बुधवार, 29 मई 2013

लोक और तंत्र -' छत्तीस गढ़िया सबसे बढ़िया '

 

   अखबारों और टी वी चैनल पर  पर राजनीतिक बहसों का अजब हाल है .सब तरफ घेर घोट कर जन संहार के लिए सहमति बनाने की कौशिश हो रही है.एन डी टी वी पर जब एक प्रोफ़ेसर ने विकास के वर्तमान मोडल पर सवाल उठाये तो कांग्रेस के प्रवक्ता संजय निरुपम ने सरेआम धमकाते हुए कहा -'आपको किसने प्रोफ़ेसर बना दिया ? आपको शर्म आनी चाहिए आप नक्सलियों की हिमायत करते हो?'
      संजय निरुपम शिव सेना से कांग्रेस में आये हैं .वे अभी भी अपनी शिव सैनिक वाली जोर जबरदस्ती की रौ  में रहते हैं.लेकिन उन्हें  पता होना चाहिए कि एक प्रोफ़ेसर को बनाने में कई स्कूल, कालिजों और विश्वविद्यालयों  के विद्वानों  का योगदान होता है. किसी यूनिवर्सिटी का प्रोफ़ेसर बनना किसी तपस्या से कम नहीं है. लेकिन नेता की क्या योग्यता है ? वे कौन सी परीक्षा पास करते हैं ? एक यही ऐसा लाभदायक पेशा है जिसके लिए किसी  शैक्षिक या अर्हकारी योग्यता की आवश्यकता नहीं है. तभी जाहिल से जाहिल नेता भी किसी भी योग्य व्यक्ति  को अपमानित करता रहता है . लेकिन गुरू को धमकाने की हिमाकत इस लोकतंत्र  में ही संभव है.
   हर जगह काँग्रेसियों का ऐसा हाल है कि आप थोडा तार्किक बात कहें वो आपको शूट करने को तैयार हो जायेगे.क्यूँ जी क्या पहली बार कोई मरा है? या नेताओं का मरना ही मरना है? आदिवासियों, नक्सलियों और सिपाहियों की मौत, मौत नहीं है ?  यह स्यापा पहले क्यूँ नहीं हुआ? आपकी हताशा  बता रही है कि देश को माओवादियों की जरूरत है. वरना आप तो देश को कोयले में, टू जी में, आई पी एल  में लूटने में लगे हैं और पब्लिक को उलझाए रखें हैं मंदिर- मस्जिद में, दलित सवर्ण में ,क्रिकेट  में.
  जनता अगर इस नशे की गिरप्त से आजाद हो कर जाग रही है तो आपको क्यूँ डर लग रहा है ? जो ये कहते हैं कि ये आदिवासी नहीं हैं इन्हें आदिवासियों के बारे में कुछ कहने का कोई हक़ नहीं है तो वे ये जान लें कि ये नक्सली कोई चीन या पाकिस्तान के घुसपैठिये नहीं हैं, ये हिन्दुस्तान के अपने बेटे हैं. इन्हें भी देश की जनता के लिए बोलने का, लड़ने का, काम करने का उतना ही हक़ है जितना किसी और को है.
    आप कहते हैं कि जो संवैधानिक सत्ता को चुनौती देते हैं भारत के संविधान को नहीं मानते हैं उनसे कोई बात नहीं हो सकती है .उनसे सख्ती से निबटा जाएगा.[ सख्ती मतलब देखते ही गोली मार देना].
 संविधान का नाम ऐसे लिया जाता है जैसे गीता या कुरआन की कसम खायी जा रही हो . संविधान का दूसरे से अनुपालन की बात तब करें जब आप उसका अनुपालन करते हो. संविधान में कहाँ लिखा है कि गरीबों के गाँव के गाँव उजाड़ दो और उन्हें सडकों पर भूखा मरने के लिए खदेड़ दो ? संविधान में कहाँ लिखा है कि आदिवासी औरतों की योनि में पत्थर ठूंस दो ,उनके स्तन काट दो ? संविधान में कहाँ लिखा है कि ऐसा करने वालों को राष्ट्रपति मैडल दिया जाए ? अगर ये सब संवैधानिक काम हैं तो उनके खिलाफ हर संभव तरीके से लड़ना हर मनुष्य का जन्मजात अधिकार है. गाँधी जी ने इसी अधिकार के साथ लड़ाई लड़ी थी. आज भी इरोम शर्मीला इसी अधिकार के साथ लड़ रही है लेकिन संविधान की दुहाई देने वाले उसकी कहाँ  सुन रहें हैं?  वो बहरे बने हुए हैं .जब बहरें हों तो उन्हें सुनाने के लिए धमाकों कि जरूरत होती है, सो धमाके हो रहें हैं. बस इतनी सी बात है .सरकारें अपने बहरेपन का इलाज दूंढ लें कोई समस्या  नहीं रहेगी .
 एक और बात बड़े जोर शौर से दोहराई जा रही है और जिससे सब सहमत दिखाई देते हैं वो ये कि ये लोकतंत्र पर हमला है. इससे बड़ा झूठ कोई हो ही नहीं सकता है कि ये लोकतंत्र पर हमला है. ये लोकतंत्र पर नहीं केवल तंत्र पर हमला है. इस कथित लोकतंत्र में लोक तो पहले ही धकिया दिया गया है .अब कुछ तांत्रिक हैं जो तरह तरह के स्वांग भरकर जनता को बरगलाते रहते हैं .जनता इनसे तंग आ गयी है ऐसे में अगर कुछ ऐसा वैसा हो जाता है तो उसकी जबाबदेही तंत्र की है न कि लोक की. एक ऐसा तंत्र जो अपने ही जन के खिलाफ फौजें  भेजता  हो ,घरों  में आग  लगता  हो ,मासूमों  का क़त्ल  करता  हो, स्त्रियों  के साथ  बलात्कार  करता  हो उसके  तहस  नहस  होने  पर लोक क्यूँ दुःख  मनायेगा  ? क्या यह दुखी  होने  की बात है ?लोकतंत्र वही  नहीं है जिसे  शासक  वर्ग  कह  दे.  लोकतंत्र वह  है जिसमें  जनता की भागेदारी  हो . जनता अपना  हक़ मांग  रही है .बहुत  दिनों  से आपने  उसकी आवाज  को अनसुना  किया  है .अब वह  अपना  हक़ छीन   रही है तो चीख  पुकार  कैसी  ? अब वैसे  ही अट्टहास  कीजिये  न जैसे  सोनी  सोरी  या इरोम शर्मीला का बुरा हाल कर के  करते रहे  हो.
सरकार किसी की न सुने तो कम से कम  अपने मंत्री जयराम रमेश की ही सुन लें जिन्होंने कहा है कि खदानों की लूट बंद होनी चाहिए .इस लूट ने आदिवासियों को उजाड़ दिया है वे लड़ेंगे नहीं तो क्या करेंगे ?

