शनिवार, 4 मई 2013

फिर याद आये गाँधी


              
 
           चीन  ने देश के अन्दर घुसकर अपने तम्बू गाड लिए हैं और चीनी सैनिक वहाँ आराम  फरमा रहें हैं . लेकिन कहीं भी देशभक्ति का वह जोश और घुसपैठ के खिलाफ वैसा रोष नजर नहीं आता है जैसा  पाकिस्तान की ऐसी हरकतों पर अक्सर दिखता है.भारत सरकार भी शर्मनाक चुप्पी साधे है और मीडिया गफलत में है .कुछ बुद्धिजीवी किस्म के लोग कह रहें हैं कि चीन पाकिस्तान नहीं है .अगर पाकिस्तान होता तो एकाध मुशायरा या क्रिकेट मैच रख लेते और दोनों देशों  के बीच सदभाव कायम हो जाता.लेकिन समस्या ये है कि चीन में  मुशायरा नहीं सुनता  है और वो क्रिकेट भी नहीं खेलता है.  वो कुंग फू जानता है और हम खेलते हैं कबड्डी . कबड्डी जानते हैं ना ? छू छू छू  की और दूसरी टीम के खिलाड़ी को जरा सा छुआ और जीत का हाथ लहराते हुए अपने पाले में भाग आये. चीनी ऐसे खेल नहीं खेलता है वो ड्रेगन (अजगर )है, जहां बैठ गया, वहाँ बैठ  गया .अब वहीँ बैठे बैठे फूं फूं करता है. किसी की हिम्मत नहीं होती कि उसके नजदीक भी फटक जाए .

                अजगर पकड़ना हम जानते ही नहीं हैं. छोटा मोटा चूहे खाने  वाला सांप हो तो किली किली कूँ जय काली कलकत्ते वाली तेरा वचन न जाए खाली का मन्त्र बोलकर पकड़ भी लें लेकिन अजगर? ना बाबा ना . ऐसा लपेटा मारता है कि हड्डी पसली चूर चूर  हो जाती है . वो फुंकारता है तो सात  समंदर पार  बैठे महाबली को भी कंपकपी छूटने लगती है. कुछ समझ  में नहीं आता है कि  उससे  लड़ा  जाए तो कैसे  लड़ा  जाए .

               कुछ लोग कह रहें हैं कि युद्ध सैनिक ही नहीं लड़ते हैं जनता भी लड़ सकती है .जनता को चाहिए कि वो चीनी माल का बहिष्कार  कर दे . इससे चीन कि अर्थव्यवस्था बिगड़ जायेगी और उसकी कमर की रीढ़ टूट जायेगी .क्योंकि मजबूत अर्थव्यवस्था के बगैर कोई भी देश युद्ध का खर्च बर्दाश्त नहीं कर सकता है. ये बढ़िया बात है .इससे हमारी अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो सकती है क्योंकि चीन के सस्ते माल का बहिष्कार होगा तो स्वदेशी उद्योगों  को सहारा मिलेगा .लेकिन ये महात्मा गाँधी का रास्ता  है .उस गाँधी का जिसे खराब बताने में तमाम किस्म के लोग शामिल  हैं .
                  मैं कह सकता हूँ कि बापू  मानवता  के लिए  तुम्हारी  बहुत  जरूरत  है . यूँ ही तो नहीं कहा है कि 'दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल.' अब हमारे पास  एटम बम भी है और बमवर्षक भी, फिर भी हमें विदेशी माल के बहिष्कार का अहिंसक तरीका ही क्यों कारगर नजर आता है ? वो इसलिए कि  एटम बम हाथी के दाँत जैसे हैं .वो कीमती तो है लेकिन रोजमर्रा के किसी काम का नहीं है .  गाँधी का रास्ता वो रास्ता है जिसे अपनाने में किसी किस्म कि हिंसा नहीं होती है और मसला भी हल हो जाता है .मैं नहीं कहता  की यही रामबाण दवा है लेकिन इसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं है.



