शनिवार, 4 जनवरी 2014

ये साल नया उम्मीदों का,


वो साल गया जिस साल कभी,मेरा न मिला मनमीत मुझे
ये साल नयी उम्मीदों का, हर हाल मिलेगा मीत मुझे .

मैं चला बहुत,मैं थका बहुत,मैं पिटा बहुत,मैं लुटा बहुत
लेकिन ना कभी हारा हूँ मैं, हर हाल मिलेगी जीत मुझे .

उसकी नज़रों के तीरों से दिल तो पहले ही घायल था
बेदर्द जमाने ने मारे, पत्थर पर पत्थर खींच मुझे .

कुछ काम मेरे बेढंगे से उनकी नज़रों में चुभते हैं
जिनके उसूल खारिज करके मिलती है सबकी प्रीत मुझे .

मैं गीत मोहब्बत के गाता फिरता रहता हूँ गली गली
जो आज अवारा कहते हैं,कल बोलेंगे जगजीत मुझे .

कल वो मिसाल देंगे मेरी, आने वाली सब नस्लों को
जो आज रहा करते आजिज,कहते सबसे है ढीट मुझे.


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