बुधवार, 25 जून 2014

सब्सिडी पर सिलेंडर


     सरकार के कर्मचारी अधिकारी बीस हजार रुपये से लेकर एक लाख रुपये से भी अधिक प्रति माह वेतन लेते हैं .क्या इस आय वर्ग के लोगों को सरकार से किसी तरह की सब्सिडी दी जानी चाहिए ? मेरे विचार से कोई भी नहीं चाहेगा कि इस आयवर्ग के लोगों को सब्सिडी दी जाए लेकिन ये वर्ग भी सरकार से अनेक तरह की सब्सिडी प्राप्त करता है जिसमें पेट्रोलियम पदार्थों पर मिलाने वाली सब्सिडी मुख्य है. रसोई गैस भी पेट्रोलियम उत्पादों का ही हिस्सा है जिस पर सरकार काफी सब्सिडी दे रही है .अब वक्त आ गया है कि सरकार इस सब्सिडी को ख़त्म कर दे और गरीबों को भोेजन पकाने के लिए प्रति माह एक सिलेंडर खरीदने के लिए उनके खातें में पूरे सिलेंडर की कीमत कीमत की धनराशि के भुगतान की व्यवस्था करे .इसी प्रकार अन्य खाद्य पदार्थों पर भी गरीबों को सहायता राशि का भुगतान किया जाए .यहां यह भी व्यवस्था करनी होगी कि गरीब का मतलब वास्तविक  गरीब होना चाहिए .मैंने ऐसे पानवाले भी देखें हैं जिनकी आय चार पांच हजार रुपये रोजाना है लेकिन वे कोई आयकर नहीं देते हैं और दिखने में एक छोटी सी घुमटी में दूकान चलाते हैं .सरकार का महकमा उन्हें गरीब मान लेता है .ऐसे लोग गरीबों का हक़ छीन लेते हैं . सरकार ऐसी व्यवस्था करे जिससे ऐसे लोग सब्सिडी का लाभ न लेने पायें.
      इसी के साथ यह व्यवस्था भी करनी ही होगी कि पेट्रोलियम पदर्थों के उत्खनन, शोधन और वितरण में लगी सरकारी या गैर सरकारी कंपनियां गैर वाजिब तरीकों से पेट्रो उत्पादों को मंहगा नहीं करें. रिलायंस कंपनी हो या ओ एन जी सी वो इसलिए भीमकाय नहीं हैं कि उन्होंने बहुत बढ़िया काम किया है वो इसलिए भीमकाय हैं कि सरकार ने उन्हें आँख बंद करके सहायता उपलब्ध करायी है. यद्यपि यह सहायता पेट्रो पदार्थों पर विदेशी निर्भरता ख़त्म करने के लिए दी गयी है लेकिन इन कंपनियों के कर्ताधर्ताओं ने इस सरकारी सहायता को जो वास्तव में जनता के खून पसीने की कमाई का हिस्सा है, अपनी चमक दमक बनाये रखने के लिए लूट लिया है . वक्त की मांग है कि लूट का यह खेल अब बंद होना चाहिए . बिजली हो या रसोई गैस उसके वास्तविक लागत मूल्य पर उपभोक्ता को बेचा जाना चाहिए. निश्चय ही इस मूल्य पर खरीदने में कोई उपभोक्ता आना कानी नहीं करेगा.

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