एल पी जी गैस को बाजार के हवाले कर सरकार ने आम आदमी के सामने जीवन मरण का सवाल खड़ा कर दिया है. रसोई गैस सिलेंडर को जीवन यापन के आवश्यक उपकरणों में शामिल किया जाना चाहिए. भोजन का अधिकार मनुष्य का नैसर्गिक अधिकार है. मनुष्य कच्चा भोजन नहीं खा
ता है पकाकर ग्रहण करता है .भोजन पकाने के लिए इंधन की आवश्यकता होती है और एल पी जी गैस उसका सर्वोत्तम साधन है. सरकार अगर उसके दामों में इतनी वृद्धि करती है जो आम आदमी की क्षमता से बाहर है तो जनता में हा हाकार मचना तय है साथ ही इसका इंधन के अन्य विकल्पों पर भी बुरा असर पड़ेगा.ग्रामीण और निर्धन लोगों में लकड़ी और गोबर को इंधन के रूप में प्रयोग करने का दबाव बढेगा जो एक तरफ पर्यावरण के लिए हानिकारक है दूसरी तरफ स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए भी नुकसान देय है.
लकड़ी के लिए जहां पेड़ों का कटान बढेगा वहीं उसके रसोई में इस्तेमाल से धुंएँ के कारण स्त्रियों को आँखों के रोग और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्यायों का सामना करना पड़ेगा. सरकार को सब्सिडी ख़त्म करने का सुझाव देने वाले देशी और विदेशी अर्थशास्त्री ये नहीं देख रहें हैं की सस्ती एल पी जी गैस के इस्तेमाल से स्वास्थ्य और पर्यावरण की कितनी सुरक्षा हो रही है.ये अर्थशास्त्री गरीबों की चिंता चाहें न करें लेकिन उन्हें पर्यावरण की चिंता तो करनी ही चाहिए. पर्यावरण सुरक्षित रहेगा तो वे भी आराम से रहेंगें और दुनिया को तमाम तरह की चिंताओं का सामना भी नहीं करना पड़ेगा .यद्यपि गरीब पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान नहीं पहुंचाता है लेकिन अगर वो भोजन पकाने में लकड़ी और गोबर का इस्तेमाल न करे तो पर्यावरण की रक्षा में बहुत बड़ा योगदान जरूर देता है.गोबर का इस्तेमाल वो धरती की उर्वरा शक्ति बढाने में करता है तथा पेड़ों को इंधन के लिए नहीं काटता है. ये दोनों ही कार्य पर्यावरण की रक्षा करने वालें हैं .हमने देखा है कि गरीब ग्रामीण महिलायें भोजन पकाने के लिए कोई इंधन ना होने पर घर में निशुल्क उपलब्ध कीमती पक्की शीशम की लकड़ी भी जला डालती हैं.पहाडी क्षेत्रों में गरीब औरतें सब्सिडी वाले सिलेंडर का इस्तेमाल करने की बजाय जंगल की कीमती लकड़ी को ही चूल्हें में जलाती हैं. वास्तव में उनका बहुत सारा जीवन भोजन के लिए ईंधन और पानी जुटाने में ही खप जाता है.
