शनिवार, 24 अगस्त 2013

नहीं जाऊँगा .

मंदिर में अब राम नहीं सिंहल रहते हैं
तोगड़िया पूजे जाते हैं
मस्जिद नहीं खुदा का घर है
एक बड़ा है पागलखाना
जिसमें दडियल मुल्ला दिन भर
कुकडू  कूँ करता रहता है
क्या जाना मंदिर मस्जिद में ?
नहीं चैन से खाने देते
नहीं चैन से सोने देते
मंदिर मस्जिद की जो बातें
करता है वो पागल है
वो जाए ,हो आयें उनमें
मुझको काम कई करने हैं
रोटी से बेटी तक सब की
चिंता मेरे सिर रहती  है
और देखना ये भी मुझको
कौन देश को लूट रहा है
फंसा मुझे मंदिर मस्जिद में
तुम जाओ मैं नहीं जाऊँगा .
 -------अमरनाथ 'मधुर'
  

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