सवाल करती है कश्मीर ज़मानें वालों.....
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मेरे सीनें पे फ़क़त आग लगानें वालों.....
ख़ून चीखों का समाँ रोज़ सजानें वालों.....
माओं बहनों की सदा रोज़ दबानें वालों.....
घर के गुलशन को मेरे रोज़ जलानें वालों.....
मेरी इज्ज़त को सरे राह उड़ाने वालों.....
रोटियाँ रोज़ सियासत की पकानें वालों.....
मेरा आँचल मेरे आंसू से भिगानें वालों.....
मेरे बच्चों का मुक़द्दर भी उड़ानें वालों.....
गोलियाँ बम की सदा रोज़ सुनाने वालों.....
मेरी रोती हुई आवाज़ दबानें वालों.....
चीड़ गुलमोहर के बागों को कटानें वालों.....
ज़ाफरानों के शजर नज़र लगानें वालों.....
मेरी पुरशोख सी झीलों को सुखानें वालों.....
नौजवाँ लाल की मय्यत भी उठानें वालों.....
बूढ़ी आँखों को जवाँ ख़ून दिखानें वालों.....
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हाथ को जोड़ फ़क़त एक गुज़ारिश ये है.....
मैं भी हिस्सा हूँ तेरे जिस्म का परवाना हूँ.....
दिल्ली मैं तेरी तरह तेरा ही दीवाना हूँ.....
क्यूँ मेरी आह को सुनतें नहीं अफ़साना हूँ.....
अब तो बस ख़ून और चीख़ें नहीं सुनना मुझको.....
दिल में ताक़त नहीं ये देख के बेगाना हूँ.....
मुझको लौटा दो मेरी शोख़ फ़िज़ायें दिल्ली.....
मेरी ग़लती तो मुझे काश बताओ दिल्ली.....
मेरी आवाज़ को ना और दबाओ दिल्ली.....
आख़री तुझसे मेरी एक गुज़ारिश ये है.....
सियासतों का ये बाज़ार हटाओ दिल्ली.....
ख़त्म कर सारे गिले अपना बनाओ दिल्ली.....
मुझको अब और ना सड़कों पे गिराना है लहू.....
मेरी फरियाद सुनों मुझको मेरा हक़ दे दो.....
मेरी सब आह और फ़रियाद मिटा दो दिल्ली.....
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मेरी जन्नत सी फ़िज़ा मुझको दिला दो दिल्ली.....
मेरी जन्नत सी फ़िज़ा मुझको दिला दो दिल्ली.....
-सलमान रिज़वी

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