शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

मेरी ग़लती बताओ दिल्ली.


सवाल करती है कश्मीर ज़मानें वालों.....
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मेरे सीनें पे फ़क़त आग लगानें वालों.....
ख़ून चीखों का समाँ रोज़ सजानें वालों.....
माओं बहनों की सदा रोज़ दबानें वालों.....
घर के गुलशन को मेरे रोज़ जलानें वालों.....
मेरी इज्ज़त को सरे राह उड़ाने वालों.....
रोटियाँ रोज़ सियासत की पकानें वालों.....
मेरा आँचल मेरे आंसू से भिगानें वालों.....
मेरे बच्चों का मुक़द्दर भी उड़ानें वालों.....
गोलियाँ बम की सदा रोज़ सुनाने वालों.....
मेरी रोती हुई आवाज़ दबानें वालों.....
चीड़ गुलमोहर के बागों को कटानें वालों.....
ज़ाफरानों के शजर नज़र लगानें वालों.....
मेरी पुरशोख सी झीलों को सुखानें वालों.....
नौजवाँ लाल की मय्यत भी उठानें वालों.....
बूढ़ी आँखों को जवाँ ख़ून दिखानें वालों.....
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हाथ को जोड़ फ़क़त एक गुज़ारिश ये है.....
मैं भी हिस्सा हूँ तेरे जिस्म का परवाना हूँ.....
दिल्ली मैं तेरी तरह तेरा ही दीवाना हूँ.....
क्यूँ मेरी आह को सुनतें नहीं अफ़साना हूँ.....
अब तो बस ख़ून और चीख़ें नहीं सुनना मुझको.....
दिल में ताक़त नहीं ये देख के बेगाना हूँ.....
मुझको लौटा दो मेरी शोख़ फ़िज़ायें दिल्ली.....
मेरी ग़लती तो मुझे काश बताओ दिल्ली.....
मेरी आवाज़ को ना और दबाओ दिल्ली.....
आख़री तुझसे मेरी एक गुज़ारिश ये है.....
सियासतों का ये बाज़ार हटाओ दिल्ली.....
ख़त्म कर सारे गिले अपना बनाओ दिल्ली.....
मुझको अब और ना सड़कों पे गिराना है लहू.....
मेरी फरियाद सुनों मुझको मेरा हक़ दे दो.....
मेरी सब आह और फ़रियाद मिटा दो दिल्ली.....
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मेरी जन्नत सी फ़िज़ा मुझको दिला दो दिल्ली.....
मेरी जन्नत सी फ़िज़ा मुझको दिला दो दिल्ली.....

-सलमान  रिज़वी


سوال کرتی ہے کشمیر ذمانے والوں .....----------------------------------------------میرے سينے پہ فقط آگ لگانے والوں .....خون چیخوں کا سما روز سجانے والوں .....ماو بہنوں کی ہمیشہ روز دبانے والوں .....گھر کے گلشن کو میرے روز جلانے والوں .....میری عزت کو سر راہ اڑانے والوں .....روٹیاں روز سیاست کی پكانے والوں .....میرا آنچل میرے آنسو سے بھگانے والوں .....میرے بچوں کا مقدر بھی پروازیں والوں .....گولیاں بم کی ہمیشہ روز سنانے والوں .....میری روتی ہوئی آواز دبانے والوں .....چيڑ گل مہر کے باگو کو كٹانے والوں .....ذاپھرانو کے شجر نظر لگانے والوں .....میری پرشوكھ سی جھیلوں کو سكھانے والوں .....نوجوا لال کی مييت بھی اٹھانے والوں .....بوڑھی آنکھوں کو جواں خون دكھانے والوں .....----------------------------------------------ہاتھ کو جوڑ فقط ایک گزارش یہ ہے .....میں بھی حصہ ہوں تیرے جسم کا پروانہ ہوں .....دہلی میں تیری طرح تیرا ہی دیوانہ ہوں .....کیوں میری آہ کو سنتے نہیں افسانہ ہوں .....اب تو بس خون اور چيخے نہیں سننا مجھ کو .....دل میں طاقت نہیں یہ دیکھ کے بیگانہ ہوں .....مجھ کو لوٹا دو میری شوخ فذايے دہلی .....میری غلطی تو مجھے کاش بتاو دہلی .....میری آواز کو نا اور دباو دہلی .....آخری تجھ سے میری ایک گزارش یہ ہے .....سياستو کا یہ بازار ہٹاو دہلی .....ختم کر سارے گلے اپنا بناؤ دہلی .....مجھ کو اب اور نہ سڑکوں پہ گرانی ہے لہو .....میری فریاد سنو مجھ کو میرا حق دے دو ....میری سب آہ اور فریاد مٹا دو دہلی .....-------------------------------------------------- ----میری جنت سی فضا مجھ کو دلا دو دہلی .....میری جنت سی فضا مجھ کو دلا دو دہلی .....سلمان رضوی


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