر دیئے. يدا كدا کام ملنے بھی لگا. لیکن یقینی اور مستقل آمدنی کا کوئی روزگار وہ اپنے لئے نہیں سکا. گھر پر جمع سرمایہ کے نام پر کچھ بھی نہ تھا جس سے وہ اپنا کوئی چھوٹا موٹا کاروبار کر سکتا. ویسے آج کل کم سرمایہ کا کوئی بزنس رہ ہی كه گیا ہے.پرچونيے کا کام بھی بڑے مال میں ہو رہا ہے. اس درمیان ان کے ایک بیٹے موہت بھی پیدا ہو گیا. موہت کی بال رسائی كريڈاو سے ان کے دامپتي زندگی کی منهوسيت کی برف پگھلنے لگی. زندگی کی مسكان ادھےرے میں روشنی کی لپجھپ کرنے لگی. لیکن شہری زندگی میں ابھاوو کا تيكھاپن کچھ زیادہ ہی چبھتا ہے. موہت اسکول جانے لگا.اپنے ساتھ کے بچوں کو موہت جب جیب خرچ کے پیسوں سے من چاہی عورت چیزیں تھیں خریدتے دیکھتا تو اس کا بھی دل للچاتا تھا لیکن جہاں زندہ رہنے کی شرط ہی رسہ کشی کر پوری ہوتی ہو وہاں بال رسائی خواہشات کی تکمیل اپويي ہی کہی جاتی ہے.اپويي کے لئے وہاں کوئی گجايش نہ تھی. شوبھنا اور اجے چاہ کر بھی موہت کی خواہشات کو پورا نہ کر پاتے تھے. موہت بھی وقت سے پہلے حالات سمجھوتہ کرنا سیکھ رہا تھا. اب وہ بہت کم اپنے ممی پاپا سے کسی چیز کی مانگ کرتا تھا بلکہ اپنی ممی کو بھی ایسی پھجولرچي سے انکار کر رہتا تھا. وقت سے چهلے اس کا ایسا پختہ رویہ دیکھ کر شوبھنا اور اجے من مسوس کر رہ جاتے. انہیں اپنی بے بسی كچاٹنے لگتی.
وقت بيتتا رہا. اجے کی كٹھنايي دن پر دن کم ہونے کی بجائے بڑھتی ہی جاتی تھیں. مڈلگ کی دني میں روز نئی عمر کے جوان اور خوبصورت ماڈل آ رہے تھے.اجے کی مانگ دھیرے دھیرے کم ہو رہی تھی. اجے کی آمدنی کے ذرائع سوکھ رہے تھے. شوبھنا حالت کی سنجیدگی کو سمجھ رہی تھی. اس نے اجے سے اپنے لئے کام تلاش کرنے کے لیے کہا. اجے بہت کوشش کے بعد بھی اس کے قابل کوئی کام نہ مل سکا. حقیقت: مڈلگ کا علاقہ ہی ایک ایسا اس کا واقف علاقے تھا جہاں وہ شوبھنا کے لیے کوئی کام دیکھ سکتا تھا. اس کے دماغ میں بار بار شوبھنا کو مڈلگ کے علاقے میں اتارنے کا خیال آتا لیکن اس علاقے کی گندگي دیکھ کر وہ چپ رہ جاتا. وہ جانتا تھا کہ لڈكيو کے لئے مڈلگ میں گلےمر ضرور ہے لیکن اس کی نتیجہ جسم کی کارکردگی سے بڑھ کر جسم خود سپردگی تک هاتي ہے. یہی سوچ کر وہ پریشان ہوتا رہا کہ شوبھنا کے سامنے ماڈلگ کی تجویز رکھے کی نہ رکھے. وہ جانتا تھا کہ شوبھنا ایسے سسكارو میں پلی بڈھی ہے کہ وہ ذرا بھی تھکاوٹ ایک برداشت نہ کریں گی. لیکن ایک دن اسے اپنی ذہنی پریشانی شوبھنا کے سامنے بیان ہی کرنی پڑی. شوبھنا کو خود پر یقین تھا اور اسی اعتماد کے بل پر اس نے ماڈلگ کرنے کا فیصلہ کر لیا. لیکن پہل ہی بار میں اس کے ساتھ ایسا واقعہ پیش آیا گی کہ اس نے ماڈلگ کے کام سے توبہ کر لی.