2 टिप्‍पणियां:

  1. madhurji ke vishleshan se purntaha sahmati hai. aakhir vanchit kab tak upekchha ka dansh jhelenge.

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  2. 1.राजेंद्र पीटकर और ऐसे 50-100 नक्सली हमले हो तब जा कर उपर के 100 बड़े बड़े हरामजादे मारे जाने चाहिए तब उन्हें अक्ल आएगी.

    2.विनय पाण्डेय जब तक CRPF के जवान शहीद होते थे तब तक इन्होने कभी नहीं सोचा , 10 शहीद हुए तो 20 को शहीद होने के लिए भेज दो , लेकिन अब जब से ये काण्ड पॉलिटिशियन के खिलाफ हुई , तो आर या पार की जुंग करने चले हैं , "गवर्नमेंट औथोरिज़ेद नरसंहार के लिए "


    3.Mukti Tirkey Implement the Provisions of Fifth Schedule of the Constitution.The Government of Chhatisgarh should be dismissed for its failure to protect the tribals as per the provisions of Fifth Schedule.It should be brought under President's Rule immediately.
    Yesterday at 6:25am via · Unlike · 1

    4.Prathak Batohi Mr Tirkey, Is it really a solution to dismiss elected govt at hat`s throw. The same govt was there when 76 CRPF men were killed and this is not the last govt which has to face such nuisance.
    17 hours ago · Like

    5.अमरनाथ 'मधुर'- बात इस या उस पार्टी की सरकार के बर्खास्त करने की नहीं है, इस शोषणकारी व्यवस्था को बर्खास्त करने की है जिसमें गरीब आदिवासी [केवल गरीब रमण सिंह .मधुकोड़ा नहीं ] पिस रहा है .जो समझते हैं ये व्यवस्था शाश्वत है उनसे इतना ही कहना है 'बदलेगा ज़माना बदलेगा'.


    6.पृथक बटोही - व्यवस्थाएं कभी शाश्वत नही होती फिर संविधान ने शाश्वत व्यवस्थाओं की वर्जना तोड़ दी है।
    आज़ाद हुसैन शूट तो नक्सली कांग्रेस्सियो को कर रहे है .

    7.अशोक वर्मा हाँ बदलेगा।

    8.राम कुमार सविता - जनता के हांथों में बहुत ताकत है, जो चुनकर भेजती है वही उखाड़ फेंकती है.

    9.विजय प्रकाश - हमें एकजुट होकर एन मक्कार नेताओं को सबक सिखाना चाहिए .

    10.एस .यू . सैयद - अमरनाथ मधुर जी ,किन्तु किसी भी स्थिति में किसी भी और से हिंसा का मैं विरोध करता हूँ .

    11.मैक्स गैम्बलर - अमरनाथ मधुर जी बहुत करारा प्रहार किया है आपने इस तथाकथित लोकतंत्र पर
    जो आम लोग आदिवासियों को आतंकवादी कहते हैं अगर उन्हे सच्चाई का पता चले तो शायद वो इन आदिवासियों के साथ खड़े नज़र आएँगे.

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