پھر یاد آئے گاندھی
    چین نے ملک کے اندر گھس کر اپنے خیمہ گاڈ لئے ہیں اور چینی فوجی وہاں آرام فرما رہے ہیں لیکن کہیں بھی حب الوطنی کا وہ جوش اور دراندازی کے خلاف ویسا غصہ نظر نہیں آتا ہے جیسا پاکستان کی ایسی حرکتوں پر اکثر دکھائی دیتا ہے. حکومت بھی شرمناک خاموش ہے اور میڈیا غفلت میں ہے. کچھ دانشور قسم کے لوگ کہہ رہے ہیں کہ چین پاکستان نہیں ہے. اگر پاکستان ہوتا تو ایک مشاعرہ یا ایک آدھ میچ رکھ لیتے اور دونوں ممالک کے درمیان ہم آہنگی قائم ہو جاتا لیکن مسئلہ یہ ہے کہ چین میں مشاعرہ نہیں ہوتا ہے اور وہ کرکٹ بھی نہیں کھیلتا ہے. وہ کنگ فو جانتا ہے اور ہم کھیلتے ہیں کبڈی. کبڈی جانتے ہیں نا؟ چھو چھو چھو کی اور دوسری ٹیم کے کھلاڑی کو ذرا سا چھو لیا اور جیت کا ہاتھ لہراتے ہوئے اپنے پالے میں حصہ آئے. چین ایسے کھیل نہیں کھیلتا ہے وہ ڈریگن ہے. جہاں بیٹھ گیا، وہاں بیٹھ گیا. اب وہیں بیٹھے بیٹھے پھو پھو کرتا ہے. کسی کہ ہمت نہیں ہوتی کہ اس کے قریب بھی پھٹک جائے.
             اژدھا پکڑنا ہم جانتے ہی نہیں ہیں. چھوٹا موٹا چوہے کھانے والا سانپ ہو تو كلي كلي كو جے کالی کلکتے والی تیرا وعدہ نہ جائے خالی کا منتر بول کر پکڑ بھی لیں لیکن اژدھا؟ نا بابا نا. ایسا لپیٹا مار دیتی ہے کہ ہڈی پسلی چور چور ہو جاتی ہے. وہ پھكارتا ہے تو سات سمندر پار بیٹھے ماہر کو بھی کںپکپی چھوٹنے لگتی ہے. کچھ سمجھ میں نہیں آتا ہے کہ اس سے لڑا جائے تو کیسے لڑا جائے.
  کچھ لوگ کہہ رہے ہیں کہ جنگ فوجی ہی نہیں لڑتے ہیں عوام بھی لڑ سکتی ہے. عوام کو چاہئے کہ وہ چین کے مال کا بائیکاٹ کر دے. اس سے چین کی کہ معیشت بگڑ جائے گی اور اسكيكمر کی ریڑھ کی ہڈی ٹوٹ جائے گی. کیونکہ مضبوط معیشت کے بغیر کوئی بھی ملک جنگ کے اخراجات برداشت نہیں کر سکتا ہے. یہ اچھی بات ہے اس سے ہماری معیشت بھی مضبوط ہو سکتی ہے کیونکہ چین کے سستے مال کا بائیکاٹ ہو گا تو ملکی صنعتوں کو سہارا ملے گا. لیکن یہ مہاتما گاندھی کا راستہ ہے. اس گاندھی کا جسے خراب بتانے میں تمام قسم کے لوگ شامل ہیں.
               میں کہہ سکتا ہوں کہ باپو انسانیت کے لئے تمہاری بہت ضرورت ہے. یوں ہی تو نہیں کہا ہے دے دی ہمیں آزادی بغیر كھڈگ بغیر ڈھال. اب ہمارے پاس ایٹم بم بھی ہے اور حملہ آور بھی، پھر بھی ہمیں غیر ملکی مال کے بائیکاٹ کا عدم تشدد طریقہ ہی کیوں کارگر نظر آتا ہے؟ وہ اس کی ایٹم بم ہاتھی کے دانت جیسے ہیں. وہ قیمتی تو ہے لیکن روز مرہ کے کسی کام کا نہیں ہے. گاندھی کا راستہ وہ راستہ ہے جس کو اپنانے میں کسی قسم کہ تشدد نہیں ہوتی ہے اور مسئلہ بھی حل ہو جاتا ہے. میں نہیں کہتا کی یہی علاج دوا ہے لیکن اسے اپنانے میں کوئی حرج نہیں ہے.

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