इस प्रकार यह मानव श्रम का अपव्यय भी हैजिसका उपयोग राष्ट्र के बेहतर विकास में हो सकता है. होना तो यह चाहिए था कि सरकार भोजन पकाने के लिए निशुल्क या सबसे सस्ते इंधन की व्यवस्था करती क्योंकि जीने के अधिकार का मतलब बगैर भोजन का अधिकार दिए पूरा नहीं हो सकता है लेकिन सरकार ने इस अधिकार की सबसे ज्यादा उपेक्षा की है. इसलिए एल पी जी गैस के दामों में बढ़ोत्तरी को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. ये सही है कि इसका दुरुपयोग बहुत होता है लेकिन इसका ये मतलब भी नहीं है कि ये लोगों को आवश्यकता भर भी नहीं मिले. आखिर एक छोटे से छोटे परिवार का भी एक सिलेंडर से कम में कैसे काम चल सकता है ? अत: कम से कम एक सिलेंडर तो एक महीने में हर परिवार को मिलना ही चाहिए तथा उससे अधिक के इस्तेमाल पर बाजार भाव वसूल करना चाहिए. जहां तक सब्सिडी के बढ़ते बोझ का सवाल है यह बोझ पर्यावरण सुरक्षा के लिए किये जाने वाले अपव्यय में शामिल कर लेना चाहिए. हर साल वृक्षारोपण के नाम पर,जल सरक्षण के नाम पर जो धनराशी लुटाई जा रही है उसे इस सब्सिडी में शामिल करना चाहिए . अक्षय ऊर्जा स्रोतों पर तेजी से शोध कार्य करना चाहिए और उसे पूर्ण सब्सिडी देना चाहिए,. अस्पतालों .स्कूलों ,छात्रावासों, और काम काज के अन्य ऐसे स्थलों पर जहां अधिक लोगों का सामूहिक भोजन बनता है वहाँ निशुल्क साझे चूल्हें की व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन बाजारवादी ताकतें ऐसे जन हितकारी कार्यों को फिजूल का खर्चा बतायेगीं और ऐसे किसी भी विचार को सिरे से खारिज कर देंगी. लेकिन उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए कि वे यदि जनता के गुस्से से स्वयं को सुरक्षित रखना चाहतें हैं तो उन्हें अपनी हवश को लगाम देकर एक संतुलित आचरण करना सीख लेना उचित होगा.
Alpha
ایل پی جی گیس کو مارکیٹ کے حوالے کر حکومت نے عام آدمی کے سامنے زندگی مر کا سوال کھڑا کر دیا ہے. رسوئی گیس سلےڈر کو زندگی گزارنے کے ضروری آلات میں شامل کیا جانا چاہیے. کھانے کا حق انسان کا فطری حق ہے. انسان کچا نہیں کھانا کھاتا ہے پکا کر قبول کرتا ہے. کھانے پکانے کے لئے ایندھن کی ضرورت ہوتی ہے اور ایل پی جی گیس کا بہترین ذریعہ ہے. حکومت اگر اس کے داموں میں اس قدر اضافہ کرتی ہے جو عام آدمی کی صلاحیت سے باہر ہے تو عوام میں ہا هاكار مچنا طے ہے ساتھ ہی اس کا ایندھن کے دیگر اختیارات پر بھی برا اثر پڑے گا. دیہی اور غریب لوگوں میں لکڑی اور گوبر کو ایندھن کے طور پر میں استعمال کرنے کا دباؤ بڈھےگا جو ایک طرف ماحولیات کے لیے نقصان دہ ہے دوسری طرف عورتوں کی صحت کے لئے بھی نقصان قابل ادائیگی ہے.
