कामरेड शुक्री बेलाद की शहादत को सलाम – टूनीसियन सुर्ख इन्कलाब की बुनियाद को सलाम: इस्लामी फासीवाद के खिलाफ जन संघर्ष तेज करो...
अरबी बसंत का असली प्रतिक्रियावादी स्वरूप अब रूप धीरे धीरे स्पष्ट होने लगा है. ट्यूनीशिया जिसने अरब जाग्रती का आगाज़ किया वहीँ सबसे पहले वाम जनवादी शक्ति के नेता शुक्री बेलाद की कल हुई हत्या से यह साबित हो गया है कि राजनीतिक इस्लाम का सबसे प्रमुख शत्रु जनवादी ताकते ही हैं. शुक्री बेलाद की हत्या के तुरंत बाद जिस प्रकार जनता सड़को पर अपने लोकप्रिय नेता के समर्थन में क्षोभ के साथ उतरी, उसके तेवर को देख कर सत्तारूढ़ एन्हादा इस्लामी पार्टी के नेता मोंसिफ मोर्जुकी को अपनी फ्रांस यात्रा बीच में ही छोड़ कर स्वदेश आना पडा.
मात्र ४८ साला, पेशे से वकील कामरेड शुक्री बेलाद पिछले दिनों मजदूर यूनियन के नेताओं और विपक्षी रैलियों पर लगातार बढ़ रही हमलो की घटनाओं का बड़ी तीव्रता के साथ विरोध कर रहे थे जिसके चलते उनकी पापुलर फ्रंट पार्टी को जन समर्थन लगातार बढ़ रहा था. वह पूरी शक्ति के साथ अगले चुनाव की तैय्यारी में जुटे थे, कुछ समय पूर्व ही देश के उत्तर में उन्होंने एक बड़ी रैली भी की थी. इस्लामी पार्टी ऐन्हादा की जनविरोधी नीतियों, दिशाहीन आर्थिक नीतियों, विपक्ष के लिए लगातार सिकुड़ती जा रही सरकारी संवेदना और प्रतिपक्ष पर बढ़ रहे इस्लामी ताकतों के हमलावर रवैय्ये पर शुक्री ने अपनी हत्या से २४ घंटे पूर्व की टेलीविजन पर अपने साक्षात्कार में सरकार की कड़ी आलोचना की थी और साथ ही अपनी जान को खतरे से भी आगाह किया था. हालाकि उन्हें धमकिया मिलने का सिलसिला काफी पुराना हो चुका था जिसकी न उन्होंने कभी परवाह की थी और न सरकार ने. अंततः हमलावरो ने कल सुबह उनके घर के सामने ही नज़दीक से उन्हें चार गोलियां दाग कर अपनी मंशा पूरी कर दी. दो गोली सर में और दो सीने पर खाए बेलाद अस्पताल पहुँचने से पूर्व इस दुनिया से कूच कर चुके थे.
निश्चय ही उनकी मृत्यु उपरान्त टुनिसियन क्रांति एक नए चरण में प्रवेश कर चुकी है, जनवादी ताकतों ने अपनी शहादतो का सिलसिला शुरू कर दिया है. इस चरण में राजनीतिक इस्लाम के फासीवादी स्वरूप और जनवादी ताकतों का ही असल मुकाबला है. एक तरफ दुनिया को फिर इतिहास के अन्धकार में खीचने वाली ताकतों के पीछे सरमायेदार और मज़हबी जनून का उन्माद है दूसरी तरफ दुनिया के मसाईल तार्किक बुद्धीवादी और वैज्ञानिक आधार पर सुलझाने वाले नज़रिए की ताकत है. कामरेड शुक्री बेलाद की हत्या के बाद टुनिसियन समाज में निश्चय की गुणात्मक परिवर्तन दिखेगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है. टूनिसिया ने दो वर्ष पूर्व बेन अली की तीन दशको पुरानी सत्ता को जिस प्रकार उखाड़ फेंका था जिसके परिणामस्वरूप मिस्र की मुबारक सरकार को भी जाना पड़ा. उसी प्रकार शुक्री बेलाद की हत्या के बाद इस आन्दोलन में होने वाले गुणात्मक परिवर्तन से अरबी बसंत की रंगत बदलेगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है . शुक्री की हत्या इस बात का भी सबूत है कि इस अरबी बसंत में वाम और जनवादी ताकतों का कितना बड़ा प्रभाव है जो इस्लामी ताकतों के लिए एक चुनौती बनता जा रहा है. यह अलग बात है कि क्रान्ति के पहले चरण में राजनीतिक इस्लामी फासीवादी ताकतों को सत्ता प्राप्त हुई. लेकिन यह कहना मुश्किल ही है कि ये ताकते टुनीशिया अथवा मिस्र में सत्ता में बनी ही रहेगी?
दुनिया भर के मज़दूर आंदोलनों और वाम कम्युनिस्ट ताकतों को कामरेड शुक्री बेलाद की असमय हत्या होने पर जरुर गहरा अफसोस होगा, साथ ही यह संघर्ष उन तथाकथित कम्युनिस्ट ताकतों/तत्वों को भी आत्ममंथन करने को प्रेरित करेगा जिनके अनुसार राजनीतिक इस्लाम को मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय अंतरविरोधो में साम्राज्यवाद विरोधी एक ताकत समझ लिए जाने जैसे एक बचकानी भूल हो जाती है.
-शमशाद इलाही शम्श







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