शनिवार, 7 जुलाई 2012

जनतंत्र में जनता

              
  जब हम  ग्रेज्युशन  में अर्थशास्त्र  पढ़ा  करते थे  तो हमें एक कहानी सुनायी जाती थी | कहानी थी कि इग्लैंड में सरकार  इस बात से बहुत परेशान थी कि वो लगातार नये नोट छाप रही है लेकिन बाजार में गंदे फटे पुराने नोट ही मिलते हैं | इन गंदें पुराने नोटों के कारण आये दिन क्रेता और विक्रेता में झगडा होतारहता | कोई खराब नोट लेना ही नहीं चाहता था और देने वाला सबसे पहले खराब नोट ही देता था |  सरकार ने बहुत कोशिश की कि  खराब नोट बाजार से निकाल ले और नए नोट चला दे लेकिन वो जैसे ही नये नोट बाजार में उतारती  वे कुछ दिनों में गायब हो जाते | उसने अपने वित्त मंत्री सर जार्ज ग्रेशम  को  इसकी  जांच  कर  रिपोर्ट  देने के लिए कहा | सर जार्ज ग्रेशम ने जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जनता नए नोट अपने पास रख लेती है और पुराने नोट भुगतान में इस्तेमाल करती है | क्योंको हर आदमी की यही नियत होती है कि वह अपने पास नए नोट रखे और सबसे खराब नोट को सबसे पहले चला दे, इसलिए केवल वही नोट बाजार में चलन में रह जाते हैं जो खराब हैं | अर्थशास्त्र में इसे 'ग्रेशम  ला'  कहा जाता है |  ग्रेशम का नियम ' बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है |यह आदमी की सामान्य प्रव्रत्ति है और कमोबेश हर क्षेत्र में लागू होती है |  राजनीति भी बहुत कुछ इसी पथ पर चलती है | अच्छे आदमी पहले तो स्वयं ही राजनीति में नहीं जाते और अगर वो चले भी  आयें तो जनता उन्हें खारिज कर देती है | जनता उन्हें ही चुनती है जो जातिवाद,साम्प्रदायिकता, धनबल और बाहुबल में बढे चढ़े होते हैं | पता नहीं क्यों वो उनकी शरण में स्वयं को सुरक्षित मानती है | जबकि व्यक्तिगत रूप से कोई उन्हें पसंद  नहीं करता | उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव परिणाम  घोषित हो रहे हैं | जिनमें इस रुझान को साफ़ देखा जा सकता है | भाजपा कई जगह अपने जाने पहचाने हिटलरी प्रचार के ढंग पर चुनाव जीत गयी है |   एक जगह कुछ  महीने पहले  एक धार्मिक स्थल को लेकर जबरन तनाव पैदा करने और  एक समुदाय विशेष को लगातार दुत्कारते रहने वाले शख्स को उम्मीदवार बनाकर चुनाव जीतने में सफल हो गयी है | लगता है खोटे सिक्के चलते रहने का चलन बंद नहीं होने वाला है | यही जनता कल से ही नेताओं को कोसना शुरू कर देगी | लोकतंत्र में अवसर मिलता है कि जनता कर्मठ, ईमानदार, जाति, धर्म, क्षेत्र वाद  से ऊपर उठकर काम  करने वाले दूरदर्शी व्यक्ति को अपना रहनुमा चुने, लेकिन जब इसका अवसर आता है वो धर्म और जाति में बँट जाती है | मिठाई और दारु में वोट दे देती है | सही उम्मीदवार को कोई भाव नहीं देती है | क्या जनतंत्र को जिन्दा रखने  की जनता की कोई जिम्मेदारी नहीं है ? क्या लोकतंत्र के भविष्य के लिए यह चिंतनीय  नहीं है ? एक तरफ जहाँ मतदान के प्रति घटता जन रुझान चिंतनीय है वहीं  दूसरी यह स्थिति भी कम  शोचानीय नहीं  है | 