لکڑی کے لئے جہاں درختوں کے كٹان بڈھےگا وہیں اس کے باورچی خانے میں استعمال سے دھے کی وجہ سے عورتوں کو آنکھوں کے امراض اور دیگر صحت سمسيايو کا سامنا کرنا پڑے گا. حکومت کو سبسڈی ختم کرنے کا مشورہ دینے والے ملکی اور غیر ملکی ماہر یہ نہیں دیکھ رہے ہیں کی سستی ایل پی جی گیس کے استعمال سے صحت اور ماحول کی کتنی حفاظت ہو رہی ہے. یہ ماہر غریبوں کی فکر چاہیں نہ کریں لیکن انہیں ماحولیات کی فکر تو کرنی ہی چاہئے. ماحول محفوظ رہے گا تو وہ بھی آرام سے رهےگے اور دنیا کو تمام طرح کے خدشات کا سامنا بھی نہیں کرنا پڑے گا. اگرچہ غریب ماحول کو بہت زیادہ نقصان نہیں ہے لیکن اگر وہ کھانا پکانے میں لکڑی اور گوبر کا استعمال نہ کرے تو ماحولیات کی حفاظت میں بہت بڑا مدد گار ضرور دیتا ہے. گوبر کا استعمال وہ زمین کی پیداواری صلاحیت بڑھانے میں کرتا ہے اور درختوں کو ایندھن کے لئے نہیں کاٹتا ہے. یہ دونوں ہی کام ماحولیات کی حفاظت کرنے والے ہیں. ہم نے دیکھا ہے کہ غریب دیہی مہلایں کھانا پکانے کے لئے کوئی ایندھن نہ ہونے پر گھر میں آپکو مفت دستیاب قیمتی پکی شيشم کی لکڑی بھی جلا ڈالتے ہیں. پهاڈي علاقوں میں غریب عورتیں سبسڈی والے سلےڈر کا استعمال کرنے کی بجائے جنگل کی قیمتی لکڑی کو ہی چولہے میں جلاتی ہیں. اصل میں ان کا بہت سارا زندگی کھانے کے لئے ایندھن اور پانی حاصل کرنے میں ہی كھپ جاتا ہے.
اس طرح یہ انسانی محنت کا اپويي بھی هےجسكا استعمال متحدہ کے بہتر ترقی میں ہو سکتا ہے. ہونا تو یہ چاہئے تھا کہ حکومت کھانے پکانے کے لئے آپکو مفت یا سستے ترین ایندھن کا انتظام کرتی کیونکہ جینے کے حق کا مطلب بغیر کھانے کا حق دیئے مکمل نہیں ہو سکتا ہے، لیکن حکومت نے اس کے حقوق کی سب سے زیادہ نظر انداز کی ہے.اس لئے ایل پی جی گیس کی قیمتوں میں اضافہ کو غیر سنجیدگی سے نہیں لیا جانا چاہئے.یہ بھی درست ہے کہ اس کا غلط استعمال بہت ہوتا ہے لیکن اس کا یہ مطلب بھی نہیں ہے کہ یہ لوگوں کو ضرورت بھر بھی نہیں ملے. آخر ایک چھوٹے سے چھوٹے خاندان کا بھی ایک سلےڈر سے کم میں کس طرح چل سکتا ہے؟ ات: کم سے کم ایک سلےڈر تو ایک مہینے میں ہر خاندان کو ملنا ہی چاہیے اور اس سے زیادہ کے استعمال پر بازار بھاو وصول کرنا چاہئے. جہاں تک سبسڈی کے بڑھتے بوجھ کا سوال ہے یہ بوجھ ماحولیات کی حفاظت کے لئے کئے جانے والے اپويي میں شامل کر لینا چاہئے. ہر سال وركشاروپ کے نام پر، پانی سركش کے نام پر جو دھنراشي لٹاي جا رہی ہے اسے اس سبسڈی میں شامل کرنا چاہئے. قابل تجدید توانائی کے ذرائع پر تیزی سے تحقیقی کام کرنا چاہئے اور اسے مکمل سبسڈی دینا چاہئے،. اسپتالوں. اسکولوں، چھاتراواسو، اور کام کاج کے دیگر ایسے مقامات پر جہاں زیادہ لوگوں کا اجتماعی کھانا بنتا ہے وہاں آپکو مفت مشترکہ چولہے کا انتظام ہونا چاہئے. لیکن باجاروادي طاقتیں ایسے عوامی هتكاري کاموں کو پھجول کا خرچ بتايےگي اور ایسے کسی بھی خیال کو سرے سے خارج کر دیں گی. لیکن انہیں یہ یاد رکھنا چاہئے کہ وہ اگر عوام کے غصے سے اپنے آپ کو محفوظ رکھنا چاہتے ہیں تو انہیں اپنی ہوش کو لگام دے کر ایک متوازن طرز عمل کرنا سیکھ لینا مناسب ہوگا.



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