وہ کئی ماہ اجے کے ساتھ اشتہار کمپنیوں کے چکر کاٹ رہی تھی.


कहानी अच्छी है। भाषा में गठाव है। कहीं कहीं कथानक का तारतम्य टूटता नजर आता है।परिस्थितियां आदमी को तोड़ देती हैं। यह कहानी अजय-शोभना की नहीं है। यह कहानी समय की है जो कब क्या करा दे, कहा नहीं जा सकता। भाषाई हिसाब से शब्दों की अठखेलियां अच्छी लगती हैं। मुहावरे के प्रयोग अच्छे बन पड़े हैं।
जवाब देंहटाएंसूर्यकांत द्विवेदी
यही होता है। मैंने भी केवल दो कहानी लिखी हैं। कहानी मुझे बोरिंग लगती है।
जवाब देंहटाएंकविता कौन पढ़ता है ? मैं खुद गद्य ही ज्यादा पढ़ता हूँ -कहानी , उपन्यास, इतिहास ,और दीगर सब्जेक्ट |
बात सही भी है। लेकिन अपनी अपनी पसंद है। मुझे तो व्यंग्य में जितना आनंद आता है, उतना किसी में नहीं। या आध्यात्मिक लेखन में
व्यंग्य को कौन नहीं पसंद करता | इसमें तुम्हें महारत हासिल है | ये अलग बात है कि मौका होते हुए भी तुम कम लिखते हो |
कहानी पढ़ ली। अच्छी है। भाषा के हिसाब से अधिक समृद्ध है। इसमें थोड़े संवाद डाल दें तो अच्छा रहेगा। कहानी एक पैराग्राफ को छोड़कर एक वचन में चल रही है।
भाषायी हिसाब से शब्दों और मुहावरेके प्रयोग अच्छे हैं।
धन्यवाद आपने सही मूल्यांकन किया | मुझे भी अपनी कुछ कमजोरियों का एहसास है | शीर्षक और कथानक के बारे में क्या ख्याल है ?
शीर्षक अच्छा है।
धन्यवाद
जहां तक बात कथानक की है। मेरी अपनी राय में इसको थोड़ा अलग करना चाहिए। वजह....कहानी के तार शहर की आम घटना से लगते हैं। जैसे, आप शोभना या अजय को बीमार कर सकते थे। चकाचौंध से भागी शोभना अजय के पास आती है। कहती है...अब हम फिर नए सिरे से जिंदगी जिएंगे। लेकिन समय कहां था? … See All
कहानी यूँ ही ज्यादा लम्बी हो गयी है मेरी राय में इसे छोटा होना चाहिए |लेकिन कहाँ से हो ये नहीं समझ पाया |
बताऊं
jaroor| khaali waah waah theek nahin |
10:30am
अंतिम तीन पैरा पढ़ो। अपने आप समझ में आ जाएगा
जैसे, शोभना और फोटोग्राफर वाली बात हटा सकते हो
तीन पैराग्राफ की बातें चंद लाइनों में आ सकती हैं
माफ करना अमर, कह देता हूं
मैं समझने की कौशिश करूँगा | मुझे सदैव मीठी और सही आलोचना अच्छी लगती है | आपने कुछ कहा ये अब तक कि सारी प्रशंसाओं से अच्छा लगा |
जो कुछ आपने कहा निर्मल गुप्त जीभी वही कहते हैं | कहानी में संवाद नहीं हैं |
Amarnath Madhur
जवाब देंहटाएंसुप्रभात | मेरी एकमात्र कहानी पर राय जरूर दें |
February 5Suryakant Dwivedi
राय अवश्य दूंगा। कहानी में कब से उतर आए
February 5Amarnath Madhur
ये कई साल पुरानी है लेकिन कहीं मौका नहीं मिलाता तो कभी लिखने के लिए उत्साहित नहीं हुआ|
February 5Suryakant Dwivedi
यही होता है। मैंने भी केवल दो कहानी लिखी हैं। कहानी मुझे बोरिंग लगती है।
February 5Amarnath Madhur
कविता कौन पढ़ता है ? मैं खुद गद्य ही ज्यादा पढ़ता हूँ -कहानी , उपन्यास, इतिहास ,और दीगर सब्जेक्ट |