جنتتر میں عوام
  جب ہم گرےجيشن میں معاشیات پڑھا کرتے تھے تو ہمیں ایک کہانی سنائی جاتی تھی | کہانی تھی کہ اگلےڈ میں حکومت اس بات سے بہت پریشان تھی کہ وہ مسلسل نئے نوٹ چھاپ رہی ہے لیکن بازار میں گندے پھٹے پرانے نوٹ ہی ملتے ہیں | ان گدے پرانے نوٹوں کی وجہ سے آئے دن كرےتا اور بیچنے میں جھگڈا هوتارهتا | کوئی خراب نوٹ لینا ہی نہیں چاہتا تھا اور دینے والا سب سے پہلے خراب نوٹ ہی دیتا تھا | حکومت نے بہت کوشش کی کہ خراب نوٹ بازار سے نکال لے اور نئے نوٹ چلا دے لیکن وہ جیسے ہی نئے نوٹ بازار میں اتارتی وہ کچھ دنوں میں غائب ہو جاتے | اس نے اپنے وزیر خزانہ سر جارج گرےشم کو اس کی جانچ کر رپورٹ دینے کے لئے کہا | سر جارج گرےشم نے تفتیش کی اور اس نتیجے پر پہنچے کہ عوام نئے نوٹ اپنے پاس رکھ لیتی ہے اور پرانے نوٹ ادائیگی میں استعمال کرتی ہے | كيوكو ہر آدمی کی یہی نیت ہوتی ہے کہ وہ اپنے نئے نوٹ رکھے اور سب سے خراب نوٹ کو سب سے پہلے چلا دے، اس لئے صرف وہی نوٹ بازار میں چلن میں رہ جاتے ہیں جو خراب ہیں | معاشیات میں اسے 'گرےشم لا' کہا جاتا ہے | گرےشم کا قانون 'بری کرنسی اچھی کرنسی کو چلن سے باہر کر دیتی ہے | یہ آدمی کی عام پرورتت ہے اور کم و بیش ہر علاقے میں لاگو ہوتی ہے | سیاست بھی بہت کچھ اسی راہ پر چلتی ہے | اچھے آدمی پہلے تو خود ہی سیاست میں نہیں جاتے اور اگر وہ چلے بھی آئیں تو عوام انہیں مسترد کر دیتی ہے | عوام انہیں ہی چنتی ہے جو ذات پات، فرقہ پرستی، دھنبل اور باهبل کے اندراندر چڑھے ہوتے ہیں | پتہ نہیں کیوں وہ ان کی پناہ میں خود کو محفوظ مانتی ہے | جبکہ ذاتی طور پر کوئی انہیں پسند نہیں کرتا | اتر پردیش میں مقامی ادارے کے انتخابی نتائج کا اعلان ہو رہے ہیں | جن میں اس رجحان کو صاف دیکھا جا سکتا ہے | بی جے پی کئی جگہ اپنے جانے پہچانے هٹلري تشہیر کی طرز پر انتخابات جیت گئی ہے | ایک جگہ کچھ مہینے پہلے ایک مذہبی مقام کو لے کر جبرا کشیدگی پیدا کرنے اور ایک کمیونٹی خصوصی کو مسلسل دتكارتے رہنے والے شخص کو امیدوار بنا کر الیکشن جیتنے میں کامیاب ہو گئی ہے | لگتا ہے كھوٹے سکے چلتے رہنے کا چلن بند نہیں ہونے والا ہے | یہی عوام کل سے ہی لیڈروں کو كوسنا شروع کر دے گی | جمہوریت میں موقع ملتا ہے کہ عوام محنت کش، ایماندار، ذات، مذہب، علاقے واد سے اوپر اٹھ کر کام کرنے والے بصیرت شخصیت کو اپنا رہنما منتخب، لیکن جب اس کا موقع آتا ہے وہ مذہب اور ذات میں بٹ جاتی ہے | مٹھائی اور دارو میں ووٹ دے دیتی ہے | صحیح امیدوار کو کوئی احساس نہیں دیتی ہے | کیا جنتتر کو زندہ رکھنے کے عوام کی کوئی ذمہ داری نہیں ہے؟ کیا جمہوریت کے مستقبل کے لئے یہ چتنيي نہیں ہے؟ ایک طرف جہاں ووٹنگ کے فی گھٹتا عوامی رجحان چتنيي ہے وہیں دوسری یہ صورت حال بھی کم شوچانيي نہیں ہے |

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