शनिवार, 3 मार्च 2012

विरासत -फिराक गोरखपुरी स्मृति


मैंने इस आवाज़ को मर -मर पाला है फिराक.......................


आज है पुण्यतिथि 
मैंने इस आवाज़ को मर -मर पाला है फिराक 
आज जिसकी नर्म लव है समय मेहरावे हयात .....फिराक

कहाँ का दर्द भरा था तेरे फँसाने में
फिराक दौड़ गई सह सी जमाने में
शिव का विषपान सुना होगा
मैं भी ऐ दोस्त रात पी गया आंसू
इस दौर में जिन्दगी बसर की
बीमार रात हो गई .....फिराक ने उर्दू अदब की शायरी और साहित्य को वो मुकाम दिया जो दुनिया की अन्य भाषाओं से काफी आगे नजर आता है |फिराक ने अपने उर्दू शायरी से एक नया फलसफा दी जमाने को उर्दू के मशहूर शायर फिराक ने एक बार कहा था ......हासिले जिन्दगी तो कुछ यादे हैं ....याद रखना फिराक को यारो ......लेकिन यह बात कहने में मुझे जरा भी संकोच नही है की ऐसे अजीमो शक्सियत को जमाना अपने स्मृति पटल से भुलाता जा रहा है .फिराक गोरखपुर में पैदा हुए थे |गोरखपुर -लखनऊ राज मार्ग संख्या 28 के पास एक सडक है जो रावत पाठशाला होते हुए घंटाघर की तरफ जाता है |इसी पाठशाला के करीब वह लक्ष्मी भवन है जिसमे फ्रिआक ने आँखे खोली थी और यही रावत पाठशाला जहा उन्होंने शिक्षा आरम्भ की थी और यही से उस उर्दू अदब के शायर ने अपने विचारों और दर्शन को उर्दू शायरी में ढालने का काम किया और उर्दू अदब को एक नया मुकाम दिया |लक्ष्मी भवन उनके जिन्दगी में बिक गया और अब फिराक के नाम पर इस शहर में न तो कोई पार्क है और न ही भवन और न ही कोई शिक्षण संस्थान |बस एक चौराहे पर उनकी प्रतिमा लगी हुई है जिससे लगता है की शहर से इस शायर का कोई रिश्ता था |फिराक का जन्म 1898 में हुआ था और 3 मार्च 1982 को फिराक इस दुनिया से रुखसत हुए थे |फिराक बचपन से ही मेधावी रहे इसीलिए उन्होंने आई. सी. एस. की नौकरी छोडकर और महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आज़ादी की जंग में कूद पड़े |उनके पिता ईश्वरीय प्रसाद बड़े वकील थे और पंडित जवाहर लाल नेहरु से उनके व्यक्तिगत रिश्ते थे |फिराक उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद गये और वहा आनद भवन के सम्पर्क में आये |उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में हिस्सा लिया तो घर की आर्थिक स्थिति बिगने लगी |पंडित नेहरु को उनकी स्थिति को भापने में देर नही लगी |उन्होंने फिराक को कांग्रेस कार्यालय का सचिव बना दिया लेकिन फिराक को तो साहित्य की दुनिया में उंचाइयो पर पहुचना था इसीलिए वे वहा पर भी साहित्य सृजन के क्रम को आगे बढाते रहे |वह पहले कानपुर फिर आगरा के एक महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता नियुक्त हुए और बाद में इलाहाबाद विश्व विद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर बने |फिराक और हिन्दी के प्रसिद्ध कवि हरिबंश राय बच्चन में एक समानता थी |दोनों इलाहाबाद विश्व विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक थे |श्री बच्चन यदि हिन्दी में लिखते थे तो फिराक का शौक उर्दू लेखन में था अंग्रेजी भाषा का भरपूर ज्ञान ,भारतीय संस्कृति और संस्कृत साहित्य की अच्छी समझ , गीता के दर्शन और उर्दू भाषा से लगाव ने फिराक को हिमालय बना दिया |फिराक ने उर्दू गजल और शायरी को उस नाजुक वक्त में नई जिन्दगी बक्शी जब की नारेबाजी और खोखली शायरी गजल की प्रासंगिकता को समाप्त कर देगी |लेकिन उन्होंने गजल में आम हिन्दुस्तानियों का दर्द भर दिया और बोल पड़े
शामे -गम कुछ उस निगाहें नाज़ की बाते करो
बेखुदी बढती चली है राज की बाते करो
ये सकू ते नाज़ -ए -दिल की रगों का टूटना
खामोशी में कुछ शिकस्ते साज़ की बाते करो
कुछ कफस की तीलियों से छन रहा है नूर सा
कुछ फजा कुछ हसरते परवाज की बाते करो
वह आवाज़ जिसमे एक जादू था खामोश हो गयी |लेकिन फिराक ने जिस आवाज़ को मर -मर पाला था वह आज साहित्य की दुनिया में सुनाई दे रही है |उन्होंने लिखा की मैंने इस आवाज़ को मर -मर पाला है फिराक ,आज जिसकी नर्म लव है समय मेहरावे हयात .........|

-सुनील दत्ता
पत्रकार['लो क सं घ र्ष' ब्लॉग से  से साभार ]
'لو ایک مصیبت د رش' بلاگ سے سے مخلصمیں نے اس آواز کو مر - مر پالا ہے فراق .......................

آج ہے پيتتھمیں نے اس آواز کو مر - مر پالا ہے فراقآج جس کی نرم لو ہے وقت مےهراوے حیات ..... فراق
کہاں کا درد بھرا تھا تیرے پھسانے میںفراق دوڑ گئی شریک سی زمانے میںشیو کا وشپان سنا ہوگامیں بھی اے دوست رات پی گیا آنسواس دور میں زندگی بسر کیبیمار رات ہو گئی ..... فراق نے اردو ادب کی شاعری اور ادب کو وہ مقام دیا جو دنیا کی دیگر زبانوں میں سے کافی آگے نظر آتا ہے | فراق نے اپنے اردو شاعری سے ایک نیا پھلسپھا دی زمانے کو اردو کے مشہور شاعر فراق نے ایک بار کہا تھا ...... هاسلے زندگی تو کچھ يادے ہیں .... یاد رکھنا فراق کو یارو ...... لیکن یہ بات کہنے میں مجھے ذرا بھی ہچکچاہٹ نہیں ہے کی ایسے اجيمو شكسيت کو زمانہ اپنے یاد سکرین سے بھلاتا جا رہا ہے. فراق گورکھپور میں پیدا ہوئے تھے | گورکھپور - لکھنؤ راج راستہ تعداد 28 کے پاس ایک سڑک ہے جو راوت مکتب ہوتے ہوئے گھٹاگھر کی طرف جاتا ہے | اسی مکتب کے قریب وہ لکشمی عمارت ہے جس میں پھراك نے آنکھیں کھولی تھی اور یہی راوت مکتب جہا انہوں نے تعلیم شروع کی تھی اور یہی سے اس اردو ادب کے شاعر نے اپنے خیالات اور فلسفے کو اردو شاعری میں ڈھالنے کا کام کیا اور اردو ادب کو ایک نیا مقام دیا | لکشمی عمارت ان کے زندگی میں فروخت گیا اور اب فراق کے نام پر اس شہر میں نہ تو کوئی پارک ہے اور نہ ہی عمارت اور نہ ہی کوئی تعلیمی ادارے | بس ایک چوراہے پر ان کی مجسمہ لگی ہوئی ہے جس سے لگتا ہے کی شہر سے اس شاعر کا کوئی رشتہ تھا | فراق کی پیدائش 1898 میں ہوا تھا اور 3 مارچ 1982 کو فراق اس دنیا سے رخصت ہوئے تھے | فراق بچپن سے ہی مےدھاوي رہے اس لئے انہوں نے آئی سی ایس. کی نوکری چھوڑ کر اور مہاتما گاندھی سے متاثر ہو کر آزادی کی جنگ میں کود پڑے | ان کے والد الہامی پرساد بڑے وکیل تھے اور پنڈت جواہر لال نہرو سے ان کے ذاتی تعلقات تھے | فراق اعلی تعلیم کے لئے الہ آباد گئے اور وہاں اند عمارت کے رابطہ میں آئے |انہوں نے آزادی تحریک میں حصہ لیا تو گھر کی اقتصادی حالت بگنے لگی | پنڈت نہرو کو ان کی حالت کو بھاپنے میں دیر نہیں لگی | انہوں نے فراق کو کانگریس دفتر کا سیکرٹری بنا دیا لیکن فراق کو تو ادب کی دنیا میں اچايو پر پهچنا تھا اسی لئے وہ وہاں پر بھی ادب تخلیق کے سلسلے کو آگے بڈھاتے رہے | وہ پہلے کانپور پھر آگرہ کے ایک کالج میں انگریزی کے ترجمان مقرر ہوئے اور بعد میں الہ آباد یونیورسٹی میں انگریزی کے پروفیسر بنے | فراق اور ہندی کے مشہور شاعر هربش رائے بچن میں ایک مساوات تھی | دونوں الہ آباد یونیورسٹی میں انگریزی کے استاد تھے | مسٹر بچن اگر ہندی میں لکھتے تھے تو فراق کا شوق اردو تحریر میں تھا انگریزی زبان کا بھرپور علمی، ہندوستانی ثقافت اور سنسکرت ادب کی اچھی سمجھ، گیتا کے فلسفے اور اردو زبان سے لگاؤ ​​نے فراق کو ہمالیہ بنا دیا | فراق نے اردو گجل اور شاعری کو اس نازک وقت میں نئی ​​زندگی بكشي جب کی نعرے بازی اور کھوکھلی شاعری گجل کی مطابقت کو ختم کر دے گی | لیکن انہوں نے گجل میں عام هندستانيو کا درد بھر دیا اور دھن پڑےشام - غم کچھ اس نگاہیں ناز کی باتیں کروبےكھدي بڑھتی چلی ہے راج کی باتیں کرویہ سكو تے ناز - اے - دل کی رگوں کا ٹوٹناخاموشی میں کچھ شكستے ساز کی باتیں کروکچھ كپھس کی تيليو سے چھن رہا ہے نور ساکچھ پھجا کچھ هسرتے پرواج کی باتیں کرووہ آواز جس میں ایک جادو تھا خاموش ہو گئی | لیکن فراق نے جس آواز کو مر - مر پالا تھا وہ آج ادب کی دنیا میں سنائی دے رہی ہے | انہوں نے لکھا کی میں نے اس آواز کو مر - مر پالا ہے فراق، آج جس کی نرم لو ہے وقت مےهراوے حیات ......... |
- سنیل دتہصحافی

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